"दैनिक सदभावना पाती" (Dainik Sadbhawna Paati) (भारत सरकार के समाचार पत्रों के पंजीयक – RNI में पंजीकृत, Reg. No. 2013/54381) "दैनिक सदभावना पाती" सिर्फ एक समाचार...
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वैज्ञानिक शोधों से यह भी साबित हो चुका है कि मनुष्य अपने धरती पर आने के इतने अल्प समय में ही इस धरती, इसके जैवमंडल, इसके समुद्रों, जंगलों, पहाड़ों, नदियों, जलाशयों और यहां तक कि पृथ्वी के आसपास के अंतरिक्ष को भी इतना प्रदूषित और इतना नुकसान पहुंचा चुका है, जितना अरबों सालों से पृथ्वी के अन्य सभी जीवों ने नहीं पहुंचाया था।
वैज्ञानिक शोधों से यह भी साबित हो चुका है कि मनुष्य अपने धरती पर आने के इतने अल्प समय में ही इस धरती, इसके जैवमंडल, इसके समुद्रों, जंगलों, पहाड़ों, नदियों, जलाशयों और यहां तक कि पृथ्वी के आसपास के अंतरिक्ष को भी इतना प्रदूषित और इतना नुकसान पहुंचा चुका है, जितना अरबों सालों से पृथ्वी के अन्य सभी जीवों ने नहीं पहुंचाया था। यह भी कड़वा सत्य है कि मानव जैसे-जैसे अपना कथित विकास कर रहा है, उसी के अनुपात में इस धरती, इसकी लाखों-करोड़ों सालों से प्रकृति के अकथ्य परिश्रम से बनाई गई इसकी वन्य और जैवमंडल शृंखला, पर्यावरण और इस पर उपस्थित अन्य सभी वन्य जीवों का विलोपन भी उसी तेज गति से कर रहा है। इसी क्रम में जीव वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे घर-आंगन की प्यारी, नन्ही-मुन्नी पारिवारिक सदस्य गौरैया भी भारत सहित पूरी दुनिया भर में करीब अस्सी फीसद तक तक विलुप्त हो चुकी है।
अगर हम चाहते हैं कि इसे फिर से पुनर्जीवन दिया जाए तो हमें यह प्रतिज्ञा करनी होगी कि हम प्रतिदिन सुबह अपने घर के खुले स्थानों यथा बरामदा या छत आदि पर एक कटोरी साफ पानी अवश्य रखेंगे। किसी ऊंचाई वाले स्थान, जैसे बरामदे के खंभों या छज्जे के नीचे एक घोंसला बना कर जरूर टांगेगे। अपने घर में बने बचे हुए चावल, रोटी या किसी भी भोज्यपदार्थ को फेंकने के बजाय उसे खुली छत या आसपास के पार्कों में एक किनारे डाल दिया करेंगे। अपने घर के आसपास एक-दो पेड़ लगा कर उसे पाल-पोस कर बड़ा जरूर करेंगे।
हम भारत सरकार से यह भी निवेदन भी करते हैं कि जैसे विलुप्त होते बाघों के वंश को बचाने के लिए देश भर में जगह-जगह बाघ अभयारण्य बनाए गए हैं, उसी की तर्ज पर विलुप्ति के कगार पर पहुंची गौरैयों को बचाने के लिए भी देश भर में जगह-जगह छोटे-छोटे ‘गौरैया अभयारण्य’ बनाए जाएं।
इसके लिए शहरों, महानगरों से दूर किसी ऐसी मानव बस्ती का चुनाव करना होगा, जहां मोबाइल टावरों का जाल न हो। वहां खूब पेड़-पौधे और झाड़ियां हों, जहां साल भर अविरल रूप से बहने वाला एक प्रदूषणमुक्त प्राकृतिक जलस्रोत हो।
गौरैयों का जहां बसेरा हो, वहां से उतनी दूरी पर मोबाइल टावरों को लगाने का प्रावधान और सख्त होना चाहिए, जरूरत पड़ने पर सख्त कानून बनना चाहिए, ताकि मोबाइल टावरों से निकलने वाली तीव्र रेडिएशन किरणों से गौरैयों के अंडों, उनके बच्चों और स्वयं उनके स्वास्थ्य पर भी कोई गंभीर खतरा पैदा न हो।
जीव वैज्ञानिकों के अनुसार प्रदूषण, कंक्रीट के घरों की बनावट, कीटनाशकों के प्रयोग के अतिरिक्त गौरैयों के विलुप्तिकरण में मोबाल टावरों यसे निकलने वाली घातक रेडिएशन किरणें भी एक प्रमुख कारण हैं।
"दैनिक सदभावना पाती" (Dainik Sadbhawna Paati)
(भारत सरकार के समाचार पत्रों के पंजीयक – RNI में पंजीकृत, Reg. No. 2013/54381)
"दैनिक सदभावना पाती" सिर्फ एक समाचार पत्र नहीं, बल्कि समाज की आवाज है। वर्ष 2013 से हम सत्य, निष्पक्षता और निर्भीक पत्रकारिता के सिद्धांतों पर चलते हुए प्रदेश, देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर की महत्वपूर्ण खबरें आप तक पहुंचा रहे हैं।
हम क्यों अलग हैं?
बिना किसी दबाव या पूर्वाग्रह के, हम सत्य की खोज करके शासन-प्रशासन में व्याप्त गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार को उजागर करते है, हर वर्ग की समस्याओं को सरकार और प्रशासन तक पहुंचाना, समाज में जागरूकता और सदभावना को बढ़ावा देना हमारा ध्येय है।
हम "प्राणियों में सदभावना हो" के सिद्धांत पर चलते हुए, समाज में सच्चाई और जागरूकता का प्रकाश फैलाने के लिए संकल्पित हैं।
This piece provided a lot of food for thought. It was well-written and very informative. Let’s chat more about it. Feel free to visit my profile for more related content.
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