डॉ. गोपालदास नायक, खंडवा
नवरात्रि का पाँचवाँ दिन माँ स्कंदमाता की उपासना का दिन है। माँ का यह स्वरूप मातृत्व, करुणा और संरक्षण का प्रतीक है। उनका बीज मंत्र है—
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
(अर्थात– हे माँ स्कंदमाता, आपको प्रणाम है। आप स्कंद (कार्तिकेय) की माता हैं, जो करुणा और वात्सल्य की मूर्ति हैं। आपके स्मरण से साधक को संतुलन, संरक्षण और शांति प्राप्त होती है।)
माँ स्कंदमाता का स्वरूप यह सिखाता है कि मातृत्व केवल संतान तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे समाज और सृष्टि के प्रति जिम्मेदारी का भाव है। वे हमें यह संदेश देती हैं कि करुणा और वात्सल्य से ही जीवन में संतुलन और प्रेम संभव है।
वर्तमान सामाजिक परिवेश में यह शिक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज परिवारिक रिश्तों में दरारें बढ़ रही हैं और समाज में असंवेदनशीलता पनप रही है। ऐसे समय माँ स्कंदमाता का आदर्श हमें याद दिलाता है कि सच्चा विकास केवल भौतिक नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और करुणा से ही संभव है। यदि हम अपने संबंधों में मातृत्व जैसी करुणा और संरक्षण का भाव लाएँ तो समाज अधिक मानवीय और सहयोगी बन सकता है।
नवरात्रि का पाँचवाँ दिन इसलिए हमें यह स्मरण कराता है कि माँ स्कंदमाता की उपासना केवल पूजा नहीं, बल्कि जीवन में करुणा, वात्सल्य और संरक्षण को अपनाने का संकल्प है। यही मार्ग हमें शांति और सामंजस्य की ओर ले जाता है।