भीतर के रावण से मुक्ति : दशहरे का शाश्वत दर्शन

Dr. Gopaldas Nayak
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Dr. Gopaldas Nayak
I am currently working in Government College Khandwa, I have been doing teaching work for the last several years and also writing work in various genres
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डॉ. गोपालदास नायक, खंडवा

हर वर्ष दशहरे का पर्व आते ही रावण के पुतले जलाए जाते हैं, आसमान पटाखों से जगमगा उठता है और लोग उल्लासपूर्वक विजयदशमी का उत्सव मनाते हैं। किंतु प्रश्न यह है कि यदि रावण सचमुच जल चुका है, तो फिर समाज में झूठ, अन्याय, लालच, हिंसा और भ्रष्टाचार बार-बार क्यों जन्म लेते हैं? क्यों हर घर, हर गली और हर संस्था में एक-एक रावण सिर उठाए खड़ा दिखाई देता है? इसका उत्तर सीधा है—रावण केवल मैदान में खड़ा पुतला नहीं है, वह हमारे भीतर भी जीवित है। और जब तक हम अपने अंतःकरण के रावण से मुक्ति नहीं पा लेते, तब तक दशहरा केवल बाहरी प्रदर्शन रह जाएगा, जीवन का सच्चा दर्शन नहीं।

दशहरा केवल राम – रावण युद्ध का प्रतीक नहीं है, यह मनुष्य की आत्मा और उसके भीतर छिपे अंधकार के बीच चलने वाले निरंतर संघर्ष का प्रतीक है। एक ओर सत्य, करुणा और मर्यादा के राम हैं, तो दूसरी ओर अहंकार, लालच और स्वार्थ के रावण। यह संघर्ष केवल त्रेतायुग में नहीं हुआ था, यह हर युग, हर समाज और हर व्यक्ति के भीतर आज भी हो रहा है। जब हम किसी अन्याय को देखकर चुप रहते हैं, तो भीतर का रावण जीतता है। जब हम स्वार्थ के लिए सच को तोड़ते हैं, तो रावण हँसता है। जब हम स्त्री का सम्मान नहीं करते, जब हम रिश्तों को व्यापार बना देते हैं, जब हम सत्ता और पद की लालसा में नैतिकता छोड़ देते हैं—तब हम स्वयं रावण का रूप धारण कर लेते हैं।

समाज का सबसे बड़ा संकट –

यह है कि हम बुराई को बाहर ढूँढते हैं, पर भीतर की बुराई को स्वीकारने से बचते हैं। पुतले जलाना आसान है, पर भीतर के अहंकार को जलाना कठिन। आतिशबाज़ी करना आसान है, पर ईर्ष्या, लोभ और क्रोध की आग बुझाना कठिन। यही कारण है कि हर साल दशहरा आता है, पर समाज का चेहरा जस का तस बना रहता है। आज ज़रूरत इस बात की है कि हम त्योहार को केवल उत्सव न मानकर, आत्मचिंतन और आत्मसंयम का अवसर समझें।

राम का आदर्श हमें यही सिखाता है कि विजय केवल बाहरी युद्ध में नहीं, बल्कि भीतर की जंग जीतने में है। राम ने रावण को केवल धनुष-बाण से नहीं हराया था, उन्होंने सत्य, मर्यादा और न्याय के बल पर उसे परास्त किया। उनका चरित्र बताता है कि सत्ता से बड़ा धर्म है, बल से बड़ा संयम है और जीवन से बड़ा कर्तव्य है। समाज को यदि सचमुच राम चाहिए, तो हमें उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारना होगा—स्त्रियों का सम्मान, वचन का पालन, करुणा और न्याय के प्रति समर्पण।

आधुनिक समाज में रावण के दस सिर और अधिक खतरनाक रूप ले चुके हैं। भ्रष्टाचार एक सिर है, हिंसा दूसरा, जाति और धर्म के नाम पर नफरत तीसरा, परिवारिक विघटन चौथा, पर्यावरण का विनाश पाँचवाँ, शिक्षा का व्यापारीकरण छठा, सत्ता का दुरुपयोग सातवाँ, तकनीक का अहंकार आठवाँ, उपभोक्तावाद नौवाँ और संवेदनहीनता दसवाँ। जब तक ये दस सिर हमारे समाज में जीवित हैं, तब तक असली विजयदशमी नहीं हो सकती।

दार्शनिक दृष्टि से देखें तो दशहरा हमें यह सिखाता है कि सत्य की शक्ति भले ही धीमी और शांत लगे, किंतु अंततः वही विजयी होती है। झूठ और अन्याय का महल कितना भी ऊँचा क्यों न हो, उसका आधार खोखला होता है। इतिहास गवाह है कि अहंकार का अंत हमेशा पतन में हुआ है। रावण, कौरव, हिटलर, या किसी भी अत्याचारी की गाथा देख लीजिए—सभी का अंत उनके अपने ही दोषों से हुआ। यही शाश्वत संदेश दशहरा हमें बार-बार स्मरण कराता है।

भीतर के रावण से मुक्ति :

आज जब समाज तेजी से बदल रहा है, जब विज्ञान ने हमें अपार शक्ति दी है, तब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम इस शक्ति का उपयोग किस दिशा में करते हैं। यदि यह शक्ति अहंकार और विनाश की ओर जाएगी, तो हम आधुनिक रावण बनेंगे। यदि यह शक्ति करुणा, न्याय और समानता की ओर जाएगी, तो हम राम के मार्ग पर चलेंगे। हर व्यक्ति को यह चयन करना है कि वह किस ओर खड़ा है।

विजयदशमी का वास्तविक अर्थ केवल बुराई को जलाना नहीं, बल्कि अच्छाई को जीना है। यदि हम सच बोलने का साहस करें, यदि हम अपने बच्चों को केवल पढ़ाई ही नहीं, बल्कि मूल्य और संवेदनाएँ भी सिखाएँ, यदि हम अपने कर्मों से समाज को न्यायपूर्ण बनाएँ, तभी दशहरा सार्थक होगा। यह पर्व हमें आह्वान करता है कि हम भीड़ में जयकारा लगाने वाले दर्शक न बनें, बल्कि भीतर के रावण को परास्त करने वाले साधक बनें।

इसलिए जब हम रावण का पुतला जलते देखें, तो उस धुएँ में केवल लकड़ी और कपड़े की राख न देखें, बल्कि अपने भीतर की बुराइयों का दहन देखें। जब आतिशबाज़ी से आकाश गूँजे, तो अपने अंतःकरण में एक दीपक जलाएँ। यही सच्चा दशहरा है—भीतर के रावण से मुक्ति और सत्य की स्थापना। यही जीवन का शाश्वत दर्शन है, यही समाज के लिए सबसे बड़ा संदेश है।

 

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