अपार पुरातत्व संपदा का धनी मध्यप्रदेश
(लेखक-निलय श्रीवास्तव)
सांची घूमना हो या घूमना हो खजुराहो, आपको आना ही पड़ेगा देश के हृदय स्थल मध्यप्रदेश में। एक बड़े भूभाग में फैले मध्यप्रदेश के चारों तरफ पुरातत्व महत्व का ऐसा बिछौना है जो यहाँ की शान है। सांची और खजुराहो विश्व के मूल्यवान पुरातत्व धरोहरों में गिने जाते हैं।
अकूत पुरा सम्पदा से सम्पन्न मध्यप्रदेश के झाबुआ से लेकर मंडला तक जिधर नजर घुमाएंगे,उधर आपको देखने को मिल जाएगा। मध्यप्रदेश सभी .ष्टि से सम्पन्न और विविधता वाला राज्य है।
देश में यह अपनी तरह का इकलौता प्रदेश है जहाँ बने दर्शनीय स्थल पर्यटकों को अपने पास बुलाते हैं, तो मंडला से झाबुआ तक पुरातत्व की इमारतें लोगों को मोहित करती हैं।
एक ओर जहाँ पुरातात्विक धरोहर भारतीय संस्.ति दर्शाते हैं वहीं अन्य ऐतिहासिक स्थल विश्व पटल पर प्रसिद्धि पा चुके हैं। आलम यह है कि इन स्थलों की एक झलक पाने के लिये विदेशी पर्यटक चुम्बक की तरह खिंचे चले आते हैं।
यहाँ बताते चलें कि विदेशी पर्यटकों के आकर्षण के प्रमुख केन्द्र बिन्दु खजुराहो के कलात्मक मंदिर तथा धार्मिक स्थल ओरछा हैं। यह हमारे लिये गौरव की बात है कि विश्व की मूल्यवान पुरातत्व धरोहरों में भारत के जो सोलह स्मारक हैं उनमें से दो साँची और खजुराहो मध्यप्रदेश में ही हैं। यह स्मारक विश्व भर में अपनी वैभवता तथा प्राचीनता के लिये जाने जाते हैं।
इनके अलावा भी प्रदेश में अनेक ऐसे पुरातन स्थल मौजूद हैं जिनकी भव्यता देखते ही बनती है। कुछ तो अपना अस्तित्व ही खोने की कगार पर हैं वहीं कई स्थल सरकार की गहन निगरानी तथा देखरेख में हैं। इन स्थलों में समय- समय पर सुधार तथा मरम्मत का काम चलता रहता है।
1953 में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन का केंद्र बनने और विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले खजुराहो के संरक्षण तथा विकास के लिये सर्वप्रथम सन् 1904 में काम शुरू हुआ था। खजुराहो के मंदिरों की खोज, जीर्णोद्धार संरक्षण आदि के लिये सन् 1927 तक काम चला था।
अनेक मंदिर जो टूट- फूटकर नष्ट हो चुके थे, सैकड़ों मूर्तियाँ जमीन में दबी हुई बिखरी पड़ी थीं, उन्हें पुरातत्ववेत्ताओं ने व्यवस्थित कर पुन: मंदिरों के अंदर स्थापित किया।
सन् 1950 दशक में चंदेल शासकों ने ही यहां भव्य मंदिरों का निर्माण कराया था। मंदिरों की कारीगरी को देखकर आभास होता है कि इस स्थापत्य कला ने जीवन तथा प्रेम का सामंजस्य बेजान पत्थरों के द्वारा लोगों को उपहार स्वरूप दिया है।
किंवदंती है कि लगभग एक हजार साल पहले चंदेल के राजपूत राजाओं ने खजुराहो में लगभग 85 मंदिरों का निर्माण करवाया था। इनमें से अब केवल 22 मंदिर ही सुरक्षित हैं।
खजुराहो की ही तरह साँची पुरातात्विक तथा ऐतिहासिक .ष्टि से प्रमुखता पा चुका हैं। साँची एक ऐसा प्राचीन और दार्शनिक स्थल है जिसके कारण विश्व के कई देशों में मध्यप्रदेश को पहचान मिली और इसे देखने पर्यटक यहां आते रहे। साँची के बौद्ध स्तूप विशेषत: दर्शनीय हैं। पर्यटक इन्हें देखकर उत्साहित होते हैं तथा इनके चित्र यादगार के रूप में अपने साथ ले जाते हैं।
