भोपाल। जनजातीय कार्य विभाग द्वारा हाल ही में किए गए 88 प्राचार्य, व्याख्याता, उच्च माध्यमिक शिक्षक, शिक्षक एवं माध्यमिक शिक्षकों के स्थानांतरण पर विवाद खड़ा हो गया है। विभागीय मंत्री के विधानसभा क्षेत्र में बड़ी संख्या में पदस्थापना किए जाने और स्थानांतरण नीति की अनदेखी से शिक्षकों में गहरा आक्रोश है।
भोपाल और आसपास में रिक्तियां, फिर भी दूर भेजे गए शिक्षक
भोपाल जिले में इसी वर्ष नया कन्या शिक्षा परिसर खोला गया है, जिसमें प्राचार्य सहित लगभग 42 पद भरे जा सकते हैं। ज्ञानोदय आवासीय विद्यालय, भोपाल में लगभग 12 पद रिक्त हैं, जबकि भोपाल के नज़दीक कन्या शिक्षा परिसर, रायसेन में 15 पद खाली पड़े हैं। आदिवासी ब्लॉक केसला में ही लगभग 200 पद रिक्त हैं, जिनमें केवल सामाजिक विज्ञान के 13 पद खाली हैं। जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर संभागों में भी अनेक पद खाली हैं।
शिक्षकों का कहना है कि इन रिक्तियों में समायोजन आसानी से हो सकता था, लेकिन बीच सत्र में दूरस्थ जिलों में तबादला कर दिया गया।
मंत्री के क्षेत्र में कराए गए तबादले
सूत्रों के अनुसार, 88 में से 48 अधिकारी-कर्मचारी अपने संभाग से बाहर भेजे गए हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि सभी 88 शिक्षक अन्य जिलों से स्थानांतरित किए गए हैं, जिनमें 26 महिलाएंbभी शामिल हैं।
यही नहीं, 44 माध्यमिक शिक्षक व शिक्षक, जो संभागीय कैडर में आते हैं, उन्हें भी प्रशासनिक नियमों के विपरीत संभाग से बाहर भेज दिया गया है। इनमें से 27 तो पूरी तरह अन्य संभागों के हैं।
पारिवारिक जीवन और स्थानीय शिक्षकों पर असर
बीच सत्र में किए गए इन तबादलों से शिक्षकों का पारिवारिक जीवन प्रभावित होना तय है। पति-पत्नी दोनों सेवारत शिक्षकों को अलग-अलग जिलों में भेजा गया है। जिन शिक्षकों को खालवा (खंडवा) जैसे दूरस्थ क्षेत्रों में भेजा गया है, वे वहाँ भी अति शेष की स्थिति में आ जाएंगे, क्योंकि पद ही पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं हैं ।
इस निर्णय से वर्षों से सेवा दे रहे स्थानीय अतिथि शिक्षक बेरोज़गार हो जाएंगे। उनका कहना है कि विभाग के इस रवैये से उनके जीवनयापन पर संकट खड़ा हो गया है।
शिक्षकों का आरोप – पुरस्कार की जगह सज़ा मिली
शिक्षकों ने आरोप लगाया कि वे एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों के फाउंडर शिक्षक रहे हैं। उनसे वर्षों तक भरपूर काम लिया गया, लेकिन कोई अतिरिक्त मानदेय नहीं दिया गया। अब जब स्थायी पदस्थापना की बारी आई तो उन्हें दूर-दराज़ भेजकर पुरस्कार की जगह सज़ा दी गई है।
विभाग पर उठ रहे सवाल
शिक्षकों का कहना है कि विभाग के पास एक वर्ष से अधिक समय था, जिसमें काउंसलिंग कर उचित पदस्थापना की जा सकती थी। फरवरी में काउंसलिंग प्रक्रिया भी पूरी की गई, लेकिन आदेश जारी नहीं हुए। बाद में बिना नीति का पालन किए मनमाने तबादले कर दिए गए।
ट्रांसफर नीति के तहत ग्रामीण क्षेत्रों से शिक्षकों को विशिष्ट विद्यालयों में बिना परीक्षा दिए भोपाल में नियुक्त किया गया, जबकि परीक्षा देकर भोपाल में पदस्थ शिक्षक ग्रामीण क्षेत्रों में भेज दिए गए।
इस पूरे प्रकरण ने विभागीय कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। शिक्षकों का आक्रोश लगातार बढ़ रहा है और उनका कहना है कि यदि निर्णय पर पुनर्विचार नहीं हुआ तो वे आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।