मप्र सरकार का नया प्रयोग – हवन और मंत्रोच्चार के बाद खेतों में होगी बोवनी

sadbhawnapaati
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मिट्टी की घटती उर्वरकता और रसायनिक खेती से नुकसान को देखते हुए अब देश में प्राकृतिक खेती  को बढ़ावा दिया जाएगा। प्राकृतिक खेती मिट्टी के संरक्षण और लागत में जैविक खेती से भी सस्ती है। लिहाजा, शिवराज सरकार ने मध्यप्रदेश प्राकृतिक कृषि विकास बोर्ड बनाया है। इसमें खेतों में हवन और मंत्रोच्चार के बाद बोवनी करने जैसे प्रयोग किए जाएंगे।
बोर्ड के बनने के बाद प्रदेश में प्राकृतिक खेती करने वाले इच्छुक किसानों के लिए अलग से पोर्टल बनेगा। इसमें रजिस्ट्रेशन के बाद किसानों को प्राकृतिक खेती करने की ट्रेनिंग मिलेगी। किसानों की फसलों की टेगिंग, सर्टिफिकेशन, मार्केटिंग से ब्रांडिंग तक का जिम्मा सरकार का होगा। कृषि विभाग इसे अपनी आत्मा योजना के साथ ही क्रियान्वयन में लाएगा।
अभी प्रदेश सरकार के पास प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों का रिकॉर्ड नहीं है। जबकि मध्यप्रदेश जैविक खेती में 16 लाख हैक्टेयर पर उत्पादन के साथ देश में पहला है। देश में प्राकृतिक खेती पर जोर देने के लिए हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने 13 अप्रैल को एक प्रजेंटेशन दिया था।
नीति आयोग की वर्चुअल बैठक में 25 अप्रैल को प्रमुख राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने प्राकृतिक खेती पर बात की थी। इसमें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री मौजूद थे। इसके अगले ही दिन सीएम शिवराज ने कैबिनेट में प्राकृतिक कृषि विकास बोर्ड बना दिया।

कैसे काम करेगा बोर्ड

बोर्ड प्राकृतिक खेती करने के लिए किसानों को ट्रेनिंग देगा। ट्रेनिंग के लिए अफसरों और विषय विशेषज्ञों की टीम बनेगी। अलग से टॉस्क फोर्स भी बनेगा। अगले महीने से प्रदेश में रजिस्टर्ड किसानों के गांव और घरों पर जाकर प्राकृतिक खेती के गुर सिखाएंगे।
क्या है प्राकृतिक खेती
प्राकृतिक खेती कृषि की प्राचीन पद्धति है। यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। इसमें रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है। इस प्रकार की खेती में जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को खेती में कीटनाशक के रूप में काम में लिया जाता है।

जैविक खेती से बेहतर है प्राकृतिक खेती

जैविक खेती में जैविक उर्वरक और खाद जैसे- कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, गाय के गोबर की खाद आदि का उपयोग किया जाता है और बाहरी उर्वरक का खेतो में प्रयोग किया जाता है। प्राकृतिक खेती में मिट्टी में न तो रासायनिक और न ही जैविक खाद डाली जाती है।
गाय के गोबर, जीवामृत(जीव अमृत)-बीजामृत(बीज अमृत) से खेती हो सकती है। खेतों में हवन और मंत्रोच्चार करने के बाद बोवनी होती है। सूर्य और चांद की ऊर्जा को देखकर खेती की जाती है।
प्राकृतिक खेती के फायदे
भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है। सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है। रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है और फसलों की उत्पादकता में वृद्धि। बाजार में गैर रसायनिक उत्पादों की मांग बढऩे से किसानों की आय में भी वृद्धि होती है।
जैविक खेती के नुकसान
इसमें खाद्य पदार्थों की उत्पादकता बहुत कम होती है। पारंपरिक खेती की तुलना में जैविक खेती से फसलों की उपज काफी कम होती है।
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