National News – किसान आन्दोलन ने, किसानों को सभी सरकारों को, समझने की काबिलियत विकसित की।

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"दैनिक सदभावना पाती" (Dainik Sadbhawna Paati) (भारत सरकार के समाचार पत्रों के पंजीयक – RNI में पंजीकृत, Reg. No. 2013/54381) "दैनिक सदभावना पाती" सिर्फ एक समाचार...
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महाकौशल क्षेत्र में खरीब सीजन की मुख्य फसल मक्का है, मक्के का समर्थन मूल्य 1870/- प्रति क्विंटल की घोषणा तो अवश्य की किन्तु 800/- रूपये क्विंटल से लेकर 1400/- रूपये क्विंटल से अधिक पर किसान का मक्का नही बिक सका। खेत और खलिहान खाली कर रवि की फसल की तैयारी तथा साहूकार का कर्जा पटाने के कारण किसान को अपनी फसल ओने-पोने दाम पर बेचने पर मजबूर होना पड़ता है।
जब किसान के पास से मक्का व्यापारी के पास पहुँच गया तो भाव 2000/- रूपये प्रति क्विंटल पर पहुँच गये।
अतिवृष्टि और ओलावृष्टि के कारण किसान की रवि की फसल तथा सब्जी को भारी नुकसान पहुँचा है, जिस समय किसान की फसल नष्ट होती है सरकार किसानों की सान्तवना के लिए सिर्फ यह कहकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर देती है कि वह किसान के साथ खाड़ी है, पर अगर हम धरातल पर देखें तो सरकार किसान के साथ नही बल्कि किसानों को ठगने वाली कम्पनीयों के साथ खड़ी दिखाई दे रही है।
फसल खराब हो जाने के कारण क्षेत्र में किसानों के साथ साथ मजदूर वर्ग भी भुखमरी की चपेट में आ जाता है।
अतिवर्षा, ओलावृष्टि या सूखे के कारण किसान की फसल नष्ट होती है तो गलत सरकारी आंकड़े पटवारी के माध्यम से सरकार तक भेजे जाते है उसी समय विभिन्न वित्तीय संस्थाओं द्वारा कड़ाई से ऋण वसूल की कार्यवाही भी शुरू हो जाती है।
बिजली विभाग, बिजली का बिल ना पटाने के कारण किसानों की मोटर जप्त कर लेते है परिणाम स्वरूप किसानों की आर्थिक रूप से कमर टूट जाती है।
बीजों के मूल्य के साथ उन बीजों से उत्पन्न होने वाली फसलों की बीमें की प्रीमियम की राशि भी सरकार द्वारा ले ली जाती है, फसल बीमा के नाम पर सरकार 1982 से प्रीमियम की राशि काट रही है किन्तु फसल बीमा के नाम पर किसानों को 1 रूपये और 2 रूपये चैक की राशि किसान को देकर किसान का अपमान करने का काम सरकार द्वारा किया जाता रहा है, इस राशि को प्राप्त करने के लिए भी किसानों को घण्टों बैंक की लाईन में खड़े रहना पड़ता है।
75 सालों में कोई भी सरकार किसान के पक्ष में काम करती दिखाई नही दे रही है। फसलों के खराब हो जाने के कारण जहाँ किसान बिलकुल खाली हाथ हो गया है वहीं मजदूर वर्ग भी बेरोजगार हो गया है।
खाली किसान एवं मजदूर वर्ग स्वभाविक रूप से किसान आन्दोलन की ओर आकृषित हो रहा है।
तीन किसान विरोधी कानून रद्द करने के पश्चात् केन्द्र सरकार ने किसानों पर किसान आन्दोलन के दौरान लादे गये फर्जी मुकदमें वापस लेने तथा सभी कृषि उत्पाद की समर्थन मूल्य पर खरीदी का कानून बनाने की बात कही थी, किन्तु सरकार अपने वादे से मुकर गई, इसलिए किसान 31 जनवरी को सरकार के खिलाफ धिक्कार दिवस मनाने पर मजबूर है।
