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Part-2(फेसबुक बॉल से साभार) सुनील सिंह बघेल सरकार, समाज के लिए यह भले ही एक पवित्र मिशन हो लेकिन डॉक्टरों के लिए अवैध कमाई का एक बड़ा जरियाकानूनी तौर पर डॉक्टर्स को दवाई बेचने का अधिकार भले न हो, लेकिन बच्चों की वैक्सीन के मामले में सबसे बड़े खरीदार वे ही बने हुए हैं। स्टिंग में : 3800 के टीके 3000 में लगाने को तैयार हो गए डॉक्टरडॉक्टर नियमों में गैप फायदा उठा रहे
Part-2
(फेसबुक बॉल से साभार) सुनील सिंह बघेल
इंदौर | चाइल्ड वैक्सीनेशन जैसा पवित्र मिशन भी,कई शिशु रोग विशेषज्ञों के लिए तिजोरी की एक नई चाबी बन चुका है।
लागत के मुकाबले 3 से 5 गुना तक मुनाफा देखते हुए डॉक्टर, अब वैक्सीन विक्रेता भी बन गए हैं। अकेले मध्यप्रदेश में लगभग 1000 करोड़ का वैक्सीनेशन निजी अस्पतालों या क्लीनिक पर होता है।
वैक्सीन अब मेडिकल स्टोर पर नहीं मिलते। डॉक्टर खुद इन्हें सीधे होलसेल विक्रेता से खरीदते हैं और उस पर दर्ज 3 से 5 गुना MRP पर बेचते हैं।
जैसे ₹100 में भी मिलने वाले (मम्स ,मीजल्स रूबैला) के टीके के लिए 600 से 800, या 750 के टाइफाइड, इनफ्लुएंजा टीके के लिए 1800-2000 वसूलना बड़ी सामान्य बात है।
यह पूरा कारोबार नैतिकता और नियमों को ताक पर रखकर हो रहा है। अधिकांश डॉक्टर के पास ना तो दवा बेचने के लिए जरूरी ड्रग लाइसेंस है और ना ही GST। जबकि इंदौर में ही कई डॉक्टर ऐसे हैं जिनका मासिक खरीदी बिल 3 से 8 लाख तक है।
सरकार, समाज के लिए यह भले ही एक पवित्र मिशन हो लेकिन डॉक्टरों के लिए अवैध कमाई का एक बड़ा जरिया
इंदौर के एक होलसेल वैक्सीन विक्रेता कहते हैं कि वे हर महीने 2-3 करोड़ रुपए की वैक्सीन चाइल्ड स्पेशलिस्ट्स को बेचते हैं। इसी के लिए बच्चों के मां-बाप से 6-7 करोड़ तक वसूल लिए जाते हैं।
जब हमने डॉक्टरों से बात की तो वे अपने मुनाफाखोरी के पाप को, मेडिकल स्टोर वालों पर वैक्सीन कोल्ड चैन मेंटेन नहीं करने का आरोप लगाकर मां-बाप की सुविधा के लिए, सेवा का नाम देकर पवित्रता का लबादा ओढ़ने लगे और अंत में बात जिम्मेदारों की इस अनैतिकता पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन मुंह में दही जमाए बैठा है.
स्थानीय फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन को कुछ दिखता नहीं, फूड एंड ड्रग कमिश्नर शिकायत का इंतजार कर रहे हैं और एक जीएसटी कमिश्नर जांच करते करते चले गए दूसरे GST कमिश्नर जांच पर विचार कर रहे हैं.
