डॉ देवेन्द्र मालवीय..
Indore News | मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव के चौथे और अंतिम चरण में सोमवार को मालवा-निमाड़ अंचल की आठ लोकसभा सीटों देवास, उज्जैन, मंदसौर, रतलाम, धार, इंदौर, खरगोन और खंडवा लोकसभा सीटों पर सुबह सात बजे से शुरू हुआ मतदान शाम 6 बजे थम गया। इस तरह अब प्रदेश कि सभी 29 लोकसभा सीटों पर चुनाव संपन्न हो गया है। अब 4 जून के नतीजों का इंतजार है। इनमें सबसे हॉट सीट इंदौर मानी जाती है फिर भी इंदौर में ही सबसे कम वोटिंग प्रतिशत लगभग 59% रहा।
बताया जा रहा है कि लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव में इंदौरवासियों ने उत्साह दिखाया लेकिन इस बार इंदौर लोकसभा सीट पर जो लगभग 59% की वोटिंग हुई है वो शक के घेरे में है क्यूंकि जब पोलिंग बूथ पर इतनी जनता ही नहीं थी तो इतने परसेंट वोटिंग कैसे हो गई ? जबकि पिछले चुनाव में दिनभर बूथों पर भीड़ रही तभी मतदान 69 प्रतिशत था तो इस बार बिना भीड़ के यह आंकड़ा 59 प्रतिशत तक कैसे पहुँच गया। ये सवाल आम जनता के मन में भी है।
दरअसल इस सब दृश्य में शहर कांग्रेस कि नाकामयाबी साफ़ नज़र आ रही है। शहर कांग्रेस पोलिंग बूथ पर अपनी टेबल नहीं लगा पाई और अपने कार्यकर्ताओं के बूथ पर बैठने की व्यवस्था तक नहीं की। जबकि चुनाव प्रचार करते समय बड़ी बड़ी घोषणा कि गई थी कि हम हर बूथ पर अपनी टेबल लगाएंगे और अपने लोगों को भी बिठाएँगे। कार्यकर्ता बैठने को तैयार भी थे लेकिन वो खुद इतने परेशान होते रहे कि अंदर कौन बैठेगा, टेबल कौन लगाएगा, क्या व्यवस्था है ?
कार्यकर्ताओं के अलवा दुसरे लोगों ने भी कहा किसको बिठा रहे हो बूथ में, अगर आपके पास कोई नहीं हो तो हम बूथ में बैठ जाते हैं लेकिन शहर कांग्रेस ने किसी के लिए कोई व्यवस्था नहीं की, किसी प्रकार का खर्चा नहीं किया। साफ़ बात है कि इंदौर में पोलिंग बूथ पर टेबल लगाने और अपने लोगों को बिठाने में कांग्रेस फेल हुई क्यूंकि यह पूरी जिम्मेदारी शहर कांग्रेस और प्रभारी की थी।
लगता है शहर कांग्रेस ने पूरी तरह चुनावी मैदान छोड़ ही दिया है। इस बार कांग्रेस जो बाहर हुई है इसकी पूरी जिम्मेदारी शहर कांग्रेस और उसके प्रभारी की है। शहर कांग्रेस अध्यक्ष भी किसी की नजर में नहीं आए, जितने लोगों ने विधानसभा लड़ी थी वह भी मैदान से नदारद रहे, विधानसभा प्रभारी से लेकर प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी भी फील्ड में मौजूद नहीं थे। विधानसभा नंबर एक पर दीपू यादव ने बूथों पर टेबल और कार्यकर्ताओं के बैठने कोई व्यवस्था नहीं की, दो नंबर से चिंटू भी लापता, 3 नंबर में भी यही हाल, चार नंबर में प्रभारी के अते पते ही नहीं और पांच नंबर के भी यही हालात थे।
इस बीच आंकड़ों को देखकर आम जनता में चर्चा का विषय है कि दिनभर बूथों पर भीड़ रहती है तब जाकर कहीं अच्छी वोटिंग होती है, अब जनता के मन में शंका है कि बूथों पर भीड़ नहीं थी तो इतना प्रतिशत मतदान कैसे हो गया ? यदि पिछले चुनाव का ज़िक्र करें तो इंदौर में सड़कों पर और बूथों पर शाम तक पर बहुत भीड़ बनी रही तब मतदान 69 प्रतिशत था जबकि इस चुनाव में इतनी भीड़ थी ही नहीं और न ही लोगों में चुनाव को लेकर कोई उत्साह था। यहाँ तक कि युवा भी इस चुनाव से दूर ही दिखे उनमे भी वोटिंग को लेकर कोई रुझान नज़र नहीं आया।
इस बार चुनाव में पहली बार जनता में नोटा का माहौल देखने को मिला है। नोटा का बटन दबाने के लिए शहर कांग्रेस से ज्यादा सक्रिय आम जनता रही। जनता में शंका इसलिए भी है कि जब शहर कांग्रेस बूथों पर कार्यकर्ता तक नहीं बिठा पाई तो काउंटिंग वाले दिन जब मतगणना होगी उसमें क्या पारदर्शिता रहेगी ? यदि काउंटिंग वाले दिन भी यही स्थिति रही और विपक्ष के नेता मजबूती से नहीं बैठे तो परिणाम कुछ भी हो सकता है जिसकी पूरी ज़िम्मेदार शहर कांग्रेस की होगी।
हालाँकि इस बार इंदौर में चुनावी माहौल वैसे ही फीका था क्यूंकि कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने पार्टी को तगड़ा झटका देते हुए नामांकन वापसी की आखिरी तारीख 29 अप्रैल को अपना पर्चा वापस ले लिया और वह इसके तुरंत बाद भाजपा में शामिल हो गए थे. नतीजतन इस सीट के 72 साल के इतिहास में कांग्रेस पहली बार चुनावी दौड़ में नहीं रही।
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