Education News – यूक्रेन में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे  हजारों छात्रों का भविष्य  पूरी तरह से खतरे में, पीएम मोदी से लगाई गुहार

By
sadbhawnapaati
"दैनिक सदभावना पाती" (Dainik Sadbhawna Paati) (भारत सरकार के समाचार पत्रों के पंजीयक – RNI में पंजीकृत, Reg. No. 2013/54381) "दैनिक सदभावना पाती" सिर्फ एक समाचार...
4 Min Read

यूक्रेन में करीब सात से आठ हजार विद्यार्थी एमबीबीएस की अंतिम वर्ष की पढाई कर रहे हैं, लेकिन  बच्चों की पढ़ाई खत्म होने से पहले ही उन्हें वापस बुलाना पड़ रहा है। आगे क्या होगा? यह किसी को नहीं पता
Education News. यूक्रेन में चिकित्सा शिक्षा ले रहे सात हजार भारतीय छात्रों का भविष्य खतरे में आ गया है। यह सभी विद्यार्थी अलग-अलग मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस के तीसरे और अंतिम वर्ष के छात्र हैं, जिनकी परीक्षाएं भी नजदीक थीं, लेकिन उससे पहले ही रूसी सेना ने हमला कर दिया।
इन छात्रों की वतन वापसी शुरू हो चुकी है। ऐसे में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने छात्रों के भविष्य को लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। उनका कहना है कि छात्रों का भविष्य पूरी तरह से खतरे में है। आगे की पढ़ाई के बारे में अब तक कुछ भी स्पष्ट नहीं है।
अगर आगामी दिनों में यूक्रेन के कॉलेज इन छात्रों को डिग्री देते भी हैं तो भी इन्हें भारत में नेशनल एग्जिट टेस्ट (नेक्स्ट) देना होगा, जो अगले साल से सभी के लिए अनिवार्य रहेगी। चूंकि, विदेश से पढ़कर भारत आने वाले छात्रों के लिए यहां का स्क्रीनिंग टेस्ट हमेशा से एक बड़ी चुनौती भी रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार से इन छात्रों के भविष्य को लेकर जल्द से जल्द निर्णय लेने की मांग भी की जा रही है।

प्रोग्रेसिव मेडिकोज एंड साइंटिस्ट फोरम के महासचिव डॉ. सिद्धार्थ तारा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर तत्काल फैसला लेने की मांग की है, ताकि छात्र-छात्राएं और उनके परिजनों को कुछ दिलासा मिल सके।

उन्होंने बताया कि यूक्रेन में करीब 22 हजार से ज्यादा छात्र-छात्राएं हैं, जिनमें से करीब सात से आठ हजार विद्यार्थी एमबीबीएस अंतिम वर्ष से हैं। मंगलवार को खारकीव में एमबीबीएस अंतिम वर्ष के छात्र नवीन कुमार की हमले में मौत हुई है।

डॉ. तारा का कहना है कि जिन छात्रों ने बैंक लोन लेकर वहां प्रवेश लिया है उनके लिए यह सबसे ज्यादा घातक स्थिति है। क्योंकि, बच्चों की पढ़ाई खत्म होने से पहले ही उन्हें वापस बुलाना पड़ रहा है। आगे क्या होगा? यह किसी को नहीं पता, लेकिन भारत सरकार को तत्काल इनके बारे में विचार करना चाहिए।

डॉ. तारा का कहना है कि भारत के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में जब किसी छात्र-छात्रा को प्रवेश नहीं मिल पाता है तो वह विदेश का विकल्प चुनता है। यह इसलिए भी कि भारत के प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की तुलना में बाहर से एमबीबीएस करना कम खर्चीला है। अब ये छात्र वापस आ रहे हैं, ऐसे में भारत सरकार को यह भी बताना चाहिए कि अगर इनको हम अपने देश में एक मौका देंगे तो क्या उन्हें सरकारी संस्थान मिलेगा? क्योंकि, प्राइवेट कॉलेज में इन्हें एडमिशन मिलता भी है, तब भी हर किसी के परिजन खर्चा वहन नहीं कर पाएंगे।

पढ़ाई पर भारत में होता है ज्यादा खर्च
फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (फेमा) के सदस्य डॉ. राकेश बागड़ी का कहना है कि भारत के किसी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस पूरा करने में करीब एक करोड़ रुपये से भी अधिक खर्च होता है, जबकि यही कोर्स यूक्रेन के किसी भी मेडिकल कॉलेज से 27 से 28 लाख रुपये में होता है। यूक्रेन में रहना भी बहुत अधिक महंगा नहीं है। अगर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से तुलना करें तो खारकीव या कीव जैसे शहर का जीवन यापन लगभग बराबर ही है।

Share This Article
Follow:
"दैनिक सदभावना पाती" (Dainik Sadbhawna Paati) (भारत सरकार के समाचार पत्रों के पंजीयक – RNI में पंजीकृत, Reg. No. 2013/54381) "दैनिक सदभावना पाती" सिर्फ एक समाचार पत्र नहीं, बल्कि समाज की आवाज है। वर्ष 2013 से हम सत्य, निष्पक्षता और निर्भीक पत्रकारिता के सिद्धांतों पर चलते हुए प्रदेश, देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर की महत्वपूर्ण खबरें आप तक पहुंचा रहे हैं। हम क्यों अलग हैं? बिना किसी दबाव या पूर्वाग्रह के, हम सत्य की खोज करके शासन-प्रशासन में व्याप्त गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार को उजागर करते है, हर वर्ग की समस्याओं को सरकार और प्रशासन तक पहुंचाना, समाज में जागरूकता और सदभावना को बढ़ावा देना हमारा ध्येय है। हम "प्राणियों में सदभावना हो" के सिद्धांत पर चलते हुए, समाज में सच्चाई और जागरूकता का प्रकाश फैलाने के लिए संकल्पित हैं।