सोचिए, आप क्या पोषित कर रहे हैं?
जब मां-बाप अपनी बेटियों को परवरिश देते हैं, तो सिर्फ़ लाड़-प्यार और सपनों से नहीं, संस्कारों और ज़िम्मेदारियों से भी पोषित करना चाहिए।
लेकिन अफ़सोस… आज कुछ महत्वाकांक्षी माएं आधुनिकता की आड़ में वासना, हवस, नशा, फूहड़ता और लालच को ही “फ्रीडम” समझ बैठी हैं। नतीजा? बेटियां नहीं, संभावित अपराधी तैयार हो रही हैं।
संस्कारहीन परवरिश + चरित्रहीन संगत = विनाश का बीज
जब बच्चों में नैतिकता को बकवास बताकर सिर्फ़ भौतिक सुखों की भूख डाली जाती है, तो वे खुद को किसी के जीवन का हकदार नहीं, मालिक समझ बैठते हैं।
सोनम रघुवंशी केस: सिर्फ़ एक हत्या नहीं, समाज के पतन की मिसाल
राजा रघुवंशी की निर्मम हत्या के बाद सोनम यूपी के गाज़ीपुर में जीवित मिली — अपने पति की हत्या की साजिश रचने वाली पत्नी बनकर। विवाह में मिले लाखों रुपये, जेवर, हनीमून पर नाटक, और फिर “बॉयफ्रेंड गैंग” के साथ हत्या की प्लानिंग।
सिर्फ प्यार नहीं था — साजिश थी, लालच था, हराम की अय्याशी की भूख थी।
नई पीढ़ी की बीमार महत्वाकांक्षा:
पहले संयुक्त परिवार नहीं चाहिए था। फिर पति के साथ बॉयफ्रेंड भी चाहिए। अब पति नहीं, उसकी संपत्ति चाहिए। और जैसे ही पति आड़े आए — हत्या की सुपारी।
नारीवाद या नारीविनाश?
जो महिलाएं नारी स्वतंत्रता की बात करती हैं — क्या वही महिलाएं अपने बेटे, भाई, भतीजों के लिए ऐसी बहुएं चाहेंगी?
अगर नहीं, तो इस अपराध पर आपकी कलम, आपकी आवाज़, आपका फेमिनिज़्म चुप क्यों है?
समाज को चेतावनी:
विवाह अब सिर्फ़ रिश्ता नहीं रहा, धंधा बनता जा रहा है।
युवक विवाह से डरने लगे हैं। समाज टूट रहा है — क्योंकि कुछ बहन-बेटियों को आज़ादी नहीं, अय्याशी चाहिए।
यह समय है जागने का, सतर्क होने का: अगर आप माता-पिता हैं — बेटा हो या बेटी — सिर्फ़ सुंदर चेहरा या डिग्री मत देखिए।
देखिए — क्या उसमें इंसानियत है? क्या उसमें नैतिकता है? क्या वह रिश्ता निभा सकता है?
” बेटियों को देवी मानिए, लेकिन पहले उन्हें देवी जैसा बनाइए।”वरना बेटियों के नाम पर अपराध पनपते रहेंगे, और समाज राख बन जाएगा।
डॉ. प्रियांश मालवीया
श्री गौड मालवीया ब्राह्मण समाज उपाध्यक्ष दिल्ली