Religious and Spiritual News Indore : सनातन धर्म के अनुसार धार्मिक अनुष्ठानों में कुश नाम की घास से बना आसन बिछाया जाता है। पूजा-पाठ आदि कर्मकांड करने से इंसान के अंदर जमा आध्यात्मिक शक्ति पुंज का संचय पृथ्वी में न समा जाए, उसके लिए कुश का आसन वि्द्युत कुचालक का काम करता है। इस आसन के कारण पार्थिव विद्युत प्रवाह पैरों से शक्ति को खत्म नहीं होने देता है।
उपासना, आराधना, साधना में कुशा का आसन उत्तम कहा गया है। सर्वप्रथम तो यह असंक्रामक है, दूसरे यह पवित्र है। तीसरे कुशा सरलता से उपलब्ध हो जाती है इसलिए ही कुशा का प्रयोग सर्वमान्य है। शिव पूजा में निषिद्ध पुष्प-पत्र कदम्ब, सारहीन, फूल या कठूमर, केवड़ा, शिरीष, तिन्तिणी, बकुल, कोष्ठ, कैथ, गाजर, बहेड़ा, गंभारी, पत्रकंटक, सेमल, अनार, धव, जूही, मदन्ती, सर्ज और दोपहरिया के फूल भगवान शिव जी पर कभी नहीं चढ़ाने चाहिए।
शुचि, अशुचि और पवित्रता में क्या अंतर है?
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किसी भी अपवित्र अथवा संक्रमण युक्त अपवित्र वस्तु को अशुचि कहते हैं।स्वच्छता बाहरी, अदृश्य वस्तु हैं पर शुचिता अंत:करण की पवित्रता व सूक्ष्म जगत की वस्तु है। जैसे कि कोई स्वच्छ व साफ-सुथरी दिखने वाली वस्तु वास्तव में पवित्र भी हो, यह बिल्कुल आवश्यक नहीं है।कहा जाता है कि धातु सदैव पवित्र रहती है। स्वर्ण अलंकार सदैव पवित्र होते हैं।
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