जिला प्रशासन को बच्चों के नाम पर हो रही लूट से कुछ लेना देना नहीं है. रही बात सरकार की तो चूंकि फार्मा लॉबी चुनाव के समय इन्हें “देख” लेती है.इसलिए चुनाव के बाद सरकारें ,इन्हें नहीं “देखती”
कानूनी तौर पर डॉक्टर्स को दवाई बेचने का अधिकार भले न हो, लेकिन बच्चों की वैक्सीन के मामले में सबसे बड़े खरीदार वे ही बने हुए हैं।
हमने शहर के तमाम बड़े सप्लायर्स के रिकॉर्ड चेक किए तो हर महीने इंदौर के ही शिशु रोग विशेषज्ञ 3 करोड़ रुपए से ज्यादा के टीके खरीद रहे हैं। इन्हें एमआरपी पर से आठ करोड़ में अभिभावकों को बेचा जा रहा है।
हैरानी की बात ये है कि इनमें एक दर्जन से ज्यादा डॉक्टर ऐसे हैं, जिनकी खरीदी 3 से 5 लाख रुपए की है। एक्सपर्ट का कहना है कि मप्र में हर साल 10 लाख बच्चे पैदा होते हैं. इनमें से तीन लाख से ज्यादा बच्चों का वैक्सीनेशन निजी अस्पतालों व डॉक्टर्स के जरिए होता है।
यानी प्रदेश में ही वैक्सीन का कारोबार हजार करोड़ से ऊपर पहुंच गया है। मेडिकल एक्टिविस्ट डॉ. पीयूष जोशी कहते हैं कि देश में 10-12 कंपनियां ही वैक्सीन बनाती हैं, सरकार आसानी से ट्रैक कर सकती हैं कि बिल किसके नाम बने हैं।
डॉक्टर ही टीकों के सबसे बड़े खरीदार, इंदौर में ही हर महीने 3 करोड़ रुपए से ज्यादा के टीके खरीद रहे
स्टिंग में : 3800 के टीके 3000 में लगाने को तैयार हो गए डॉक्टर
अभिभावक- दोनों बच्चों को इनफ्लुएंजा और टाइफाइड टीके लगाने हैं।
डॉक्टर – इन्फ्लूएंजा का 1800 और टाइफाइड का टीका 2000 का आएगा। अभिभावक- दोनों टीके के 3800 रुपए सर यह तो बहुत ज्यादा है?
डॉक्टर – अच्छा चलो एक 1500 और दूसरा 1800 में लगा दूंगा। यह सिर्फ तुम्हारे लिए कर रहा हूं, नहीं तो मैंने नॉर्मल रेट ही बताया है।
अभिभावक- फिर भी ये तो 3300 रुपए ही ना। यह भी ज्यादा है 3000 चलेंगे ?
डॉक्टर – देखो मैंने पहले ही तुम्हारे लिए 500 कम कर दिए। अब और कम मत कराओ। (थोड़ा रुककर) खैर आ जाओ।
केमिस्ट एसो. कोल्ड चेन की जांच सरकार करती है
पीडियाट्रिक एसो . का तर्क है कि डॉक्टर इसलिए क्लिनिक पर टीके रखते हैं, क्योंकि स्टोर वाले कोल्ड चेन मेंटेन नहीं रख पाते। इस पर इंदौर रिटेल केमिस्ट ऑर्गनाइजेशन अध्यक्ष मनीष जैन कहते हैं यह सरासर झूठा आरोप है। बच्चों के वैक्सीन के अलावा और भी कई वैक्सीन, आई ड्रॉप, दवाइयां है जिनके लिए कोल्ड चैन है। कोल्ड चेन की जांच सरकार की एजेंसी करती है।
100 करोड़ का कारोबार बिना जीएसटी चल रहा
एक बड़े वैक्सीन कारोबारी बताते हैं कि वह हर महीने डॉक्टरों को करीब 3 करोड़ तक की वैक्सीन बेचते हैं। यही डॉक्टरों के जरिए 7-8 करोड़ में विकती है। सरकारी टीकाकरण के बावजूद अकेले इंदौर में अभिभावक निजी तौर पर बच्चों के वैक्सीनेशन पर सालाना 100 करोड़ से ज्यादा खर्च करते हैं। डॉक्टर जिस भाव पर वैक्सीन लगाते हैं उस पर जीएसटी भी नहीं चुका रहे हैं।
डॉक्टर नियमों में गैप फायदा उठा रहे
इंदौर में वैक्सीन के तीन-चार बड़े होलसेलर व्यवसाई है। ये सीधे डॉक्टरों के नाम पर बिलिंग करते हैं। ये भी डॉक्टरों द्वारा इतनी बड़ी संख्या में वैक्सीन खरीदने को अनएथिकल बताते हैं। किसी के बहुत दबाव बनाने पर डॉक्टर इन से बिल बनवा लेते हैं। ऑल इंडिया केमिस्ट एसो. के जनरल सेक्रेटरी राजीव सिंघल कहते हैं कि डॉक्टर मुनाफाखोरी के लिए नियमों में गैप का फायदा उठा रहे हैं।।
शिकायत आएगी तो कार्रवाई करेंगे
ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट में बिना लाइसेंस दवा बेचने पर सजा का प्रावधान है। कमिश्नर खाद्य एवं औषधि प्रशासन सुदामा खाड़े कहते हैं कि डॉक्टरों द्वारा वैक्सीन बेचने की जानकारी नहीं है। शिकायत मिलेगी तो कार्रवाई करेंगे।
कर चोरी की पड़ताल करेंगे
प्रथम दृष्टया मामला कर चोरी का नजर आता है पड़ताल के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। हम जांच करवाएंगे और कारवाई भी करेंगे मामला दिलचस्प है।
लोकेश जाटव, कमिश्नर, एसजीएसटी