(लेखक- विनोद तकिया वाला)
विश्व के सबसे प्राचीन लोकतंत्र भारत में संविधान द्वारा अपने नागरिक को मतदान का अधिकार दिया है।इन अधिकार का प्रयोग कर मतदाता अपने पसंद के अधिकारों की रक्षा हेतु अपने जनप्रतिनिधि को अपने मतदान का प्रयोग कर संसद व विधानसभा में चुनकर भेजती है।लेकिन दुःख की बात यह है कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में संसद व विधान मंडलों के चुनावों में शैक्षिक योग्यता का कोई प्रावधान ना होने के कारण पूर्ण रूपेण अशिक्षित व्यक्ति भी वहाँ पहुँच कर राज्य व राष्ट्र के निमार्ण में नीति निर्माताओं व कानून के सृजन में अपना योगदान दे रहा है वहीं दूसरी ओर सामाजिक व शासकीय व्यवस्था में किसी भी कर्मचारियों की नियुक्ति की
प्रक्रिया में उनकी शैक्षिक योग्यता है।जिस की समय समय पर उसके पद के अनुसार निर्धारित कि जाती है।संविधान निमार्ण के समय डॉ राजेंद्र प्रसाद ने योग्यता के बिंदु पर अपना मत व्यक्त करते हुए कहा था कि संसद में जन प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित हो कर राष्ट्र निर्माण का कार्य करने वाले व्यक्ति भले ही शैक्षिक रूप सम्पन्न ना हो किन्तु वह निश्चित रूप से सच्चरित्र हो ,उस के चरित्र पर रांदेह ना हो , जिसे वह बिना धर्म जाति आदि के मोह पाश में पडे ‘ समाज व राष्ट्र निर्माण के हित में निर्णय ले सकें।उन्होंने शैक्षिक योग्यता की जगह जन प्रतिनिधि की आचरण व सचरित्र पर लोकतंत्र के लिए आधार माना था।किन्तु इन दिनों व्यवहार में यह देखा जा रहा है कि पुरी तरह से इस संदर्भ में तस्वीर ही अलग है।सचरित्र व निष्ठावान व्यक्ति चुनाव से अपने के दूर रखना पसंद करते है वही माफिया ‘गुंडे अपराधिक प्रवृति के लोग जनप्रतिनिधि के रूप अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है।
आज सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव में बाहुबली व माफियाओं को टिकट दे कर अपनी पीठ थपथपा रही है।भारतीय राजनीति के ऊपर संकट के काले कारनामों वाले जनप्रतिनिधि के रूप विधायी व्यवस्था में अपनी शक्ति का प्रयोग कर रही है। जिसे समाज के जागरूक नागरिकों द्वारा ऐसी जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने के लिए समय समय पर मांग उठती रहती है।जिस पर अभी तक कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया है।हालाकि सन 2013 में एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को निर्देश देते हुए कहा कि चुनाव आयोग को वोटिंग मशीन में प्रत्याशियों के नाम एवं उनके चुनाव चिन्ह के साथ नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने का दिया गया था ! नोटा Note of the above शब्द का संक्षिप्त रूप है। जिसका हिंदी में अर्थ है इनमें से कोई नहीं ” I सन 2013 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पीपुल्स ऑफ सिविल लिबर्टीज की जन हित याचिका पर दिये गये फैसले के परिणाम स्वरूप ई वी एम मशीन में अन्तिम प्रत्याशी के नाम रूप में नोटा को सम्मिलित किया गया।जिसका चुनाव चिन्ह के रूप में क्रॉस ई वी एम मशीन सबसे अन्तिम में अंकित किया गया।अब कोई भी मतदाता अपना मतदान कर ते समय अपनी पसंद व सुयोग्य प्रत्याशी नही होने पर नोटा के बटन दबाकर कर अपना मतदान कर सकता है।चुनाव आयोग की व्यवस्था के अनुसार नोटा को प्राप्त मत निर्णायक ना होकर निरस्त मतों की श्रेणी में रखें जाते है।फिर भी उसका अपना महत्व चुनाव परिणामों को करने में दिखाई पड़ते है।इस सम्बन्ध में पूर्व चुनाव आयुक्त टी एस कृष्णमूर्ति ने यह सुझाव दिया है कि यदि चुनाव में हार जीत का अंतर नोटा को प्राप्त मतों से कम है तो उस चुनाव को निरस्त कर पुनः चुनाव कराया जाना चाहिए ।
