दुविधा में देश मंदिर-मस्जिद विवाद: वारिस कौन…. सियासत मौन….!

sadbhawnapaati
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(लेखक- ओमप्रकाश मेहता)

’अयोध्या काण्ड‘ के बाद अब उसी तर्ज पर देश में आधा दर्जन से अधिक स्थानों पर मंदिर मस्जिद विवाद शुरू हो गया है, जिसकी अगुवाई इन दिनों बनारस (काशी) स्थित ज्ञानवापी मस्जिद विवाद कर रहा है, इसके बाद अब मथुरा, धार सहित देश के अन्य आधा दर्जन स्थानों पर यही विवाद शुरू हो गया है। इन विवादों में यदि इन धरोहरों के वारिस का सवाल सामने आया है तो इन सारे संदर्भों में देश की सियासत पूरी तरह मौन है, जबकि सब जानते है कि इन विवादकर्ताओं को संरक्षण इन्हीं मौनधारी सियासतदारों का मिल रहा है और आश्चर्य यह कि इस विवाद का नेतृत्व करने वाले क्षेत्र के सांसद स्वयं प्रधानमंत्री जी है, किंतु वे भी पूरी तरह मौन धारण किये हुए है और अब सब कुछ न्यायपालिका के सहारे छोड़ दिया गया है। दूसरे विवादित क्षेत्र कृष्ण जन्मभूमि का राजनीतिक नेतृत्व वरिष्ठ अभिनेत्री हेमा मालिनी जी करती है और वे भी मौन है।
आश्चर्य तो यह है कि इन हालातों में पूरी सियासत मौन धारण किये हुए है न सत्ताधारी कुछ बोल रहे है और न कोई विपक्षी दल ही। सभी को शायद अपने वोट बैंक की चिंता है, इन विवादों से यह तो तय माना जा रहा है, हिन्दूवादी पार्टी भाजपा  से तो मुस्लिम वोट तो पूरी तरह दूर हो ही जाएगा, वैसे भी भाजपा के पास ’मुस्लिम सपोर्ट‘ बहुत ही कम रहा है, किंतु जहां तक गैर भाजपाई दलों का सवाल है, वे भी इस विवाद पर बोलकर हिन्दू या मुसलमान दोनों ही वर्गों में से किसी को भी नाराज कर अपना वोट कम नहीं करना चाहते, यह भी इनके मौन धारण का मुख्य कारण है, जबकि दूसरी ओर गैर भाजपाई दलों के बीच इस बात की स्पर्धा शुरू हो गई है कि अब मुस्लिम वोट कौन कबाड़ सके? इसलिए ये गैर भाजपाई दल मौन रहकर भी दिल से मुस्लिमों को सहयोग करने का कार्य कर रहे है, चूंकि वे यह भी नहीं चाहते कि उनका पारम्परिक हिन्दू वोट उनसे छिटककर दूर चला जाए, इसलिए वे खुलकर मुस्लिमों का सहयोग नहीं कर रहे हैं।
यद्यपि आज पूरा देश यह जानता है कि सियासी माहौल के तहत आज पूरी राजनीति व देश व राज्य की सरकारों पर विराजित राजनेता ही इन विवादों का मौन संचालन कर रहे है और यह बात हर मुस्लिम नेता या वोटर भी जानता है, किंतु अभी किसी भी और से इन विवादों में किसी राजनीतिक दल या नेता ने प्रवेश या हस्तक्षेप नहीं किया है।
अब चाहे इन विवादों में सियासत भागीदार बने या नहीं बनें? किंतु इन विवादों से मुख्य रूप से प्रभावित तो वही होने वाली है। अर्थात उदाहरण स्वरूप बनारस संसदीय क्षेत्र में लोकप्रियता के कारण आदरणीय मोदी जी को जो पिछले दो चुनावों में मुस्लिम वोट मिले थे, वे शायद अब अगले चुनाव में उन्हें नहीं मिल पाए? क्योंकि अब देश का आम वोटर आजादी के पचहत्तर सालों बाद इतना भोला और अज्ञानी नहीं हरा कि वह सियासतदारों की सियासत को समझ नहीं पाए, अब इस समय वाराणसी क्षेत्र का हर वोटर यह जानता है कि इस मंदिर मस्जिद विवाद को मौन संरक्षण किसका व किस सीमा तक मिल रहा है? और…. केन्द्र तथा राज्य सरकारें इस मामले में मौन क्यों है?
इन्हीं स्थिति-परिस्थितियों पर गौर करते हुए अभी से ये कयास लगना शुरू हो गए है कि संभव है, मोदी जी अगला लोकसभा चुनाव अपने गुजरात से ही लड़े, क्योंकि उनका यह संसदीय क्षेत्र विवादित क्षेत्र की परिधि में आ गया है, जहां तक इसी संदर्भ में गैर भाजपाई दलों विशेषकर कांग्रेस व समाजवादी दल का सवाल है ये फिलहाल कुछ बोलकर अपने मुस्लिम वोट बैंक खुद ही सेंध लगाना नहीं चाहते, साथ ही जो भाजपा से नाराज हिन्दू वोट है, उसे भी खोना नहीं चाहते, इसलिए अभी वे ”तेल देखो-तेल की धार देखो“ की मुद्रा में है।
इसलिए कुल मिलाकर इन मंदिर मस्जिद विवादों का सियासी असर चाहे अभी नजर नही आए, किंतु ये विवाद सियासत पर अपनी छाप छोड़े बिना नहीं रहेंगे, इसी कल्पना में खोया हर सियासतदार मौन तथा चिंतित मुद्रा में लीन है, अब देखिये आगे आगे होता है क्या?
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