(विचार-मंथन) श्रीलंका में नई सरकार

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(लेखक-सिद्धार्थ शंकर)

श्रीलंका में वित्तीय संकट के बीच सर्वदलीय सरकार ने काम संभाला है। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने सभी दलों से अपील की है कि मंत्रालय में शामिल होकर सभी दल देश में आए संकट का समाधान निकालें। दरअसल, श्रीलंका में हिंसा और राजनीतिक अटकलों के बीच देर रात मंत्रिमंडल ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया था।
हालांकि, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने अपना इस्तीफा नहीं सौंपा था। श्रीलंका में आपातकाल और मंत्रिमंडल के सामूहिक इस्तीफे के बाद चार नए मंत्रियों ने सोमवार को शपथ ली है। इसमें वित्त मंत्री से लेकर विदेश मंत्री तक शामिल हैं।
राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के सामने अली साबरी ने वित्त मंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। उन्होंने बेसिल राजपक्षे की जगह मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। वहीं जीएल पेइरिस नए विदेश मंत्री होंगे।
दिनेश गुणवर्धने को शिक्षा मंत्री बनाया गया है तो जॉनसन फर्नांडो राजमार्ग मंत्रालय संभालेंगे। श्रीलंका के विपक्ष के नेता साजिथ प्रेमदासा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद की अपील की।
उन्होंने कहा कि, हमारी यथासंभव मदद करें। यह हमारी मातृभूमि है। इसके बचाने में हमारी मदद करें। उन्होंने कहा कि, वहीं चुनाव के सवाल पर उन्होंने कहा कि, हम सभी चीजों के लिए तैयार हैं।
बीते कुछ दशकों में श्रीलंकाई नागरिकों ने शायद इससे पहले इतना बुरा दौर न देखा हो, जब उन्हें रोजमर्रा की चीजों के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ा हो। समस्या लाइन में लगने की ही नहीं, बल्कि दूध, दवा, ईंधन के अभाव और उनकी आसमान छूती कीमतों की भी है।
लोगों का घरों में बैठना भी मुहाल है, क्योंकि वहां उन्हें घंटों तक कटी बिजली के वापस आने का इंतजार करना होता है।  भारत के दक्षिणी छोर पर हिंद महासागर में बसा खूबसूरत देश श्रीलंका बेहद संकट में है। अब वह मानवीय संकट की ओर बढ़ रहा है।
विदेशी कर्ज ने पहले से उसकी कमर तोड़ रखी है और अब कोरोना महामारी के चलते आय का सबसे बड़ा स्रोत पर्यटन उद्योग पूरी तरह से तबाह हो चुका है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते बचे-खुचे पर्यटक भी नहीं आ रहे हैं। राष्ट्रपति के खिलाफ देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और अब तो आपातकाल भी लग चुका है।
श्रीलंका की इस हालत के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। विदेशी मुद्रा भंडार का कम होना उसकी इस हालत के लिए सबसे बड़ा कारक माना जा रहा है। तीन साल पहले जहां श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 7.5 अरब डॉलर था। वहीं पिछले साल नवंबर में ये गिरकर 1.58 अरब डॉलर हो गया। श्रीलंका पर चीन, जापान, भारत और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का भारी कर्ज है लेकिन विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के कारण वो अपने कर्जों की किस्त तक नहीं दे पा रहा है। श्रीलंका अपने अधिकतर खाद्यान्नों, पेट्रोलियम उत्पादों, दवाइयों आदि के लिए विदेशी आयात पर निर्भर है लेकिन विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के कारण वो आयात भी नहीं कर पा रहा है। इससे देश की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। देश का बिजली संकट भी गहरा गया है और लोगों को दिन में 7-8 घंटे अंधेरे में रहना पड़ रहा है। श्रीलंका की जीडीपी में पर्यटन का काफी बड़ा योगदान है। वहां की जीडीपी में टूरिज्म की हिस्सेदारी 10 फीसदी से ज्यादा है और पर्यटन से विदेश मुद्रा भंडार में भी इजाफा होता है, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से यह सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। कोविड की वजह से वहां के विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। 2019 में नवनिर्वाचित राजपक्षे सरकार ने लोगों की खर्च करने की क्षमता बढ़ाने के लिए टैक्स कम कर दिया था, इससे सरकार के राजस्व को भारी नुकसान हुआ। रूस-यूक्रेन में छिड़ी जंग से श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था की हालत और खराब हो सकती है। रूस श्रीलंका की चाय का सबसे बड़ा आयातक है। रूस और यूक्रेन से बड़ी तादाद में श्रीलंका में पर्यटक भी आते हैं। रूबल की गिरती कीमत, जंग और रूस-यूक्रेन की ओर से चाय की घटती खरीद की वजह से भी इसकी अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है। फरवरी में एशियाई देशों में सबसे ज्यादा महंगाई श्रीलंका में बढ़ी है, वहां फरवरी 2021 की तुलना में फरवरी 2022 में खुदरा महंगाई 15.1 फीसदी बढ़ गई है।
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