विजेश पटेल
विशेष संवाददाता
इंदौर। शहर की रियल एस्टेट हकीकत अब धीरे-धीरे सतह पर आ रही है। वर्षों पहले शुरू की गई कॉलोनियां आज भी अधूरी हैं। दैनिक सदभावना पाती द्वारा रेरा (RERA) की वेबसाइट पर की गई पड़ताल से चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। इंदौर के करीब 2000 रेरा-अप्रूवड प्रोजेक्ट्स में से लगभग 500 प्रोजेक्ट्स का स्टेटस अभी तक “Ongoing / In Progress / New” दर्शाया गया है।
यह प्रोजेक्ट्स वर्ष 2017 से 2020 के बीच रजिस्टर्ड हुए थे, यानी चार से सात साल बीत जाने के बाद भी इनमें से अधिकांश कॉलोनियों में विकास कार्य अधूरे हैं जबकि 3 वर्षों में विकास होना चाहिए।
वर्ष | अधूरे प्रोजेक्ट्स |
2017 | 220 |
2018 | 97 |
2019 | 100 |
2020 | 85 |
हालांकि, कुछ प्रोजेक्ट्स जमीन पर पूरे होकर पूर्णता पा चुके हैं पर रेरा पोर्टल पर अपडेट नहीं किए गए हैं, वहीं दर्जनों प्रोजेक्ट्स वास्तव में आज भी अधूरे पड़े हैं, बावजूद इसके डेवलपर्स नए प्रोजेक्ट्स की शुरुआत कर चुके हैं।
प्रशासन ने दिखाई सख्ती, पर क्या यह पर्याप्त है?
हाल ही में अपर कलेक्टर गौरव बैनल के निर्देश पर 17 बिल्डर्स को नोटिस जारी किए गए हैं, जिनसे सात दिनों में जवाब मांगा गया है कि विकास कार्य अब तक क्यों अधूरे हैं और इन्हें पूरा करने की क्या योजना है। कलेक्टर आशीष सिंह के आदेश पर इन कॉलोनियों से जुड़ी लंबित शिकायतों को देखते हुए यह कार्रवाई की गई है। जिला प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि यदि संतोषजनक जवाब नहीं मिला, तो कॉलोनियों को प्रशासन अपने कब्जे में ले सकता है। ऐसे मामलों में बंधक प्लॉट बेचकर अधूरे कार्य पूरे करने की योजना बनाई जा रही है।
सवाल कई, जवाब कोई नहीं
यह भी सामने आया है कि संजय दासोत जैसे कुछ डेवलपर्स बंधक भूखंडों को पहले ही बेच चुके हैं, ऐसे में प्रशासन अधूरी कॉलोनियों को कैसे पूर्णता देगा और क्या इन डेवलपर्स को दंडित किया जाएगा — ये सवाल अभी अनुत्तरित हैं।
सबसे अहम सवाल यह है कि जब पुराने प्रोजेक्ट्स अधूरे हैं, तो नई कॉलोनियों को अनुमति कैसे दी जा रही है?
क्या विकास अनुमति देने से पहले पिछली प्रगति की जांच सिर्फ खानापूर्ति है ?
नियम सिर्फ कागजों तक?
विकास अनुमति देते समय प्रशासन कई शर्तें और नियम निर्धारित करता है, लेकिन उनका पालन किस हद तक होता है, यह शहर का हर आम नागरिक जानता है।
अब यह देखना होगा कि इन 500 प्रोजेक्ट्स में से कितनों पर सख्ती से कार्रवाई होती है, यह सरकार की इच्छाशक्ति की असली परीक्षा होगी।