सन् 1997 में किसानों की फसलें अतिवृष्टि और ओलावृष्टि के कारण खराब हुई, सोयाबीन की फसल गेरूआ रोग के कारण पूर्णतः नष्ट हो चुकी थी, किसान के पास अपने बच्चों को खिलाने के लिए अनाज नही था जानवर भूख से तड़फ तड़़फ कर मर रहे थे उपर से बिजली विभाग, बैंक एवं सोसाईटी कर्ज की वसूली के लिए किसानों को नोटिस भेज रहे थे।
किसानों ने सरकार के खिलाफ आन्दोलन का रूख अपनाया, आन्दोलन का केन्द्र बिन्दु मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में स्थित मुलताई क्षेत्र रहा, जिसमें सबसे पहले फसल बीमा की राशि की मांग की, किसान अपनी नष्ट हुई फसल का मुआवजा मांगने के लिए 12 जनवरी 1998 को तहसील परिसर मुलताई में एकत्रित हुए, सरकार ने चैबिस किसानों को गोली से भूंज डाला, 150 किसान घायल हुए, 250 किसानों पर एक ही घटना के 67 मुकदमें लादे गये और 4 आन्दोलनकारियों को झूठे मुकदमें में झूठी गवाही दिलवाकर किसानों का नेतृत्व करने के आधार पर आजीवन कारावास की सजा देकर आन्दोलनकारियों एवं किसानों को डराने का प्रयास किया गया। जब जब किसान ने अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए आवाज बुलंद की सरकार ने किसानों पर गोलीचालन करके उन्हें डराने का प्रयास किया चाहे मन्दसौर की बात हो या बरेली की किन्तु किसान आन्दोलन की आग  अंदर ही अंदर सुलगती चली गई। दिल्ली की सीमा पर बैठे किसानों ने केन्द्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अब बहुत हो गया किसानों की अन्देखी का सवाल। अबकी बार किसान सरकार को झुका कर ही माने और तीन किसान विरोधी कानून रद्द करने पर सरकार को मजबूर किया। किसान का आन्दोलन समाप्त नही हुआ है आन्दोलन अलग अलग स्टेप में चलता है और एक बार फिर देश का अन्नदाता सरकार के छलावे के खिलाफ अवाज बुलंद करने के लिए एक जुट हो रहा है। 31 जनवरी को देश भर का किसान सरकार के वादा खिलाफी के खिलाफ धिक्कार दिवस मनाकर सरकार को लोहे के चने चबाने पर मजबूर करेंगा। कर्जा मुक्ति पूरा दाम के अधिकार की लड़ाई जारी है।
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"दैनिक सदभावना पाती" (Dainik Sadbhawna Paati) (भारत सरकार के समाचार पत्रों के पंजीयक – RNI में पंजीकृत, Reg. No. 2013/54381) "दैनिक सदभावना पाती" सिर्फ एक समाचार पत्र नहीं, बल्कि समाज की आवाज है। वर्ष 2013 से हम सत्य, निष्पक्षता और निर्भीक पत्रकारिता के सिद्धांतों पर चलते हुए प्रदेश, देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर की महत्वपूर्ण खबरें आप तक पहुंचा रहे हैं। हम क्यों अलग हैं? बिना किसी दबाव या पूर्वाग्रह के, हम सत्य की खोज करके शासन-प्रशासन में व्याप्त गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार को उजागर करते है, हर वर्ग की समस्याओं को सरकार और प्रशासन तक पहुंचाना, समाज में जागरूकता और सदभावना को बढ़ावा देना हमारा ध्येय है। हम "प्राणियों में सदभावना हो" के सिद्धांत पर चलते हुए, समाज में सच्चाई और जागरूकता का प्रकाश फैलाने के लिए संकल्पित हैं।