सरकारी उदासीनता से खत्म होता नर्सिंग सेक्टर, संचालक अग्नि परीक्षा के बाद भी खाली हाथ, अब बंद की तैयारी में दर्जनों कॉलेज

sadbhawnapaati
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ध्यान दो सरकार !

मध्य प्रदेश सरकार की मंशा पर उठ रहा सवाल ? यदि बंद करना है तो एक बार में ही क्यों ना आदेश निकाल दिया जाए…

डॉ. देवेंद्र मालवीय
संपादकीय (9827622204)

कोरोना महामारी के दौरान, जब देश और दुनिया एक अभूतपूर्व संकट से जूझ रही थी, मध्य प्रदेश के मेडिकल स्टाफ ने अपनी जान की परवाह न करते हुए लाखों लोगों की जान बचाई। उस समय प्रशिक्षित और अप्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ ने दिन-रात सेवा की, और कई ने अपनी जान गंवा दी। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अन्य नेता इनके गुणगान करते नहीं थकते थे। लेकिन आज, उसी नर्सिंग सेक्टर की स्थिति दयनीय होती जा रही है। मध्य प्रदेश में नर्सिंग कॉलेज बंद होने की कगार पर हैं, और इसके पीछे सरकारी उदासीनता, अनियमित नीतियां, और अव्यवहारिक नियमों का खेल है।

नर्सिंग कॉलेजों की स्थिति: एक दर्दनाक हकीकत

तीन साल पहले तक मध्य प्रदेश में लगभग 700 नर्सिंग कॉलेज संचालित हो रहे थे, जो प्रतिवर्ष 35,000 से अधिक प्रशिक्षित नर्स तैयार करते थे। ये नर्स देश और प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ थे। लेकिन शिकायतों, अनियमितताओं और कथित घोटालों के बाद, कई जांचें हुईं। हाई कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने दो से तीन बार जांच की, जिसमें जिला जज की उपस्थिति भी रही। इन कठिन जांचों के बाद करीबन 150 कॉलेज ही “सूटेबल” पाए गए। लेकिन विडंबना यह है कि ये “सूटेबल” कॉलेज भी अब बंद होने की कगार पर हैं।

इस संकट के कई कारण हैं:

  1. विद्यार्थियों का घटता विश्वास: लगातार जांच और अनिश्चितता के माहौल ने नर्सिंग कोर्स के प्रति छात्रों का भरोसा कम किया है।
  2. शासन की उदासीनता: नीतिगत अनिश्चितता और अव्यवहारिक नियमों ने कॉलेज संचालकों और छात्रों दोनों को परेशान किया है।
  3. छात्रवृत्ति का बंद होना: पिछले तीन सालों से छात्रवृत्ति राशि जारी नहीं की गई है, जिसके कारण गरीब और मध्यम वर्ग के छात्र फीस नहीं भर पा रहे हैं।
  4. प्रवेश प्रक्रिया में देरी: स्टेट लेवल काउंसलिंग और GNST/PNST जैसी प्रवेश परीक्षाओं की अनिवार्यता ने स्थिति को और जटिल बना दिया है।

छात्रवृत्ति का संकट: गरीब छात्रों का भविष्य दांव पर

नर्सिंग कोर्स में अधिकांश छात्र गरीब और मध्यम वर्ग से आते हैं, जिनके लिए यह कोर्स रोजगार का एक सुनहरा अवसर था। डिग्री प्राप्त करने के बाद ये छात्र 20,000 से 25,000 रुपये मासिक की नौकरी आसानी से पा लेते थे। लेकिन पिछले तीन सालों से छात्रवृत्ति राशि बंद होने के कारण छात्र फीस नहीं भर पा रहे हैं। दैनिक सदभावना पाती अखबार की पड़ताल में सामने आया कि हाई कोर्ट ने कभी भी छात्रवृत्ति रोकने का आदेश नहीं दिया। इसके बावजूद, शासन ने तीन महीने पहले जिला स्तर पर छात्रवृत्ति जारी करने का निर्देश दिया था, लेकिन आज तक कोई राशि छात्रों के खाते में नहीं पहुंची।

छात्रवृत्ति न मिलने के कारण कॉलेज संचालकों की आर्थिक स्थिति भी खराब हो रही है। बिना फीस के कॉलेज का संचालन असंभव है। नतीजतन, कई “सूटेबल” कॉलेज बंद होने की स्थिति में हैं। यदि यह स्थिति जारी रही, तो मध्य प्रदेश में नर्सिंग सेक्टर पूरी तरह से खत्म हो सकता है, जिसका असर स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ेगा।

अनियमित नीतियां और बदलते नियम

मध्य प्रदेश सरकार की नीतियां नर्सिंग कॉलेजों के लिए सबसे बड़ा संकट बन रही हैं। हर साल नियम बदल दिए जाते हैं, जिससे कॉलेज संचालक और छात्र दोनों परेशान हैं। उदाहरण के लिए:

