डॉ. गोपालदास नायक, खंडवा
नवरात्रि का चौथा दिन माँ कुष्मांडा की साधना को समर्पित है। उनका स्वरूप सृष्टि की आद्यशक्ति के रूप में वर्णित है। शास्त्रों में कहा गया है कि माँ कुष्मांडा ने अपने सहज हास्य और दिव्य ऊर्जा से ब्रह्मांड का निर्माण किया। उनका बीज मंत्र है—
“ॐ क्लीं कुष्माण्डायै नमः॥”
(अर्थात—हे माँ कुष्मांडा, आपको प्रणाम है। आप ही सृष्टि की मूल शक्ति हैं, जिन्होंने अंधकार को दूर कर प्रकाश और जीवन का संचार किया।) इस प्रकार यह मंत्र साधक को ज्ञान, ऊर्जा और सृजनशीलता की ओर प्रेरित करता है।
माँ कुष्मांडा का संदेश यह है कि प्रसन्नता, सकारात्मक ऊर्जा और सृजनशील दृष्टि से ही जीवन में संतुलन और विकास संभव है। उनका स्वरूप हमें यह सिखाता है कि कठिन परिस्थितियाँ हों या अंधकार, भीतर की आंतरिक शक्ति और आनंदमय दृष्टिकोण से सब कुछ प्रकाशमय बनाया जा सकता है।
आज के सामाजिक परिवेश में यह शिक्षा विशेष रूप से प्रासंगिक है। आधुनिक जीवन तनाव, प्रतिस्पर्धा और असंतोष से भरा हुआ है। लोग भौतिक संसाधनों में प्रगति करते हुए भी भीतर से रिक्तता अनुभव कर रहे हैं। ऐसे समय में माँ कुष्मांडा का यह बीज मंत्र हमें याद दिलाता है कि वास्तविक सुख बाहर नहीं, बल्कि भीतर की प्रसन्नता, प्रेम और सामंजस्य में छिपा है। यदि परिवार और समाज के लोग सकारात्मक दृष्टि से जीवन जिएँ, एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सहयोग बनाएँ, तो सामाजिक अंधकार भी दूर हो सकता है।
नवरात्रि का चौथा दिन इसलिए हमें यह प्रेरणा देता है कि हम माँ कुष्मांडा की तरह अपने भीतर ऊर्जा और प्रकाश को जगाएँ और समाज में सामंजस्य व आनंद का वातावरण स्थापित करें।