साँची के बौद्ध स्तूपों की देखभाल प्रमुखता से की जाती है। प्रयास किया जाता है कि देश तथा विदेश से आने वाले दर्शनार्थियों को किसी असुविधा का सामना न करना पड़े। सांची दो देशों को जोड़ने वाला एक प्रमुख स्थान है। पर्यटन तथा तीर्थ स्थल ओरछा एक छोटा सा गांव हैं परन्तु उसकी ऐतिहासिक कीर्ति-किंवदंतियों का कोई ओर-छोर नहीं है।
शायद यही कारण है कि खजुराहो और सांची के बाद विदेशी पर्यटकों की पसंद ओरछा है। प्राप्त संदर्भों के अनुसार चार शताब्दियों तक यहाँ के प्रतापी राजवंश का डंका मध्य भारत में बजता रहा था।
शक्ति, संपदा,कला और गरिमामय वैभवशाली स्वरूप लिए हुए यह नगर इतिहास की करवट से खंडहरों में बदल गया था लेकिन वही ओरछा आज पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। ओरछा के शेष बचे महल और मंदिर अपने इतिहास, कला तथा शिल्प सौंदर्य से दर्शनों के लिये मौजूद हैं।
अपने गौरवशाली अतीत को उजागर करने वाला मध्यप्रदेश का एक अन्य जिला मंदसौर में स्थित है हिंगलाजगढ़। वहाँ का पुरातात्विक वैभव लगभग एक हजार वर्ष पुराना है। हिंगलाजगढ़ में परमारकालीन शिल्प कला.तियों का अद्भुत सौंदर्यशाली खजाना बिखरा पड़ा था।
यहां के अवशेषों पर कलात्मक मूर्तियों के विशाल भण्डार से यह स्पष्ट है कि कभी यह वैभवशाली नगर रहा होगा। कला का इतना विशाल खजाना शताब्दियों तक घने जंगलों के बीच छिपा रहा और सन् 1978 में पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के प्रयासों से इन्हें खोज निकाला गया।
तभी से इन्हें संरक्षित तथा सुरक्षित रखा गया है। शिवपुरी जिले के पिपरोदा गांव में 9 वीं शती ई.में प्रतिहार कला में बनाये गये विष्णु देव और शिव मंदिर को संरक्षित कर उनके रखरखाव पर ध्यान दिया जा रहा है। यहाँ समूह में निर्मित विष्णु एवं शिव मंदिरों को सूक्ष्म .ष्टि से देखने पर ज्ञात होता है कि पूर्व में भी मानव एक दूसरे के धर्मो के समावेश में विश्वास रखते थे।
मध्यप्रदेश की विशाल और बहुमूल्य पुरा सम्पदा की देखरेख तथा सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। हालांकि बहुमूल्य प्राचीन मूर्तियों को तस्करी के जरिये बाहर भेजने और मालामाल होने का कारोबार खूब फलने-फूलने की सूचना आती रही है तो राज्य शासन की सजगता से तस्कर अपने इरादों में कामयाब नहीं हो पाते हैं। उल्लेखनीय है कि भारत में बनी तथा भारतीयों द्वारा अब तक न देखी गयप सैकड़ों मूर्तियाँ सदा- सदा के लिये हमारे देश से चली जावेगी।
देश के अलग-अलग हिस्सों से हर साल कितनी प्राचीन कला.तियां चोरी होती हैं इसका अनुमान लगाना सहज नहीं। लेकिन सतर्कता के कारण मध्यप्रदेश में ऐसी घटनाएं यदा-कदा ही होती हैं जो संतोष की बात है। यह हमारा सौभाग्य है कि मध्यप्रदेश में अपार पुरातत्व संपदा है।
स्मरण रहे कि मध्यप्रदेश की स्थापना के समय पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग की पुरातत्वीय धरोहरों के संरक्षण के लिये सिर्फ छह संग्रहालय ही मिले थे। आज इनकी संख्या बढ़कर तीन गुना से भी ज्यादा है। इस दिशा में प्रयास लगातार जारी हैं। मध्यप्रदेश अपनी पुरा सम्पदा के लिए अलग ख्याति रखता है। अपनी इसी तरह की अलग विशेषताओं के कारण मध्यप्रदेश को देश का हृदय प्रदेश कहा जाता हैं।