महावीर मेडिकल कॉलेज संकट में—समिति के भीतर वर्षों से बढ़ती खामोशियाँ अब नीलामी में बदल रहीं?

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विशेष संवाददाता
दैनिक सदभावना पाती

भोपाल। संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के परम आशीर्वाद से वर्ष 2003 में जिसकी रूपरेखा बनी और 2005 में जिसे तत्कालीन वित्त मंत्री जयंत मलैया की पहल से 25 एकड़ सरकारी भूमि आवंटित हुई वही महावीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, भोपाल (Mahaveer Institute of Medical Sciences (MIMS) Bhopal) आज गंभीर वित्तीय और प्रशासनिक संकट से जूझ रहा है। 750 बेड का अस्पताल, 600 MBBS छात्रों का बड़ा शिक्षण परिसर और वर्षों से जैन समाज की प्रतिष्ठित धरोहर मानी जाने वाली यह संस्था अब 6 दिसंबर 2025 को नीलामी प्रक्रिया के दायरे में है।

बैंक के नोटिस से खुली चुनौतियाँ

चार बैंकों द्वारा संस्थान को वर्ष 2005–2006 में लगभग 95 करोड़ रुपये का लोन दिया गया था। इसके बाद निर्माण, संचालन और विस्तार के विभिन्न चरणों में कई बार भुगतान में असंगतियाँ और देरी की स्थिति देखने में आईं। समय के साथ यह राशि ब्याज सहित बढ़ते-बढ़ते अब लगभग 234 करोड़ पर पहुँची और बैंक की आंतरिक रिपोर्ट में इसे NPA श्रेणी में रख दिया गया। SARFAESI Act के तहत जारी नोटिस में 30 दिनों के भीतर भुगतान की प्रक्रिया पूरी न होने पर संपत्ति पर कार्रवाई की संभावना जताई गई है।

संकेत जो चिंता बढ़ाते हैं

इस पूरे प्रकरण में किसी व्यक्ति या पदाधिकारी पर सीधा आरोप तो नहीं ठहराया जा सकता, परंतु समाज में कई वर्षों से कुछ संकेतात्मक परिस्थितियों पर चर्चा होती रही है, जैसे समिति के भीतर निर्णयों में सामंजस्य की कमी, कुछ सदस्यों के अलग-अलग मत, योजनाओं और विस्तार कार्यों को लेकर असहमति, तथा समय पर लिए जाने वाले फैसलों में देरी, इन सबने संस्था के वित्तीय स्वास्थ्य को प्रभावित किया।

निर्माण और संचालन कार्यों में कई चरणों पर सवाल प्रारंभिक निर्माण कार्य एक प्रमुख सदस्य के नेतृत्व में हुआ। बाद के वर्षों में कार्यप्रणाली और व्यय संबंधी पारदर्शिता पर समाज में प्रश्न उठते रहे, हालाँकि इस विषय में आधिकारिक रूप से कोई आरोप सिद्ध नहीं है।

नए ट्रस्ट/आउटसोर्सिंग की संभावित चर्चाएँ

संस्था को आउटसोर्सिंग या निजी समूहों को हस्तांतरित किए जाने की संभावनाएँ कई बार सामने आईं। समाज में माना गया कि ऐसी चर्चाएँ संस्थागत हित से अधिक निजी लाभों की रेखा में थीं, हालाँकि इस पर भी कोई आधिकारिक पुष्टि उपलब्ध नहीं है—ये केवल वर्षों से चल रही सूचनाएँ हैं।

सेटलमेंट के बाद भी भुगतान प्रक्रिया का पूरी तरह पूरा न होना

सूत्रों के अनुसार, एक चरण में बैंकों के साथ लगभग 100 करोड़ रुपये के समझौते की दिशा बनी, जिसमें से एक बड़ी राशि जमा भी कर दी गई, परंतु शेष भुगतान समय पर न हो सका और मामला फिर संकट में जा पहुँचा।

समाज में बढ़ती बेचैनी

कई वरिष्ठ नागरिकों, समाजजन और पूर्व छात्रों ने MIMS के भविष्य पर चिंता व्यक्त की है, उनका कहना है कि एक संस्था जिसे सेवा, शिक्षा और समाज की धरोहर माना जाता था जिसके बल पर हजारों डॉक्टर देश-विदेश में नाम कमा रहे हैं और जिसके माध्यम से प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की शिक्षा और उपचार सेवा हो रही है वह संस्था अब प्रशासनिक मतभेदों, असंगत निर्णयों और वित्तीय अव्यवस्था के कारण नीलामी के दौर में है, यह पूरे समाज के लिए पीड़ादायक है।

समाज की अपील — ‘नए और पारदर्शी प्रबंधन’ की ज़रूरत

समाज के कई वर्गों का मानना है कि एक नवगठित, पारदर्शी और सर्वसम्मति से चुनी गई समिति, खातों का स्वतंत्र ऑडिट और निर्णय प्रक्रिया में एकरूपता संस्था को बचाने का एकमात्र रास्ता हो सकता है। विशेषकर इसलिए क्योंकि यह सिर्फ एक मेडिकल कॉलेज नहीं, बल्कि जैन समाज की दशकों की तपस्या का परिणाम है।

इस मामले में पक्ष जानने के लिए सुनील जैन और टोंगिया जी को कॉल किया गया तो किसी ने भी फोन नहीं उठाया।

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"दैनिक सदभावना पाती" (Dainik Sadbhawna Paati) (भारत सरकार के समाचार पत्रों के पंजीयक – RNI में पंजीकृत, Reg. No. 2013/54381) "दैनिक सदभावना पाती" सिर्फ एक समाचार पत्र नहीं, बल्कि समाज की आवाज है। वर्ष 2013 से हम सत्य, निष्पक्षता और निर्भीक पत्रकारिता के सिद्धांतों पर चलते हुए प्रदेश, देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर की महत्वपूर्ण खबरें आप तक पहुंचा रहे हैं। हम क्यों अलग हैं? बिना किसी दबाव या पूर्वाग्रह के, हम सत्य की खोज करके शासन-प्रशासन में व्याप्त गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार को उजागर करते है, हर वर्ग की समस्याओं को सरकार और प्रशासन तक पहुंचाना, समाज में जागरूकता और सदभावना को बढ़ावा देना हमारा ध्येय है। हम "प्राणियों में सदभावना हो" के सिद्धांत पर चलते हुए, समाज में सच्चाई और जागरूकता का प्रकाश फैलाने के लिए संकल्पित हैं।