भारतीय लोकतंत्र के लिए महापर्व वर्ष है।सन 2022 के इस चुनावी कैलेंडर साल में 7 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने वाले है।
फिलहाल चुनाव आयोग ने पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के तारीखों की घोषणा करते ही उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड,पंजाब,गोवा और मणिपुर विधानसभा के चुनावी प्रक्रिया चल रही है।सभी प्रमुख राजनीति दलों ने अपनी कमर कस ली तथा अपनी जीत के लिए शाम,दण्ड व भेद का इस्तेमाल करने में कोई कसर नही छोड रही है।वहीं इसी साल के अंत में हिमाचल प्रदेश और गुजरात के विधान सभाओं के चुनाव कराए जाएंगे।आज भारतीय राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले उत्तर प्रदेश में प्रथम चरण मतदान 61 % से अधिक मतदाताओं ने अपने मतदान किया है।दुसरे चरण का मतदान 14 फरवरी को है।
पाँच राज्यो उत्तर प्रदेश ,उत्तराखंड और पंजाब राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम यह बताएंगे कि केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व मे भाजपा सरकार द्वारा लाये गये तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हुए किसान आंदोलन का असर कैसा रहा। हालांकि किसान आन्दोलन के व्यापक विरोध के चलते तीनो नये कृषि कानून को केन्द्र सरकार द्वारा वापस ले ली गई है ,जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं,वहाँ के विभिन्न संगठनों व अन्य स्रोतों से कराये गये सर्वे के अनुमान के मुताबिक कांग्रेस और विपक्षी दलों को इस बार बीजेपी के सामने मुश्किलें खडा कर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा सकती है।ऐसे में इन पांच राज्यों के विधानसभा के परिणाम संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा की तस्वीर तय करेगी।राजनीति के पंडितों के अनुसार ।ऐसे में बीजेपी के लिए अपनी पसंद के राष्ट्रपति उम्मीदवार चुनने व राज्यसभा में भी अपनी पार्टी का दबदबा बनाए रखने के लिए इन पांच राज्यों में पुराना प्रदर्शन दोहराने के लिए ऐन ,केन व प्रकरण दबाव बना रही है।तो वहीं विपक्ष राजनीतिक दलों के द्वारा इन पांच राज्यों के विधानसभा के चुनाव के परिणाम को अपने पक्ष में कर बीजेपी को सबक सिखाते हुए कमजोर करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रही है।वही केन्द्र की भाजपा सरकार केंद्र सरकार के पूरे कैबिनेट ‘भा जा पा शासित मुख्यमंत्री ‘सांसद सहित तमाम पार्टी को प्रचार युद्ध झोंक दी है।वही केंद्र की सता के कुर्सी पर आसीन बीजेपी के लिए आगामी वर्ष 2024 लोक सभा आम चुनाव से पहले यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि भाजपा ही भारत का भाग्य विधाता है।प्रत्येक राष्ट्र प्रेमी का शुभचिंतक है।