पूनम शर्मा
Indore News in Hindi। मध्य भारत में एजुकेशन हब के रूप में विकसित हो चुके इंदौर में 200 से अधिक इंस्टीट्यूट/ कॉलेज, 11 प्राइवेट यूनिवर्सिटी के साथ अनेक शैक्षणिक संस्थान कार्यरत हैं लेकिन यहाँ शिक्षा सेवा नहीं बल्कि लाभ का धंधा मात्र है। प्राइवेट यूनिवर्सिटियां भारी भरकम फीस लेकर सिर्फ डिग्री बांटने का काम कर रही हैं। सामाजिक सरोकार से इनका कोई वास्ता नहीं है। देश में प्रतिष्ठित देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में 30 से अधिक विभाग हैं जो यदि एक गाँव भी गोद लेते तो 30 से ज़्यादा गाँवों का विकास होता इसी प्रकार जिले में 200 से अधिक शैक्षणिक संसथान हैं।
आदेशानुसार 5 गॉंवों को गोद लेते तो इन गावों की संख्या 1000 से ऊपर होती। दुर्भाग्य है कि यहाँ कार्यान्वयन के लिए न तो जिला प्रशासन, न उच्च शिक्षा विभाग और न ही रीजनल कॉर्डिनेटिंग इंस्टिट्यूट इस योजना को गंभीरता से लागू करवा पा रहे हैं। शिक्षा क्षेत्र में सेवाभाव की कमी से इंदौर में सिर्फ 18 संस्थानों ने ही योजना में भागीदारी की है। जब इन गांवों में दैनिक सदभावना पाती की टीम पहुंची तो पाया कि योजना के मूल उद्देश्यों का क्रियान्वयन नाम मात्र का है।
शहर में ये बड़ी संस्थाएं हैं जो इस योजना में भागीदारी कर सकती हैं बशर्ते कि इन्हें शिक्षा लाभ का धंधा नहीं बल्कि सेवा है यह मानना होगा, वहीं रीजनल नोडल सेंटर एवं नेशनल कॉर्डिनेटिंग इंस्टीट्यूट को इन संस्थानों से संपर्क करने की जरुरत है।
उक्त संस्थानों के अलावा कितने इंस्टिट्यूट योजना से जुड़े हैं और क्या प्रगति की है इसके लिए आईआईटी दिल्ली से इस सन्दर्भ में जानकारी मांगी गई थी लेकिन पूरी जानकारी नहीं दी गई, आगे पड़ताल के लिए दैनिक सदभावना पाती अख़बार ने इंदौर की लगभग सारी शैक्षणिक संस्थाओं को ईमेल भेज जवाब चाहा तो रिप्लाई नगण्य रहा। हालाँकि कुछ संस्थाओं ने जवाब दिए जिनमें आईपीएस एकेडमी ने किये गए कार्यों का मय दस्तावेज जवाब दिया। बता दें कि आईपीएस एकेडमी देश में स्थापित नाम है और सामाजिक सरोकार में शिद्दत से कार्य करता है।
अभियान में संस्थानों की भागीदारी इसलिए भी बहुत कम है क्यूंकि प्रचार-प्रसार की कमी के साथ साथ जिन्हें ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है वो अपना कार्य जवाबदारी से नहीं करते। रीजनल नोडल सेंटर तक को अपने अंतर्गत कार्य कर रहे संस्थानों के बारे में जानकारी नहीं है और महादुर्भाग्य की बात है नेशनल कॉर्डिनेटिंग इंस्टीट्यूट आईआईटी दिल्ली जो लम्बे समय से गाँवों के विकास के लिए कार्य कर रहा है वह स्वयं भी संस्थानों को भागीदारी करवाने के लिए गंभीर नहीं है।
उन्नत भारत अभियान तो इतना उन्नत है कि इसकी वेबसाइट जिसमे हज़ारों संसथान की भागीदारी है, कई बार तो खुलती नहीं और खुलती है बफरिंग होती रहती है। मानव संसाधन मंत्रालय को इस और ध्यान देने की आवश्यकता है।
अभियान की गाइडलाइन्स के अनुसार प्रत्येक पार्टिसिपेटिंग इंस्टिट्यूट को सीड मनी, पेरेनियल असिस्टेंस, अप्प्रेसिअशन फंडिंग टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट/कस्टमाइजेशन के रूप में 50 हज़ार से लेकर एक लाख तक की फंडिंग की जाती है इसका इस्तेमाल गाँवों में सर्वेक्षण, यात्रा, जलपान, जागरूकता कार्यक्रमों और प्रतियोगिताओं के लिए किया जा सकता है लेकिन ध्यान देने योग्य है कि इसके लिए कोई बिल लगाने की ज़रूरत नहीं, सिर्फ एक सामान्य सा व्यय विवरण (स्टेटमेंट ऑफ़ एक्सपेंडिचर) देना होता है और 2 हफ़्तों में फंड रिलीज़ कर दिया जाता है।
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