डॉ. देवेंद्र मालवीय
दैनिक सदभावना पाती
इंदौर। मध्य प्रदेश के पांच जिलों—इंदौर, भोपाल, सिहोर, देवास और धार में डीएचएल इंफ्रा द्वारा शुरू की गई 30 से अधिक कॉलोनियों में निवासियों और निवेशकों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। करीब 11 साल पहले पीथमपुर के मेठवाड़ा गांव में लॉन्च हुई आइकॉन थर्ड कॉलोनी इसका ताजा उदाहरण है। हाईवे से सटी इस कॉलोनी को डीएचएल इंफ्रा ने सपनों का घर बताकर बेचा, लेकिन आज 2025 में यह कॉलोनी खेत से ज्यादा कुछ नहीं। रेत और गिट्टी के ढेर, बिना सड़कों का जंगल, कोई ड्रेनेज या बिजली व्यवस्था नहीं यहां निवेशकों का पैसा और सपने दोनों दफन हो चुके हैं। संतोष सिंह चौहान और उनके सहयोगियों द्वारा दिए गए आश्वासनों का सिलसिला जारी है, लेकिन जमीनी हकीकत जस की तस। निवेशकों की शिकायतें और प्रशासन की चुप्पी इस कहानी को और दर्दनाक बनाती हैं।
आइकॉन थर्ड का सच: ब्रोशर में सपने, जमीन पर खेत
2014 में लॉन्च हुई आइकॉन थर्ड कॉलोनी को डीएचएल इंफ्राबुल ने हाईवे टच लोकेशन और आधुनिक सुविधाओं का वादा कर बेचा। ब्रोशर में बड़े-बड़े दावे थे। पक्की सड़कें, ड्रेनेज, बिजली और पानी की व्यवस्था। लेकिन 11 साल बाद भी कॉलोनी में सिर्फ रेत और गिट्टी के ढेर हैं। सड़कें नहीं बनीं, ड्रेनेज का नामोनिशान नहीं, बिजली के खंभे या तार कहीं नहीं दिखते। कॉलोनी का कंप्लीशन हुआ या नहीं, यह अभी तक स्पष्ट नहीं, लेकिन अगर हुआ भी तो यह जांच का विषय है। निवेशक सुजीत सिंह पवार की कहानी इस कॉलोनी की हकीकत बयां करती है।
निवेशकों का दर्द: पैसा गया, सपने टूटे
सुजीत सिंह पवार ने 2014 में अपनी मां के नाम पर आइकॉन थर्ड कॉलोनी में एक प्लॉट खरीदा। उन्होंने बताया, मैंने 7-8 लाख रुपये का निवेश किया। हर महीने 8,400 रुपये की किस्त दी। पूरा पैसा चुकाने के बाद भी कुछ नहीं मिला। अप्रैल 2025 में रजिस्ट्री तो हुई, लेकिन कॉलोनी में कुछ भी नहीं—ना सड़क, ना ड्रेनेज, ना बिजली। मैं किराए के मकान में रह रहा हूं, मेरा घर का सपना अधूरा है। सुजीत ने बताया कि डीएचएल के ऑफिस में कई बार शिकायत की, सीएम हेल्पलाइन पर भी आवेदन दिया, लेकिन कोई समाधान नहीं मिला। डेवलपर्स सिर्फ आश्वासन देते हैं।
कॉलोनी की हकीकत: न सड़क, न नंबर, न सुविधा

कॉलोनी में प्लॉट्स की पहचान तक नहीं। सुजीत ने बताया, साइट इंजीनियर ने एक बार मेरा प्लॉट दिखाया, लेकिन नंबर नहीं लिखे, सड़कें नहीं बनीं, तो मुझे यकीन नहीं कि वही प्लॉट मेरा है। कॉलोनी में कोई बुनियादी ढांचा नहीं। रेत और गिट्टी के ढेर बिखरे पड़े हैं, जो डेवलपमेंट की जगह खेत जैसा माहौल दिखाते हैं। बिजली और पानी की कोई व्यवस्था नहीं। निवेशकों को लगता है कि अगर उन्होंने कहीं और निवेश किया होता, तो शायद उनका घर बन चुका होता।
आश्वासनों का सिलसिला, कार्रवाई शून्य
सुजीत सिंह पवार ने बताया कि डीएचएल इंफ्रा के संतोष सिंह से कई बार मुलाकात हुई। हर बार जवाब मिला—जल्दी काम हो जाएगा। लेकिन 11 साल में कुछ नहीं बदला। डेवलपर्स ने ब्रोशर में सपने दिखाए, लेकिन जमीनी हकीकत शून्य है। सुजीत ने कहा, हमें लगा था, हाईवे पर है, अच्छी कॉलोनी होगी। लेकिन 11 साल बाद भी कुछ नहीं। सीएम हेल्पलाइन और डीएचएल के ऑफिस में दी गई शिकायतों का कोई नतीजा नहीं निकला। निवेशकों का कहना है कि डेवलपर्स की जवाबदेही तय किए बिना समाधान असंभव है।