गृह मंत्री स्वयं घर घर जाग कर मतदाताओं से अपील करने को मजबुर है कि आप अपने बोट विधायक ‘मंत्री या मुख्यमंत्री का चुनाव नही कर रहे बल्कि भारत का भविष्य बनाने व उसे सुरक्षित करने के लिए हमारी पार्टी को बोट दे रहे है,लेकिन यहाँ तो सच्चाई कुछ और ही है।सन 2019 में आम चुनाव में बड़ी जीत मिलने के बाद भी बीजेपी अलग-अलग मोर्चों पर संकट का सामना करना पड़ रही है।चाहे गुड गवर्नेंस का मसला हो या राजनीति सियासत की पिच, बीजेपी के लिए उतार-चढ़ाव भरे संकेत रहे हैं।भारतीय लोकतंत्र की जनता इतनी भोली भाली नहीं है जितनी की केंद्र की सत्ता के सिंहासन पर आसीन अंहकारी भाजपा के स्वंभू चाणक्य व रणनीति कार समझ रही है तभी तो वह दिन के उजाले दिवास्वप्न देख रही है।वे सत्ता सुख इतने लिप्त हो गये है कि जैसे कि महाभारत के कौरवों के पिता घृष्टराष्ट्र पुत्र मोह में कुछ धर्म – अधर्म के मध्य अंतर दिखाई नहीं पड़ रहा है। इनके अंध भक्त भी ऐसी भुमिका अदा कर रहेहै।इन्हे पता होना चाहिए कि प्रजातंत्र में जनता ही जनार्दन होती है।वेअपने प्रतिनिधि को पाँच बर्षो के सत्ता के सिंहासन पर बिठाते है।ताकि के उनके प्रतिनिधि के रूप उनकी रक्षा व सुरक्षा के साथ सर्वांगीण विकास करें।ना कि सत्ता की लोलुपता में हिटलर बन जाए।
पाँच राज्यों के विधानसभा के चुनाव के परिणाम भारतीय राजनीति की दशा व दिशा देने वाली है। ऐसे समय जब देश राजनीति के कठिन दौर से गुजर रहा है। पाँच राज्यों के विधानसभा के मतदाताओं से विनम्र अपील है वह विश्व के सबसे प्रजातंत्र के महापर्व की महायज्ञ में अपनी आहुति के रूप में मतदान अवश्य ही करे भले वह नोटा क्यू ना हो , देश की जनता को इंतजार है 11 मार्च 2022 का ‘ जब पाँच राज्यों की जनता जनार्दन के फैसले के रूप विधान सभा के चुनाव के परिणाम राज्यों में सरकार बनाने के साथ आगामी माह राज्य सभा के चुनाव ‘ राष्ट्रपति के चुनाव ‘ वर्ष के अंत में गुजरात व हिमाचल प्रदेश के चुनाव व सबसे महत्वपूर्ण आगानी 2024 लोक सभा के चुनाव को प्रभावित करेंगी |तब तक के लिए यह कहते हुए विदा लेते है-ना ही काहू से दोस्ती ना ही काहू से बैर।खबरी लाल तो मांगे सबकी खैर॥
प्रक्रिया में उनकी शैक्षिक योग्यता है।जिस की समय समय पर उसके पद के अनुसार निर्धारित कि जाती है।संविधान निमार्ण के समय डॉ राजेंद्र प्रसाद ने योग्यता के बिंदु पर अपना मत व्यक्त करते हुए कहा था कि संसद में जन प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित हो कर राष्ट्र निर्माण का कार्य करने वाले व्यक्ति भले ही शैक्षिक रूप सम्पन्न ना हो किन्तु वह निश्चित रूप से सच्चरित्र हो ,उस के चरित्र पर रांदेह ना हो , जिसे वह बिना धर्म जाति आदि के मोह पाश में पडे ‘ समाज व राष्ट्र निर्माण के हित में निर्णय ले सकें।उन्होंने शैक्षिक योग्यता की जगह जन प्रतिनिधि की आचरण व सचरित्र पर लोकतंत्र के लिए आधार माना था।किन्तु इन दिनों व्यवहार में यह देखा जा रहा है कि पुरी तरह से इस संदर्भ में तस्वीर ही अलग है।सचरित्र व निष्ठावान व्यक्ति चुनाव से अपने के दूर रखना पसंद करते है वही माफिया ‘गुंडे अपराधिक प्रवृति के लोग जनप्रतिनिधि के रूप अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है।
