Sampada Portal News। इंदौर से सामने आई एक गंभीर तकनीकी खामी ने मध्यप्रदेश भर की फर्मों और कंपनियों को खतरे की स्थिति में ला खड़ा किया है। राज्य सरकार द्वारा अप्रैल 2025 से लागू किए गए नए संपदा 2.0 सॉफ्टवेयर में एक ऐसी त्रुटि उजागर हुई है, जो बड़े स्तर पर धोखाधड़ी की संभावनाएं पैदा कर सकती है। दरअसल, यदि कोई प्राइवेट लिमिटेड कंपनी या भागीदारी फर्म अपने किसी अधिकृत प्रतिनिधि या कर्मचारी के माध्यम से किसी संपत्ति की रजिस्ट्री करवाती है, तो यह सॉफ्टवेयर भूमि स्वामित्व का दर्जा फर्म या कंपनी को न देकर सीधे उस व्यक्ति के नाम दर्ज कर देता है जिसने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए हों।
यह खामी पूरे मध्यप्रदेश के रियल एस्टेट और रजिस्ट्री सिस्टम को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि जिस व्यक्ति का नाम राजस्व अभिलेख में मालिक के रूप में दर्ज हो जाता है, वह उक्त संपत्ति को आगे बेच सकता है, भले ही वह वास्तव में उस संपत्ति का मालिक न हो। संपदा 2.0 में ऑनलाइन नामांतरण की प्रक्रिया पूरी तरह आधार कार्ड आधारित है, और चूंकि आधार व्यक्ति का होता है, फर्म या कंपनी का नहीं, इस कारण से सॉफ्टवेयर रजिस्ट्री के समय स्वामी का नाम फर्म के बजाय हस्ताक्षरकर्ता के नाम पर फार्म-2 के माध्यम से तहसीलदार को भेज देता है। यह स्थिति उस वक्त और खतरनाक हो जाती है जब कंपनियां पंजीयन के लिए अपने किसी कर्मचारी तक को अधिकृत करती हैं, जैसा कि कंपनियों द्वारा अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता के लिए बनाए गए बोर्ड रिज़ॉल्यूशन में स्पष्ट किया जाता है। ऐसे मामलों में कर्मचारी के नाम पर स्वामित्व चढ़ जाना कंपनियों के लिए भविष्य में धोखाधड़ी और कानूनी उलझनों का कारण बन सकता है।
संपदा 2.0 सॉफ्टवेयर की बड़ी चूक से खतरे में फर्मों और कंपनियों की जमीनें
इस खामी को लेकर इंदौर के जिला पंजीयक दीपक शर्मा ने पुष्टि की है कि उनके पास शिकायत पहुंची है और जांच में यह गड़बड़ी सही पाई गई है। उन्होंने इस तकनीकी दोष को सुधारने के लिए भोपाल मुख्यालय को प्रस्ताव भी भेजा है। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन शिकायत टोकन क्रमांक 09861747310516 पर इसे दर्ज कर सिस्टम में सुधार की सिफारिश कर दी गई है। हालांकि इस तकनीकी गलती की जिम्मेदारी से बचते हुए पंजीयन विभाग ने आंशिक रूप से दोष राजस्व विभाग के अधिकारियों पर डाल दिया है। पंजीयक शर्मा का कहना है कि रजिस्ट्री के साथ पूरी फाइल तहसीलदार को भेजी जाती है और यह तहसीलदार का कर्तव्य है कि वह दस्तावेजों की जांच करके नामांतरण की स्वीकृति दें, ताकि इस प्रकार की गड़बड़ी को समय रहते पकड़ा जा सके।
एक और पेच यह है कि यदि किसी फर्म या कंपनी को यह गलती पता भी चल जाए तो वह सीधा ऑफलाइन सुधार का आवेदन नहीं कर सकती। उसे पहले ऑनलाइन भेजे गए फार्म-2 को तहसीलदार द्वारा निरस्त करवाना होता है, उसके बाद ही ऑफलाइन माध्यम से सही नामांतरण के लिए आवेदन किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में अनावश्यक देरी और प्रशासनिक उलझनें संभावित धोखाधड़ी के जोखिम को और बढ़ा देती हैं। यह गंभीर चूक न सिर्फ संपत्ति अधिकारों की सुरक्षा को खतरे में डाल रही है, बल्कि राज्य सरकार की डिजिटल व्यवस्था पर भी सवाल खड़े कर रही है।
संपदा सॉफ्टवेयर जिसे पारदर्शिता और तेज़ प्रक्रिया के लिए लाया गया था, अब ग़लत नामांतरण के कारण खुद एक खतरे का केंद्र बन चुका है। यदि सरकार और तकनीकी टीम ने समय रहते इसका स्थायी समाधान नहीं किया तो पूरे प्रदेश में अचल संपत्तियों को लेकर एक बड़ा संकट उत्पन्न हो सकता है।