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(विचार मंथन) माफियाओं के हौसले 

लेखक-सिद्धार्थ शंकर

हरियाणा के मेवात जिले में खनन माफियाओं द्वारा डीएसपी सुरिंदर सिंह की हत्या की बात को लोग भूले भी नहीं थे कि 24 घंटे के भीतर झारखंड में एक महिला पुलिस अधिकारी की हत्या कर दी गई।
हरियाणा में डीएसपी सुरिंदर सिंह पर खनन माफिया के ड्राइवर ने गाड़ी चढ़ा दी तो झारखंड के रांची में पशु तस्करों ने महिला अधिकारी को बीच सड़क रौंद दिया। महिला अधिकारी संध्या टोपने ड्यूटी पर तैनात थीं।
बताया जाता है कि सुबह 3 बजे तुपुदाना में एंटी क्राइम चेकिंग चलाया जा रहा था। इसी दौरान ड्यूटी पर तैनात दरोगा संध्या टोपनो पिकअप वैन को रुकने का इशारा किया, लेकिन ड्राइवर ने गाड़ी रोकने के बजाय दरोगा के ऊपर गाड़ी को चढ़ाते हुए फरार हो गया।
हालांकि कुछ देर बाद ही चालक को गिरफ्तार कर लिया गया। दोनों पुलिस अफसरों की हत्या की वजह भले अलग हो, जगह अलग हो, मगर एक चीज में समानता है, वह है बदमाशों का हौसला।
खनन माफिया हों या पशु तस्कर दोनों के आगे कानून बौना साबित हो रहा हैैै। अब तक सुनने को मिलता था कि बदमाशों ने पुलिस पर हमला कर दिया या भाग गए, मगर अब वे अफसर या जवान की हत्या करने तक से पीछे
नहीं हट रहे।
देश में शायद ही कोई राज्य हो, जहां अवैध खनन न होता हो। पहाडिय़ां और नदियां अवैध खनन की चपेट में हैं। अवैध खनन में लिप्त तत्व माफिया बन गए हैं तो इसीलिए कि आम तौर पर उन्हें नेताओं और नौकरशाहों का संरक्षण मिलता है।
इसी संरक्षण के कारण उनका दुस्साहस बढ़ता है। देश के विभिन्न हिस्सों से ऐसी खबरें आती ही रहती हैं कि खनन माफिया के गुर्गों ने पुलिस कर्मियों या फिर अन्य अधिकारियों को धमकाया अथवा उन पर हमला किया।
मिट्टी, गिट्टी, रेत आदि का अवैध खनन इसलिए बेरोक-टोक होता रहता है, क्योंकि एक तो खनन संबंधी नियम-कानूनों के पालन की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है और दूसरे मांग और आपूर्ति में अंतर को दूर करने की कोई सुविचारित नीति नहीं है।
एक ऐसे समय जब देश में हर तरह के निर्माण कार्य तेजी पर हैं, तब राज्य सरकारों के साथ केंद्र सरकार को भी इसकी चिंता करनी होगी कि आखिर निर्माण कार्यों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री कहां से आएगी? इसमें संदेह है कि इस बारे में शायद ही कभी सोच-विचार किया जाता हो।
चूंकि प्राय: सब कुछ निर्माण कार्य में लगी कंपनियों अथवा ठेकेदारों पर छोड़ दिया जाता है, इसलिए वे मनमानी करते हैं। इस मनमानी पर तब तक रोक नहीं लग सकती, जब तक मांग और आपूर्ति के बीच बढ़ते अंतर को कम करने की कोशिश नहीं की जाएगी।
या तो इस अंतर को कम करने के जतन किए जाएं या फिर निर्माण कार्यों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री के नए विकल्प खोजे जाएं। नि:संदेह खनन पर पूरी तौर पर रोक लगाना संभव नहीं, लेकिन ऐसे उपाय तो किए ही जा सकते हैं कि वह न तो पर्यावरण के लिए खतरा बन पाए और न ही माफिया तत्वों की मनमानी का माध्यम।
चूंकि भवन निर्माण में बड़े पैमाने पर रेत की जरूरत पड़ती है, इसका कारोबार करने वाले भारी मुनाफा कमाते हैं। इसलिए नदियों से रेत निकालने का पट्टा हासिल करने के लिए ठेकेदारों में होड़ लगी रहती है।
उत्तर प्रदेश और बिहार में चूंकि रेत वाली नदियों का फैलाव अधिक है,  वहां अक्सर रेत खनन के लिए ठेकेदारों के बीच खूनी संघर्ष तक देखे जा चुके हैं।
खनन विभाग संभाल रहे मंत्री, अधिकारी और दूसरे राजनेता अपने करीबी लोगों को रेत खनन के ठेके दिलाने का प्रयास करते हैं। उत्तर प्रदेश में भी यही हुआ। एनजीटी की रोक के बाद रेत का कारोबार ठप्प पड़ गया तो ठेकेदारों ने राजनीतिक संपर्क से अवैध खनन शुरू किया।
कायदे से रेत खनन के लिए ई-टेंडर के जरिए पट्टा दिया जाना था, पर मंत्रियों-अधिकारियों से मिलीभगत कर बहुत सारे ठेकेदारों ने अपना कारोबार जारी रखा। जाहिर है, इस तरह जब कोई धंधा राजनीतिक शह पर चलता है, तो मुनाफे का कुछ हिस्सा सत्ता पक्ष के लोगों तक भी पहुंचता है।
छिपी बात नहीं है कि जिस दौरान अवैध खनन चल रहा था, उसे रोकने का प्रयास करने वाले कई अधिकारियों को अपनी जान तक से हाथ धोना पड़ा था। कई अधिकारियों के तबादले कर दिए गए थे, जिसे लेकर तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार को काफी किरकिरी झेलनी पड़ी थी।
नदियों से अतार्किक ढंग से रेत निकालने की वजह से अनेक जगहों पर पर्यावरण को गंभीर खतरा पहुंचा है। इसलिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी एनजीटी ने मनमाने तरीके से रेत खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था।
मगर रेत के धंधे में बेपनाह कमाई होने की वजह से रसूखदार ठेकेदार मंत्रियों-अधिकारियों से सांठगांठ कर अवैध खनन का कोई न कोई रास्ता निकालते रहे हैं।
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