इस पौराणिक कथा से जानिए क्यों लगता है कुंभ का मेला?

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sadbhawnapaati
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कुंभ मेला हिंदू धर्म के एक मुख्य पर्वों में से एक माना जाता है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु शामिल होते हैं। बता दें कुंभ मेले के दौरान लोग प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक आदि स्नान करते हैं। बता दें इनमें से प्रत्येक स्थान पर हर 12वें वर्ष और प्रयाग में 2 कुंभ पर्वों के बीच 6 वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। इस बार विश्व का सबसे बड़ा आस्था का मेला कहलाने वाला कुंभ इस बार उत्तराखंड की देव नगरी आयोजित होने वाला है, जो 11 मार्च दिन गुरुवार यानि महाशिवरात्रि के दिन प्रांरभ होगा। इस दौरान लोग पावन नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। मगर आज भी ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें ये नहीं पता कि आखिर कुंभ का मेला क्यों लगता है। तो चलिए आपको बताते हैं कि कुंभ के मेले से जुड़ी पौराणिक कथा |

क्यों आयोजित होता है कुंभ मेला |हिंदू धर्म से जुड़े लगभग लोग समुद्र मंथन की कथा से अवगत होंगे। बता दें उसी कथा का कुंभ मेला का संबंध है। जी हां पौराणिक कथाओं के अनुसार जब महर्षि दुर्वासा के श्राप से इंद्र देव श्रीहीन हो गए तब चारों ओर असुरों का वर्चस्व बढ़ने लगा और उन्होंने स्वर्ग पर भी अपना अधिकार कर लिया। इस बात से परेशान होकर इंद्र देव ब्रह्मा जी के पास गए तब उन्होंने उन्हें भगवान विष्णु के पास भेज दिया। उनकी परेशानी सुनने के बाद भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन का सुझाव दिया।

जिसके बाद देवताओं और राक्षसों ने समुद्र मंथन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप कई रत्नों के साथ अमृत कलश भी निकला। देवता और राक्षस सभी इस अमृत को पाकर अमरत्व प्राप्त करना चाहते थे। कहा जाता है कि अमृत कलश को पाने हेतु देवताओं और असुरों में कुल 12 दिनों तक युद्ध चला। उस समय के 12 दिन पृथ्वी पर 12 वर्ष के समान होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इसी वजह से कुंभ हर 12 वर्ष पर एक बार एक स्थान पर लगता है और हर 3 वर्ष पर स्थान बदलता है।

 

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