ज्ञानवापी और 1991 का ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट’

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(लेखक-मृत्युंजय शर्मा)

वाराणसी का ज्ञानवापी आज देश का सबसे चर्चित मुद्दा बना हुआ है, जो वाराणसी की जिला अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच चुका है। इसके साथ ही एक ऐसा कानून भी है जो तेजी से चर्चा में आ गया है और वो है “प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट-1991”|
ज्ञानवापी परिसर में मौजूद श्रृंगार गौरी की प्रतिमा की पूजा करने की अनुमति साल में एक बार नवरात्री के चतुर्थी के दिन मिलती थी। हाल ही में 5 महिलाओं ने श्रृंगार गौरी की पूजा करने की अनुमति मांगते हुए वाराणसी कोर्ट में याचिका दायर किया जिसपे कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर का सर्वे कराने का आदेश दिया। मुस्लिम पक्ष के द्वारा सर्वे टीम का दो दिन विरोध किये जाने के बाद तीसरे दिन सर्वे का काम पूरा किया गया। इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि वाराणसी कोर्ट का ज्ञानवापी के सर्वे का आदेश ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 का उल्लंघन है। लेकिन क्या है ये “प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट” और क्या कहते हैं इसके प्रावधान, आइए जानते हैं।
इस कानून के मुताबिक 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। इसका मतलब है कि आजादी मिलने के दिन जिस उपासना स्थल का जो स्वरूप था, वो यथावत बना रहेगा। अगर कोई इस कानून का उल्लंघन करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है ।
इस कानून की धारा-3 किसी पूजा स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में बदलने पर रोक लगाती है। धारा-4(1) कहती है कि 15 अगस्त 1947 को किसी पूजा स्थल का जो चरित्र था उसे वैसा ही बनाए रखना होगा। वहीं, धारा-4(2) के प्रावधान उन मुकदमों, अपीलों और कानूनी कार्यवाही को रोकने की बात करता हैं जो पूजा स्थल कानून के लागू होने की तिथि पर लंबित थे।
1991 में जब राम मंदिर आन्दोलन अपने उत्कर्ष पर था, तब पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने यह कानून लाया था और इसके तहत राम मंदिर-बाबरी मस्जिद केस को इससे दूर रखा था। नरसिम्हा राव के कार्यकाल में गृह मंत्री शंकरराव चव्हाण ने इस प्रस्ताव को सदन के सामने रखा था। इसके समर्थन में रामविलास पासवान तथा पीएम सईद ने अपना पक्ष रखा था। बिल के विरोध में मुख्य वक्ता थे पूर्व चीफ जस्टिस व भाजपा सांसद गुमानमल लोढा और खजुराहो से तत्कालीन सांसद उमा भारती। उमा भारती ने संसद में कहा था “हिन्दुओं की औकात दिखाने के लिए मंदिर पर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई जिसे देखकर मेरे शरीर से ज्वाला फटने लगी, ज्ञानवापी के सच को नहीं देखना वैसा ही है जैसे बिल्ली को देखकर कबूतर अपनी आँखे बंद कर लेता है, लेकिन इससे सच नहीं बदल जाता।”
हिन्दू पक्ष का मानना है कि मंदिर को तोड़कर उसी के ऊपर औरंगजेब के द्वारा मस्जिद बने गई थी। औरंगजेब: द मैन एंड द मिथ’ के लेखक और इतिहासकार ऑन्द्रे ट्रस्क का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के शासनकाल में हुआ था| औरंगजेब के फरमान पर ही मस्जिद को मंदिर के स्ट्रक्चर पर ही खड़ा किया गया था।
इस कानून को चुनौती देने वाली दो याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं। इनमें से एक याचिका लखनऊ के विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ और दूसरी याचिका भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने लगाई है।  दोनों याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं।
वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर को लेकर सबसे पहला मुकदमा 1936 में दीन मोहम्मद बनाम सेक्रेटरी ऑफ स्टेट का था| अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बनारस की कोर्ट में याचिका दायर कर दीन मोहम्मद नामक व्यक्ति ने ज्ञानवापी मस्जिद और उसकी आसपास की जमीनों पर अपना हक जताया था| तब अदालत ने इसे मस्जिद की जमीन मानने से इनकार कर दिया था। 1937 से 1991 तक ज्ञानवापी परिसर को लेकर दोनों पक्षों में कोई विवाद नहीं हुआ| 15 अक्तूबर, 1991 में ज्ञानवापी परिसर में नए मंदिर निर्माण और पूजा पाठ के अधिकार को लेकर पं. सोमनाथ व्यास, डॉ. रामरंग शर्मा और अन्य ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन) वाराणसी की अदालत में वाद दायर किया| मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद को प्रतिवादी बनाया गया है।
20 मई 2022 को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मस्जिद के अंदर पूजा के मुकदमे की सुनवाई वाराणसी के जिला न्यायाधीश द्वारा की जाए। वाराणसी के जिला न्यायाधीश मस्जिद समिति की याचिका पर फैसला करेंगे कि हिंदू पक्ष द्वारा दायर ये मुकदमा चलने योग्य है या नहीं और तब तक अंतरिम आदेश-शिवलिंग क्षेत्र की सुरक्षा, नमाज के लिए मुसलमानों को मुफ्त प्रवेश-जारी रहेगा। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने ये भी कहा कि किसी स्थान के धार्मिक चरित्र के निर्धारण को पूजा स्थल अधिनियम द्वारा वर्जित नहीं किया जा सकता।
अभी मामला कोर्ट के विचाराधीन है। सर्वे में मिले साक्ष्य के आधार पर हिन्दू पक्ष आश्वस्त है कि ये मन्दिर के स्थान पर ही मस्जिद बनाया गया था। इसलिए लोग संसद के द्वारा इस कानून को बदलने को लेकर चर्चा करने लगे हैं। अब देखना ये है कि कोर्ट में सुनवाई के बाद क्या नतीजा निकलता है और क्या इस कानून को बदलने की जरूरत पडती है |

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