(लेखक-ईएमएस/सिद्वार्थ शंकर)
लंबे तनाव के बाद रूस ने गुरुवार सुबह साढ़े आठ बजे यूक्रेन पर हमला बोल दिया। मिसाइल हमले में यूक्रेन के कई नागरिकों की मौत हो गई है। रूस की फौज यूक्रेन के कई इलाकों में पहुंच चुकी है। कई पैराट्रूपर्स यूक्रेन के मिलिट्री इंस्टॉलेशन पर उतारे गए हैं। उधर, यूक्रेन का दावा है कि उसने 6 रूसी फाइटर जेट्स को मार गिराया है। बताया जाता है कि यूक्रेन के कई गांव पर रूसी सेना का कब्जा हो गया है। यहां सिलसिलेवार धमाके हो रहे हैं। इस बीच, बेलारूस बॉर्डर से भी रूस ने हमला बोल दिया। रूस अब तीन तरफ से यूक्रेन पर हमले कर रहा है। वहीं रूस ने दावा किया है कि यूक्रेन की सेना ने सरेंडर करना शुरू कर दिया है। इन सबके बीच सवाल यह है कि पुतिन क्या वाकई रूस को सोवियत संघ जैसी महाशक्ति बनाना चाहते हैं या मॉस्को की सत्ता पर अपना 23 साल पुराना कब्जा पुख्ता करना चाहते हैं। क्या वाकई एक सुरक्षित रूस के लिए यूक्रेन को नाटो से दूर रखना ही उनका मकसद है? 1991 में सोवियत संघ के बिखरने के बाद बने यूक्रेन को शुरू से ही रूस अपने पाले में करने की कोशिश करता आया है। हालांकि, यूक्रेन रूसी प्रभुत्व से खुद को बचाए रखने के लिए पश्चिमी देशों की ओर झुका रहा। दरअसल, यूक्रेन की रूस के साथ 2200 किमी से ज्यादा लंबी सीमा है। रूस का मानना है कि अगर यूक्रेन नाटो से जुड़ता है तो नाटो सेनाएं यूक्रेन के बहाने रूसी सीमा तक पहुंच जाएंगी। उधर, अमेरिका भी अपनी हरकत से बाज नहीं आ रहा है। सोवियत संघ के टूटने के बाद 15 से ज्यादा यूरोपीय देश नाटो में शामिल हो चुके हैं। अब वह यूक्रेन को भी नाटो में शामिल करना चाहता है। इसलिए रूस चाहता है कि यूक्रेन ये गारंटी दे कि वह कभी भी नाटो से नहीं जुड़ेगा। रूस का राष्ट्रपति बनने के बाद से ही व्लादिमीर पुतिन कई बार ये कह चुके हैं कि सोवियत संघ का विघटन ऐतिहासिक भूल थी। पुतिन रूस के सोवियत संघ वाले दिन लौटाना चाहते हैं। 1991 में रूसी प्रभुत्व वाले सोवियत संघ के विघटन से 15 नए देश बने थे, जिनमें से एक यूक्रेन भी था। पुतिन रूस का विस्तार करके उसका पुराना प्रभुत्व कायम करना चाहते हैं। पुतिन की इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए यूक्रेन सबसे महत्वपूर्ण है। 2015 में अपने एक भाषण में पुतिन ने यूक्रेन को रूस का मुकुट कहा था। कुल मिलाकर पुतिन धीरे-धीरे रूस के विस्तार करने की अपनी रणनीति में आगे बढ़ते और कुछ हद तक कामयाब होते भी दिख रहे हैं। 1999 में रूस के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही व्लादिमीर पुतिन ने खुद को सत्ता में बनाए रखने के लिए हर संभव कोशिश की है। अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद हाल के वर्षों में पुतिन की लोकप्रियता में गिरावट आई है। अक्टूबर 2021 में आए लेवाडा सेंटर सर्वे के मुताबिक, पुतिन की लोकप्रियता पिछले एक दशक के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है। यूक्रेन पर हमले से पहले भी पुतिन की लोकप्रियता में इजाफा हो चुका है, इसीलिए पुतिन फिर वैसा ही करके अपनी साख को फिर ऊंचा करना चाहते हैं। 16 साल रूसी खुफिया एजेंसी में काम करने के बाद पुतिन 1991 में राजनेता बने थे। 1999 में वह बोरिस येल्तसिन के पद छोड़ने के बाद बाद रूस के राष्ट्रपति बने। 2004 में वह दोबारा राष्ट्रपति चुने गए, लेकिन रूसी संविधान के अनुसार लगातार दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं बनने के नियम के बाद वह 2008 से 2012 तक रूस के प्रधानमंत्री रहे। 2012 में पुतिन फिर से रूस के राष्ट्रपति बने और तब से पद पर कायम हैं। 2020 में रूसी संविधान में बदलाव से उनके 2036 तक रूस का राष्ट्रपति बने रहने का रास्ता साफ हो गया था। दुनिया के कच्चे तेल के उत्पादन में रूस की हिस्सेदारी 13 फीसदी है। दुनिया के तेल और गैस का करीब 30 फीसदी हिस्सा रूस से आता है। यूरोप की जरूरतों का 30 फीसदी कच्चा तेल और 40 फीसदी गैस रूस से आती है। यूक्रेन संकट के बीच कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई हैं, जो सितंबर 2014 के बाद से सबसे ज्यादा हैं। युद्ध की स्थिति में तेल की कीमतों के और बढ़ने की आशंका है, ऐसा होने पर रूस की कमाई में इजाफा हो सकता है। 2021 के अंत में यूक्रेन संकट बढ़ने पर रूस ने यूरोप को गैस सप्लाई में कटौती की थी, जिससे यूरोपीय देशों में बिजली की कीमत पांच गुना तक बढ़ गई थी। कई यूरोपीय सदस्य देश अपनी गैस की जरूरतों के लिए रूस पर बुरी तरह निर्भर हैं। यूक्रेन मामले को देखते हुए जर्मनी रूस को समुद्र के अंदर बिछाई गई 1222 किलोमीटर लंबी नवनिर्मित नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन को बंद करने का धमकी दे रहा है, लेकिन ऐसा करने पर जर्मनी समेत यूरोप को ज्यादा नुकसान पहुंचेगा।