आज सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव में बाहुबली व माफियाओं को टिकट दे कर अपनी पीठ थपथपा रही है।भारतीय राजनीति के ऊपर संकट के काले कारनामों वाले जनप्रतिनिधि के रूप विधायी व्यवस्था में अपनी शक्ति का प्रयोग कर रही है। जिसे समाज के जागरूक नागरिकों द्वारा ऐसी जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने के लिए समय समय पर मांग उठती रहती है।जिस पर अभी तक कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया है।हालाकि सन 2013 में एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को निर्देश देते हुए कहा कि चुनाव आयोग को वोटिंग मशीन में प्रत्याशियों के नाम एवं उनके चुनाव चिन्ह के साथ नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने का दिया गया था ! नोटा Note of the above शब्द का संक्षिप्त रूप है। जिसका हिंदी में अर्थ है इनमें से कोई नहीं ” I सन 2013 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पीपुल्स ऑफ सिविल लिबर्टीज की जन हित याचिका पर दिये गये फैसले के परिणाम स्वरूप ई वी एम मशीन में अन्तिम प्रत्याशी के नाम रूप में नोटा को सम्मिलित किया गया।जिसका चुनाव चिन्ह के रूप में क्रॉस ई वी एम मशीन सबसे अन्तिम में अंकित किया गया।अब कोई भी मतदाता अपना मतदान कर ते समय अपनी पसंद व सुयोग्य प्रत्याशी नही होने पर नोटा के बटन दबाकर कर अपना मतदान कर सकता है।चुनाव आयोग की व्यवस्था के अनुसार नोटा को प्राप्त मत निर्णायक ना होकर निरस्त मतों की श्रेणी में रखें जाते है।फिर भी उसका अपना महत्व चुनाव परिणामों को करने में दिखाई पड़ते है।इस सम्बन्ध में पूर्व चुनाव आयुक्त टी एस कृष्णमूर्ति ने यह सुझाव दिया है कि यदि चुनाव में हार जीत का अंतर नोटा को प्राप्त मतों से कम है तो उस चुनाव को निरस्त कर पुनः चुनाव कराया जाना चाहिए ।
भारतीय लोकतंत्र के लिए महापर्व वर्ष है।सन 2022 के इस चुनावी कैलेंडर साल में 7 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने वाले है।
फिलहाल चुनाव आयोग ने पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के तारीखों की घोषणा करते ही उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड,पंजाब,गोवा और मणिपुर विधानसभा के चुनावी प्रक्रिया चल रही है।सभी प्रमुख राजनीति दलों ने अपनी कमर कस ली तथा अपनी जीत के लिए शाम,दण्ड व भेद का इस्तेमाल करने में कोई कसर नही छोड रही है।वहीं इसी साल के अंत में हिमाचल प्रदेश और गुजरात के विधान सभाओं के चुनाव कराए जाएंगे।आज भारतीय राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले उत्तर प्रदेश में प्रथम चरण मतदान 61 % से अधिक मतदाताओं ने अपने मतदान किया है।दुसरे चरण का मतदान 14 फरवरी को है।
पाँच राज्यो उत्तर प्रदेश ,उत्तराखंड और पंजाब राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम यह बताएंगे कि केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व मे भाजपा सरकार द्वारा लाये गये तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हुए किसान आंदोलन का असर कैसा रहा। हालांकि किसान आन्दोलन के व्यापक विरोध के चलते तीनो नये कृषि कानून को केन्द्र सरकार द्वारा वापस ले ली गई है ,जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं,वहाँ के विभिन्न संगठनों व अन्य स्रोतों से कराये गये सर्वे के अनुमान के मुताबिक कांग्रेस और विपक्षी दलों को इस बार बीजेपी के सामने मुश्किलें खडा कर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा सकती है।