(लेखक – सनत कुमार जैन)
दिल्ली के भाजपा नेता तेजिंदर पाल की गिरफ्तारी को लेकर मोहाली के सीजेएम की कोर्ट से गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ। इसके तुरन्त बाद पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में उक्त आदेश को चुनौती देने वाली याचिका देर शाम दायर की गई। पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने देर रात याचिका पर सुनवाई की। हाईकोर्ट ने सीजेएम कोर्ट से जारी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी।
दिल्ली, पंजाब और हरियाणा सरकार के बीच पिछले कई दिनों से तेजिंदर पाल सिंह बग्गा की गिरफ्तारी को लेकर राजनीति हो रही है। तेजिंदर पाल सिंह बग्गा के इस बयान पर चाहे जितनी एफआईआर कर लो, हम झुकेंगे नहीं। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा देर रात याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेएम के गिरफ्तारी वारंट पर रोक लगा दी है। उससे तेजिंदर पाल की ताकत और रसूख का अंदाजा लगाया जा सकता है।
कुछ इसी तरह की घटना राजस्थान सरकार की शिकायत पर एक टीवी चैनल न्यूज 18 के एंकर अमन चौपड़ा के खिलाफ राजस्थान की एक अदालत ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। वारंट जारी होने के कुछ घंटों के अंदर ही राजस्थान हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट के गिरफ्तारी वारंट पर रोक लगा दी। उक्त टीवी चैनल के एंकर ने अपने कार्यक्रम में अलवर जिले के राजगढ़ में 300 साल पुराने मंदिर को गिराने के लिए राजस्थान सरकार की बदला लेने की कार्यवाही बताया था।
अमन चौपड़ा ने यह भी कहा था कि जहांगीरपुरी दिल्ली की मस्जिद पर बुलडोजर चलने के बाद राजस्थान की सरकार द्वारा बदला लेने के लिए 300 साल पुराना मंदिर ढहा दिया गया। एंकर की इस कवरेज से साम्प्रदायिक उत्तेजना को लेकर राजस्थान पुलिस ने दंगा भड़काने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया था।
राजस्थान पुलिस ने सेशन कोर्ट से गिरफ्तारी वारंट जारी कराया था। वारंट जारी होने के बाद राजस्थान पुलिस ग्रेटर नोयडा पहुंचती और राजस्थान पुलिस अमन चौपड़ा को गिरफ्तार करती, इसके पहले ही राजस्थान हाईकोर्ट का आदेश पहुंच गया। इस आदेश में अमन चौपड़ा की गिरफ्तारी पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई है।
राजस्थान पुलिस के ग्रेटर नोएडा पहुंचते ही उ.प्र. की पुलिस ने राजस्थान पुलिस को उसी तरह से घेर रखा था। जिस तरह हरियाणा पुलिस ने पंजाब की पुलिस को घेरकर पंजाब पुलिस से तेजिंदर पाल बग्गा को अपने कब्जे में लेकर दिल्ली पुलिस को सौंप दिया था।
पंजाब एवं राजस्थान हाईकोर्ट की त्वरित सुनवाई और गिरफ्तारी पर त्वरित रोक आदेश को लेकर जनसामान्य के मन में यह धारणा बनने लगी है कि न्यायपालिका भी राजनैतिक दबाव में तो काम करने विवश नहीं हो रही है।
इस धारणा को इस बात से भी बल मिलता है कि राजस्थान सेशन कोर्ट के न्यायाधीश ने जब गिरफ्तारी वारंट जारी किया होगा, तो वहां तथ्यों का परीक्षण कर ही आदेश जारी किया होगा।
गिरफ्तारी के बाद भी हाईकोर्ट जमानत दे सकती थी। बिना दूसरे पक्ष को सुने जिस तरह से पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट एवं राजस्थान हाईकोर्ट ने गिरफ्तारी पर रोक लगाई है, उसके बाद यह धारणा बनने लगी है, क्या न्यायपालिका भी राजनैतिक दबाव में आ गई है।
केन्द्र एवं राज्य सरकारों के संघीय ढांचे को लेकर जो विवाद देखने को मिल रहे है, ठीक उसी तरह की स्थिति न्यायपालिका में भी दिखने लगी है। यह चिंता का विषय है।