🌿 विकास की खलबली में,
🌳 चढ़ता पेड़ ही क्यों बलि?
🌸 खिलने से पहले ही
🥀 मसली जाती क्यों कली?
🌬️ क्या लेते नहीं साँस वो,
🦸♂️ जो स्वयंभू हैं महाबली?
🧠 विधाता दे इन्हें सुबुद्धि —
💔 न हो वृक्ष-प्रेम ये नकली।
🔥 जले ज्वाला ये अखंड,
🕯️ न बुझे लौ जो है जली।
✨ जागी है दिलों में आस —
👣 दें विरासत पीढ़ी अगली।
🌏 वसुंधरा ये हो फिर धानी,
💐 कर के श्रृंगार ये असली।
🙏 मन में विश्वास है आज,
🌱 हरियाली की इच्छा पली।
🌳 आओ, लगाएँ वृक्ष द्वारे —
🏡 चौक-चौबारे, गाँव-गली।
– ✍️ अखिलेश जैन “अखिल”