नवरात्रि का दूसरा दिन– मां ब्रह्मचारिणी

Dr. Gopaldas Nayak
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Dr. Gopaldas Nayak
I am currently working in Government College Khandwa, I have been doing teaching work for the last several years and also writing work in various genres
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डॉ. गोपालदास नायक, खंडवा

माता ब्रह्मचारिणी की उपासना के लिए समर्पित है। उनका स्वरूप तप, संयम और आत्मबल का प्रतीक है। इनका बीज मंत्र “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥”

(अर्थात–मैं देवी चामुंडा को प्रणाम करता हूँ, जो ज्ञान, पवित्रता, प्रेम और शक्ति की अधिष्ठात्री हैं। वे हमारे जीवन से नकारात्मकता का नाश कर हमें आंतरिक बल, शांति और विजय प्रदान करती हैं।)

इसका जाप साधक को आंतरिक शक्ति और आत्मिक संतुलन प्रदान करता है। यह मंत्र केवल देवी का आह्वान ही नहीं करता, बल्कि जीवन दर्शन भी सिखाता है।

माँ ब्रह्मचारिणी ने अपने जीवन में कठोर तप कर यह सिद्ध किया कि सबसे बड़ी शक्ति बाहरी साधनों में नहीं, बल्कि आंतरिक धैर्य और आत्मनियंत्रण में होती है। उनका संदेश है कि कठिनाइयाँ बाधा नहीं, बल्कि आत्मबल जागृत करने का अवसर होती हैं।

वर्तमान सामाजिक परिवेश में यह शिक्षा अत्यंत प्रासंगिक है। आज का समाज भौतिक सुख और उपभोक्तावाद की दौड़ में उलझा हुआ है। धैर्य और अनुशासन जैसी बातें पीछे छूटती जा रही हैं। विद्यार्थी यदि शिक्षा को केवल सफलता की प्रतिस्पर्धा न मानकर तप और साधना की तरह अपनाएँ, तो वे स्थायी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

रिश्तों की स्थिति भी इसी भौतिक प्रवृत्ति से प्रभावित हो रही है। आज संबंध प्रायः स्वार्थ और सुविधा पर आधारित हो गए हैं। बीज मंत्र के “ह्रीं” और “क्लीं” हमें याद दिलाते हैं कि रिश्तों की नींव पवित्रता और सामंजस्य पर ही टिक सकती है।

नेतृत्व और राजनीति में भी ब्रह्मचारिणी का आदर्श महत्वपूर्ण है। सत्ता और लाभ की लालसा से ऊपर उठकर त्याग और संयम ही सच्चा नेतृत्व दे सकता है। समाज की सेवा वही कर सकता है, जिसके भीतर तप और अनुशासन की शक्ति हो।

नवरात्रि का दूसरा दिन हमें यह स्मरण कराता है कि संयम, तप और आत्मबल ही जीवन की सबसे बड़ी विजय है। माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप वर्तमान समय में हमें भीतर से यह प्रेरणा देता है कि स्वयं पर नियंत्रण ही वास्तविक शक्ति है, और यही शक्ति व्यक्ति व समाज दोनों के उत्थान का मार्ग प्रशस्त करती

है।

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