  • GNST/PNST की अनिवार्यता: सरकार ने घोषणा की कि नर्सिंग में प्रवेश केवल GNST/PNST के माध्यम से होंगे। लेकिन इसकी जानकारी का व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं किया गया। नतीजतन, 80% छात्रों को इसकी जानकारी ही नहीं थी, और उन्होंने प्रवेश परीक्षा नहीं दी।
  • बायोलॉजी की अनिवार्यता: इंडियन नर्सिंग काउंसिल (INC) के नियमों के अनुसार, GNM कोर्स में 12वीं के बाद किसी भी स्ट्रीम के छात्र प्रवेश ले सकते हैं। लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने बायोलॉजी को अनिवार्य कर दिया, जिससे कई इच्छुक छात्र बाहर हो गए। (पॉलिटेक्निक फार्मेसी अन्य कोर्स के डिप्लोमा में यह बंधन नहीं है)
  • कम छात्र, अधिक सीटें: मध्य प्रदेश में नर्सिंग की लगभग 50,000 सीटें हैं, लेकिन प्रवेश परीक्षा देने वाले छात्र केवल 25,000-30,000 हैं। ऐसे में काउंसलिंग के जरिए सीटें भरना असंभव है।
  • कठोर प्रवेश मापदंड: NEET PG मेडिकल प्रवेश परीक्षा में सत्र 2023-24 और 2024-25 में जीरो पर्सेंटाइल पर प्रवेश की अनुमति थी, लेकिन GNST/PNST में प्रवेश के लिए 50% न्यूनतम अंक अनिवार्य किए गए। इससे प्रवेश की संख्या में भारी कमी आई। अन्य काउंसिलों में प्रवेश के लिए तीन राउंड की काउंसलिंग होती है, लेकिन GNST/PNST में केवल दो राउंड की काउंसलिंग की गई। इसके अलावा, सीटें खाली रहने के बावजूद कॉलेज लेवल काउंसलिंग की अनुमति नहीं दी गई, जो प्रवेश की स्थिति को बेहतर कर सकती थी।

प्रवेश प्रक्रिया में अव्यवस्था

पिछले दो सालों से नर्सिंग कॉलेजों में प्रवेश लगभग शून्य रहे हैं। सत्र 2023-24 को पूरी तरह से शून्य घोषित कर दिया गया। इस साल भी मान्यता कैलेंडर और निरीक्षण प्रक्रिया समय पर शुरू नहीं हुई। सरकार ने फॉर्म की तारीख तय की, लेकिन जल्दी बंद कर दी। निरीक्षण, स्क्रूटनी, और मान्यता की प्रक्रिया अभी तक स्पष्ट नहीं है। काउंसलिंग और प्रवेश की तारीखें भी अनिश्चित हैं।

इसके अलावा, मध्य प्रदेश मेडिकल यूनिवर्सिटी ने सेमेस्टर पद्धति की घोषणा तो कर दी, लेकिन छह महीने बाद भी न तो सिलेबस जारी किया गया और न ही छात्रों से कोई संपर्क किया गया। इससे छात्रों और कॉलेज संचालकों का भरोसा टूट रहा है। कॉलेजों के लिए कई प्रकार की गाइडलाइंस और समय-सीमाएं हैं, लेकिन शासन और यूनिवर्सिटी पर कोई बाध्यता नहीं है, जिसके कारण अराजकता का माहौल है।

सरकार की जवाबदेही पर सवाल

जब कॉलेजों को सीबीआई और ज्यूडिशियल जांच में “सूटेबल” पाया गया है, तो बार-बार नए नियम लागू करके उन्हें परेशान क्यों किया जा रहा है? सरकार की नीतियां कॉलेज संचालकों को बदनाम करने और उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर करने की ओर इशारा करती हैं। नर्सिंग जैसे रोजगारोन्मुख कोर्स को बचाने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाने चाहिए:

  1. छात्रवृत्ति तुरंत जारी करें: गरीब छात्रों के लिए छात्रवृत्ति उनकी पढ़ाई और कॉलेजों के संचालन का आधार है। इसे तुरंत शुरू किया जाए।
  2. प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता: GNST/PNST की जानकारी का व्यापक प्रचार-प्रसार हो, और प्रवेश प्रक्रिया को समय पर पूरा किया जाए।
  3. नियमों में स्थिरता: बार-बार नियम बदलने की बजाय INC और MP NRC के नियमों का एकरूपता के साथ पालन हो।
  4. कॉलेज लेवल काउंसलिंग की अनुमति: जब पर्याप्त छात्र नहीं हैं, तो कॉलेजों को अपनी स्तर पर काउंसलिंग की अनुमति दी जाए, जैसा कि B.Ed, MBA, BE, B.Com, B.Sc, फार्मेसी जैसे अन्य कोर्स में होता है।

नर्सिंग सेक्टर का भविष्य दांव पर

नर्सिंग एक ऐसा कोर्स है, जिसमें डिग्री प्राप्त करने के बाद कोई भी छात्र बेरोजगार नहीं रहता। लेकिन मध्य प्रदेश सरकार की उदासीनता और नीतिगत अव्यवस्था ने इस सेक्टर को संकट में डाल दिया है। अगर समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो:

  • नर्सिंग कॉलेज पूरी तरह बंद हो जाएंगे।
  • स्वास्थ्य सेवाओं में नर्सिंग स्टाफ की कमी और गंभीर हो जाएगी।
  • गरीब और मध्यम वर्ग के छात्रों के लिए रोजगार का एक महत्वपूर्ण अवसर खत्म हो जाएगा।
  • कोरोना जैसी किसी भविष्य की आपदा में मेडिकल स्टाफ की कमी घातक साबित हो सकती है।

सरकार को चाहिए की

मध्य प्रदेश सरकार को नर्सिंग सेक्टर को बचाने के लिए तत्काल और ठोस कदम उठाने चाहिए। यह न केवल कॉलेज संचालकों और छात्रों के हित में है, बल्कि पूरे प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जरूरी है। अगर सरकार एक बार में सभी अनफिट कॉलेजों को बंद करने का आदेश दे सकती है, तो “सूटेबल” कॉलेजों को बचाने के लिए स्पष्ट नीतियां और समर्थन क्यों नहीं दे सकती? यह समय है कि सरकार अपनी उदासीनता छोड़कर नर्सिंग सेक्टर को पुनर्जनन दे, ताकि देश को उच्च गुणवत्ता वाले नर्सिंग स्टाफ मिल सकें और युवाओं का भविष्य सुरक्षित हो।

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