ऐसे में इन पांच राज्यों के विधानसभा के परिणाम संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा की तस्वीर तय करेगी।राजनीति के पंडितों के अनुसार ।ऐसे में बीजेपी के लिए अपनी पसंद के राष्ट्रपति उम्मीदवार चुनने व राज्यसभा में भी अपनी पार्टी का दबदबा बनाए रखने के लिए इन पांच राज्यों में पुराना प्रदर्शन दोहराने के लिए ऐन ,केन व प्रकरण दबाव बना रही है।तो वहीं विपक्ष राजनीतिक दलों के द्वारा इन पांच राज्यों के विधानसभा के चुनाव के परिणाम को अपने पक्ष में कर बीजेपी को सबक सिखाते हुए कमजोर करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रही है।वही केन्द्र की भाजपा सरकार केंद्र सरकार के पूरे कैबिनेट ‘भा जा पा शासित मुख्यमंत्री ‘सांसद सहित तमाम पार्टी को प्रचार युद्ध झोंक दी है।वही केंद्र की सता के कुर्सी पर आसीन बीजेपी के लिए आगामी वर्ष 2024 लोक सभा आम चुनाव से पहले यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि भाजपा ही भारत का भाग्य विधाता है।प्रत्येक राष्ट्र प्रेमी का शुभचिंतक है।गृह मंत्री स्वयं घर घर जाग कर मतदाताओं से अपील करने को मजबुर है कि आप अपने बोट विधायक ‘मंत्री या मुख्यमंत्री का चुनाव नही कर रहे बल्कि भारत का भविष्य बनाने व उसे सुरक्षित करने के लिए हमारी पार्टी को बोट दे रहे है,लेकिन यहाँ तो सच्चाई कुछ और ही है।सन 2019 में आम चुनाव में बड़ी जीत मिलने के बाद भी बीजेपी अलग-अलग मोर्चों पर संकट का सामना करना पड़ रही है।चाहे गुड गवर्नेंस का मसला हो या राजनीति सियासत की पिच, बीजेपी के लिए उतार-चढ़ाव भरे संकेत रहे हैं।भारतीय लोकतंत्र की जनता इतनी भोली भाली नहीं है जितनी की केंद्र की सत्ता के सिंहासन पर आसीन अंहकारी भाजपा के स्वंभू चाणक्य व रणनीति कार समझ रही है तभी तो वह दिन के उजाले दिवास्वप्न देख रही है।वे सत्ता सुख इतने लिप्त हो गये है कि जैसे कि महाभारत के कौरवों के पिता घृष्टराष्ट्र पुत्र मोह में कुछ धर्म – अधर्म के मध्य अंतर दिखाई नहीं पड़ रहा है। इनके अंध भक्त भी ऐसी भुमिका अदा कर रहेहै।इन्हे पता होना चाहिए कि प्रजातंत्र में जनता ही जनार्दन होती है।वेअपने प्रतिनिधि को पाँच बर्षो के सत्ता के सिंहासन पर बिठाते है।ताकि के उनके प्रतिनिधि के रूप उनकी रक्षा व सुरक्षा के साथ सर्वांगीण विकास करें।ना कि सत्ता की लोलुपता में हिटलर बन जाए।
पाँच राज्यों के विधानसभा के चुनाव के परिणाम भारतीय राजनीति की दशा व दिशा देने वाली है। ऐसे समय जब देश राजनीति के कठिन दौर से गुजर रहा है। पाँच राज्यों के विधानसभा के मतदाताओं से विनम्र अपील है वह विश्व के सबसे प्रजातंत्र के महापर्व की महायज्ञ में अपनी आहुति के रूप में मतदान अवश्य ही करे भले वह नोटा क्यू ना हो , देश की जनता को इंतजार है 11 मार्च 2022 का ‘ जब पाँच राज्यों की जनता जनार्दन के फैसले के रूप विधान सभा के चुनाव के परिणाम राज्यों में सरकार बनाने के साथ आगामी माह राज्य सभा के चुनाव ‘ राष्ट्रपति के चुनाव ‘ वर्ष के अंत में गुजरात व हिमाचल प्रदेश के चुनाव व सबसे महत्वपूर्ण आगानी 2024 लोक सभा के चुनाव को प्रभावित करेंगी |तब तक के लिए यह कहते हुए विदा लेते है-ना ही काहू से दोस्ती ना ही काहू से बैर।खबरी लाल तो मांगे सबकी खैर॥