Editorial News

(विचार मंथन) आर्थिक संकट में लंका

लेखक-सिद्धार्थ शंकर
श्रीलंका में महीनों से जारी आर्थिक संकट से परेशान जनता का प्रदर्शन उग्र होता जा रहा है। 9 जुलाई को प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति आवास घेर लिया, जिसके बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे आवास छोड़कर भाग खड़े हुए। इससे पहले मई में जब उग्र भीड़ ने राजपक्षे के छोटे भाई और पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के कोलंबो स्थित सरकारी आवास को घेर लिया था, तो महिंदा ने परिवार समेत भागकर नेवल बेस में शरण ली थी। इस बीच 9 जुलाई को ही रानिल विक्रमसिंघे ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। विक्रमसिंघे 12 मई को महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री बने थे। श्रीलंका में सरकार विरोधी प्रदर्शन रविवार को भी जारी रहे और राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे तथा प्रधानमंत्री रॉनिल विक्रमसिंघे के आवासों पर प्रदर्शनकारियों का कब्जा है।  देश में उथल-पुथल के बीच राष्ट्रपति फिलहाल कहां हैं, इस बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है। प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे के निजी आवास को शनिवार को प्रदर्शनकारियों ने आग के हवाले कर दिया था।श्रीलंका एक अभूतपूर्व आर्थिक उथल-पुथल का सामना कर रहा है। 2.2 करोड़ लोगों की आबादी वाला देश सात दशकों में सबसे खराब दौर से गुजर रहा है। श्रीलंका में विदेशी मुद्रा की कमी है, जिससे देश ईंधन और अन्य आवश्यक वस्तुओं के जरूरी आयात के लिए भुगतान कर पाने में असमर्थ हो गया है। इन हालात के बीच जनता सड़कों पर है। राजपक्षे और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के तत्काल इस्तीफे की मांग की जा रही है। हालांकि, श्रीलंका की संसद के अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने ने कहा है कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे 13 जुलाई को इस्तीफा देंगे। स्थायी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति नहीं होने की स्थिति में संसद अध्यक्ष कार्यवाहक राष्ट्रपति बनेंगे। श्रीलंका 1948 में अपनी आजादी के बाद से सबसे बुरे आर्थिक संकट से गुजर  हा है। श्रीलंका में लोगों को रोजमर्रा से जुड़ी चीजें भी नहीं मिल पा रही हैं या कई गुना महंगी मिल रही हैं। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो चुका है, जिससे वह जरूरी चीजों का आयात नहीं कर पा रहा है। देश में अनाज, चीनी, मिल्क पाउडर, सब्जियों से लेकर दवाओं तक की कमी है। पेट्रोल पंपों पर सेना तैनात करनी पड़ी है। देश में 13-13 घंटे की बिजली कटौती हो रही है। देश का सार्वजनिक परिवहन ठप हो गया है, क्योंकि बसों को चलाने के लिए डीजल ही नहीं है। पिछले एक दशक के दौरान श्रीलंका की सरकारों ने जमकर कर्ज लिए, लेकिन इसका
सही तरीके से इस्तेमाल करने के बजाय दुरुपयोग ही किया। 2010 के बाद से ही लगातार श्रीलंका का विदेशी कर्ज बढ़ता गया। श्रीलंका ने अपने ज्यादातर कर्ज चीन, जापान और भारत जैसे देशों से लिए हैं। 2018 से 2019 तक श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे रानिल विक्रमसिंघे ने हंबनटोटा पोर्ट को चीन को 99 साल के लिए लीज पर दे दिया था। ऐसा चीन के लोन के पेमेंट के बदले किया गया था। ऐसी नीतियों ने उसके पतन की शुरुआत की। इसके अलावा उस  पर वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक जैसे ऑर्गेनाइजेशन का भी पैसा बकाया है। साथ ही उसने इंटरनेशनल मार्केट से भी उधार लिया है। 2019 में एशियन डेवलपमेंट बैंक ने श्रीलंका को एक जुड़वा घाटे वाली अर्थव्यवस्था कहा था। जुड़वा घाटे का मतलब है कि राष्ट्रीय खर्च राष्ट्रीय आमदनी से अधिक होना। श्रीलंका की एक्सपोर्ट से अनुमानित आय 12 अरब डॉलर है, जबकि इम्पोर्ट से उसका खर्च करीब 22 अरब डॉलर है, यानी उसका व्यापार घाटा 10 अरब डॉलर का रहा है। श्रीलंका जरूरत की लगभग सभी चीजें, जैसे-दवाएं, खाने के सामान और फ्यूल के लिए बुरी तरह इम्पोर्ट पर निर्भर है। ऐसे में विदेशी मुद्रा की कमी की वजह से ये जरूरी चीजें नहीं खरीद पा रहा है।
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