डीएचएल इंफ्रा की ‘सपनों की कॉलोनियों’ में निवासियों का काला सच: गैलेंट्री लैंडमार्क में 15 साल बाद भी जंगल जैसी हालत, खुला कुआं और बीमारियां बढ़ा रहीं मुसीबत

वर्षों बाद भी कॉलोनी में नहीं है मूलभूत सुविधाएं, रहवासी बोले – डेवलपर ने सिर्फ आश्वासन दिए, हकीकत में कुछ नहीं बदला

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"दैनिक सदभावना पाती" (Dainik Sadbhawna Paati) (भारत सरकार के समाचार पत्रों के पंजीयक – RNI में पंजीकृत, Reg. No. 2013/54381) "दैनिक सदभावना पाती" सिर्फ एक समाचार...
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पार्ट -3

डॉ. देवेंद्र मालवीय – 9827622204

मप्र। मध्य प्रदेश के इंदौर, भोपाल, सीहोर, देवास और धार जैसे पांच जिलों में डीएचएल इंफ्राबुल्स की 30 से अधिक कॉलोनियों में निवासियों का जीवन आज भी अधूरा है। करीब 15 साल पहले संतोष सिंह और संजीव जायसवाल ने इन कॉलोनियों को ‘सपनों का घर’ बताकर बेचा। एजेंटों को मोटा कमीशन मिला, लेकिन निवेशकों को मिले सिर्फ खाली वादे। ये निवेशक जब अपने प्लॉट्स पर घर बनाने आए, तो पाया कि यहां न सड़कें हैं, न बिजली-पानी की सुविधा, न ड्रेनेज। हालात जंगल जैसे हैं। महू-बैरछा रोड की गैलेंट्री लैंडमार्क कॉलोनी, जहां ज्यादातर पूर्व सैनिक रहते हैं, इसका जीता-जागता उदाहरण है। कॉलोनी के अधिकांश प्लॉट धारक सेवानिवृत्त सेना के जवान हैं, जिन्हें यह कॉलोनी गैलेंट्री नाम से यह सोचकर बेची गई थी कि वीरों के लिए सम्मानजनक कॉलोनी बनेगी पर हकीकत यह है कि कॉलोनी में रहना एक संघर्ष बन चुका है। 2014 में पूर्ण बताई गई यह कॉलोनी 2025 में भी अधूरी पड़ी है। निवासियों ने जनसुनवाई से लेकर डेवलपर्स तक गुहार लगाई, लेकिन समाधान शून्य।

बिजली आज भी एमपीईबी को हस्तांतरित नहीं, रुपए 12 प्रति यूनिट का बिल

रहवासी घनश्याम मिस्त्री (पूर्व आर्मी पर्सन) बताते हैं—कॉलोनी को बने कई साल हो गए, लेकिन आज तक बिजली एमपीईबी को हैंडओवर नहीं हुई। एक ही ट्रांसफार्मर से सप्लाई होती है, वो भी संतोष सिंह के नाम पर। हमें पेन पिक्चर में 12 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से बिल दिया जाता है। इस स्थिति के कारण कॉलोनीवासी प्रधानमंत्री सोलर योजना का लाभ भी नहीं ले पा रहे हैं।

सड़कें टूटी, सीवरेज जाम, गंदगी से बदबूदार माहौल

सूबेदार निर्भय सिंह सोलंकी (मकान नं. B-19) कहते हैं कि 2011 में कॉलोनी कटी थी। आज 2025 हो गया है लेकिन सीवरेज और सड़कें अधूरी हैं। पतले पाइप डालकर नाम मात्र का काम किया गया। हर बारिश में बदबू फैलती है। सुरक्षा के लिए कोई स्ट्रीट लाइट नहीं, पोल गाड़े हैं पर वायर नहीं डाली गई।

पानी के लिए बोरिंग का सहारा, टंकी अधूरी पड़ी – रहवासियों ने बताया कि कॉलोनी की पानी की टंकी 2011 से अधूरी पड़ी है। हर मकान मालिक को खुद का बोरिंग करवाना पड़ा, वरना रहना नामुमकिन था।

महिलाओं की परेशानियां अंधेरे में चलना डरावना, बच्चे घर में कैद

कॉलोनी की महिलाओं ने बताया – सड़कें टूटी है, बारिश में सांप-बिच्छू निकलते हैं। अंधेरा इतना रहता है कि बच्चे बाहर खेलने नहीं निकलते। कई बार बिजली के पोल से करंट लग चुका है। सुरक्षा के कोई इंतज़ाम नहीं। कई वर्किंग लेडीज रोज़ाना महू और इंदौर के बीच अप-डाउन करती हैं। हम बाहर रहते हैं तो घर में बच्चों और बुजुर्गों की चिंता लगी रहती है।

15 साल में सिर्फ एक बार आया कॉलोनी मालिक, वो भी मीडिया से बात न करने की सलाह देने

 

रहवासी राजेन्द्र सिंह बताते हैं— 2018 से 2021 तक हमने संतोष सिंह और संजीव जायसवाल से कई बार बात की। दोनों ने हर बार कहा – सब काम ठीक हो जाएगा।मई 2025 को संजीव जायसवाल एक बार आए और कहा कि दिसंबर तक सब ठीक कर दूंगा, बस मीडिया में बात मत कीजिए। लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ।

बाउंड्री टूटी, गार्डन गायब, असामाजिक तत्वों का अड्डा – रहवासियों के अनुसार बाउंड्री वॉल कई जगह टूटी हुई है। रात में शराब पीने वाले लोग अंदर घुस आते हैं। महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं।

जन सुनवाई से लेकर कलेक्टर ऑफिस तक – आवेदन दर आवेदन, कार्रवाई शून्य :- रहवासी बताते हैं कि मई 2025 में एक बस भरकर सभी महू एसडीएम और कलेक्टर ऑफिस पहुंचे थे।हमने लिखित आवेदन दिए, कॉलोनी सेल की वर्धमान मैडम से भी मिले, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई। सिर्फ आश्वासन मिलते हैं।

रहवासियों की सरकार से उम्मीद – हम बस यही चाहते हैं कि सरकार इस कॉलोनी का सर्वे करवाए।डेवलपर ने जो वादे किए थे, उन्हें पूरा करने के लिए मजबूर किया जाए और अगर धोखाधड़ी हुई है, तो जिम्मेदारों पर कार्रवाई हो।

इनका कहना है

दैनिक सदभावना पाती ने डीएचएल इंफ्राबुल को ईमेल किया कोई जवाब नहीं मिला, संजीव जायसवाल ने हमें फ़ोन कर कहा की मै इंदौर से बाहर हूँ जब आऊंगा मिलकर जवाब दूंगा।

 

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