डॉ. एम राठौर
भारत त्योहारों की भूमि है, जहाँ हर पर्व अपने साथ कोई न कोई सन्देश लेकर आता है। इन्हीं में सबसे सुंदर और पवित्र पर्व है दीवाली — जिसे प्रकाश पर्व भी कहा जाता है। यह केवल दीप जलाने का त्योहार नहीं बल्कि अंधकार से उजाले, बुराई से अच्छाई और निराशा से आशा की यात्रा का प्रतीक है। दीवाली हमें यह सिखाती है कि जैसे एक दीपक अंधेरे को मिटा देता है, वैसे ही प्रेम, सत्य और सद्भाव से जीवन की हर नकारात्मकता को दूर किया जा सकता है। यह पर्व भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की स्मृति में मनाया जाता है। जब प्रभु श्रीराम, सीता माता और लक्ष्मण जी लौटे, तो अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में दीप जलाए। उसी दिन से दीपावली के रूप में यह परंपरा प्रारंभ हुई। परंतु इस त्योहार का अर्थ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और मानवीय भी है। यह हमें जोड़ने, रिश्तों को पुनर्जीवित करने और भीतर की रोशनी को जगाने का अवसर देता है।आज के समय में जब भागदौड़, व्यस्तता और तनाव ने जीवन को घेर लिया है, तब दीवाली हमें फिर से अपनों के करीब लाती है। यह वह दिन है जब परिवार, रिश्तेदार और मित्र एक साथ मिलते हैं, हँसी बाँटते हैं, मिठाई खाते हैं और पुराने मनमुटाव भुला देते हैं।
यही असली दीवाली है —
जब हम दिलों के बीच की दूरी मिटाकर एक-दूसरे से फिर जुड़ते हैं। घरों की सफाई और सजावट के साथ-साथ यह पर्व हमें अपने मन की सफाई का भी अवसर देता है। जैसे हम अपने घर का कचरा बाहर निकालते हैं, वैसे ही हमें अपने मन से ईर्ष्या, द्वेष और घृणा जैसी नकारात्मक भावनाओं को भी बाहर करना चाहिए। दीवाली का सच्चा अर्थ तभी पूर्ण होता है जब हम अपने भीतर के अंधकार को मिटाकर प्रेम और शांति की ज्योति जलाते हैं। दीवाली हमें सिखाती है कि भले ही हमारे पास धन न हो, लेकिन सच्चा सुख अपनों के साथ बिताए पलों में है। लक्ष्मी पूजन केवल धन की आराधना नहीं, बल्कि मेहनत, ईमानदारी और संतोष की पूजा है। हमें यह समझना चाहिए कि सच्ची लक्ष्मी वही है जो परिश्रम से अर्जित हो और समाज के हित में उपयोग की जाए। इस दिन हमें गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करनी चाहिए, क्योंकि असली दीवाली तब होती है जब हम किसी और के जीवन में भी उजाला फैलाएँ। किसी को भोजन देना, किसी बच्चे को नई पोशाक देना या किसी बुज़ुर्ग का हाल पूछना — यही वह छोटे-छोटे कार्य हैं जो जीवन में बड़ी रोशनी लाते हैं।
आज के आधुनिक युग में दीवाली का स्वरूप कहीं न कहीं दिखावे और उपभोग तक सीमित हो गया है। लोग अधिक खर्च कर लेते हैं, पटाखे जलाकर प्रदूषण फैलाते हैं, पर त्योहार की आत्मा को भूल जाते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि दीवाली का सौंदर्य सादगी में है, न कि शोर में। पर्यावरण की रक्षा हमारी जिम्मेदारी है, इसलिए हमें “ग्रीन दीवाली” मनाने का संकल्प लेना चाहिए — मिट्टी के दीए जलाएँ, पेड़ लगाएँ और प्रदूषण रहित खुशियाँ मनाएँ। इससे न केवल प्रकृति सुरक्षित रहेगी बल्कि अगली पीढ़ी को भी इस पर्व का सच्चा अर्थ समझ आएगा।
दीवाली केवल घरों को रोशन करने का पर्व नहीं, बल्कि यह आत्मा को रोशन करने का अवसर है।
यह हमें प्रेरित करती है कि हम दूसरों की मदद करें, उन्हें आशा दें और जीवन में अच्छाई का दीप जलाएँ। जब हम किसी को क्षमा करते हैं, जब हम किसी को मुस्कान देते हैं, या जब हम किसी की मदद करते हैं, तभी सच्चे अर्थों में दीवाली मनती है। यह पर्व हमें यह भी याद दिलाता है कि अच्छाई हमेशा जीतती है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।आज जब दुनिया में विभाजन, स्वार्थ और प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है, तब दीवाली हमें जोड़ने का काम करती है। यह कहती है कि सच्चा धर्म मानवता है, और सबसे बड़ी पूजा प्रेम की है।
अगर हर व्यक्ति अपने भीतर एक दीपक जलाए — करुणा, सेवा और विनम्रता का — तो यह दुनिया स्वयं एक विशाल मंदिर बन जाएगी। दीवाली हमें बताती है कि प्रकाश बाहर से नहीं, भीतर से आता है। जब मन में शांति होती है, जब आत्मा में प्रेम होता है, तब ही जीवन उज्जवल होता है ।
अंततः दीवाली केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है। यह हमें सिखाती है कि जो दूसरों के लिए रोशनी फैलाता है, वही स्वयं सबसे अधिक प्रकाशित होता है। इसलिए इस दीवाली हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम केवल अपने घर नहीं, बल्कि किसी और के जीवन को भी रोशन करेंगे। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि सच्ची रोशनी दीयों में नहीं, बल्कि उन दिलों में बसती है जो प्रेम, सहानुभूति और एकता से जगमगाते हैं। जब हर इंसान अपने भीतर अच्छाई का दीप जलाएगा, तभी समाज और राष्ट्र सच्चे अर्थों में प्रकाशमय बनेगा। यही दीवाली की सबसे बड़ी सीख है — प्रकाश बाँटिए, प्रेम जगाइए और अपनों से मिलने का आनंद फिर से जीवित कीजिए, क्योंकि दीवाली असल में दिलों को जोड़ने का त्योहार है।

