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देश की महामहिम ब्रह्माकुमारी द्रौपदी मुर्मू!  

लेखक- डॉ श्रीगोपाल नारसन

यह सच है भगवान हर किसी की परीक्षा लेते है और जो कठिन से कठिन परीक्षा में भी विचलित न हो उसे भगवान सिर आंखों पर बैठा लेते है।द्रौपदी मुर्मू के साथ भी ऐसा ही हुआ।अपने पति और दो बच्चों को हमेशा के लिए खो चुकी द्रौपदी के जीवन मे एक समय ऐसा अंधकार आया था कि लग ही नहीं रहा था, कभी सवेरा भी होगा।लेकिन जैसे ही दौपदी मुर्मु प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के सम्पर्क में आई और राजयोग का अभ्यास कर उनका सम्बंध सीधे भगवान से जुड़ा तो उनके जीवन में गहराया अंधकार हमेशा हमेशा के लिए छंट गया।द्रौपदी को तब तक यह ज्ञान भी हो गया था कि यह सृष्टि एक ड्रामा है जिसमे हम सब अपना अपना किरदार निभाने आए है।जिनका किरदार जितना है,वह उतने ही समय तक रह पाएगा और फिर सबको अपने वास्तविक घर परमधाम जाना है।इसी ज्ञान ने उन्हें जीवन मे प्रकाश दिया और वे देश,समाज व ईश्वरीय सेवा करने में सक्षम हुई।अपने संघर्ष पूर्ण जीवन के इस  सुखद पड़ाव  पर आकर वे सर्वोच्च पद पर आसीन हो रही है।25 जुलाई को द्रौपदी मुर्मू देश के 15वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण करेंगी।एक आदिवासी परिवार की महिला का देश के राष्ट्रपति पद तक पहुंचना इतना आसान नहीं था। क्योंकि उनका जीवन  कई मुश्किलों से भरा रहा है,लेकिन वे सफर की हर मुश्किल को दूर करती चली गईं।
द्रौपदी मुर्मू बेहद अनुशासनात्मक और साधारण जीवन जीती हैं। वे रोज सुबह 3 बजे उठ जाती हैं और अपना नियमित राजयोग का अभ्यास करती हैं। विकास महन्तो, द्रौपदी मुर्मू असाधारण रूप से मेहनती और समय की पाबंद हैं।वह जो भी काम करती हैं, उसके बारे में समय की पाबंद होती हैं। सुबह 3 बजे उठने के बाद राजयोग अभ्यास यानि परमात्मा की याद में बैठने के बाद वे नित्य कार्यो में जुट जाती है। फिर नाश्ता करती हैं और उसके बाद अखबार व कुछ आध्यात्मिक किताबें पढ़ती हैं।”
“अध्यात्म विषयक यूट्यूब वीडियो भी देखती हैं। ब्रह्माकुमारी बहनों और भाइयों द्वारा दिए गए आध्यात्मिक ज्ञान से उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव आया है। अपने दोनों बेटों को खोने के बाद, वह अंदर ही अंदर बहुत दुखी रहती थीं। राजनीति से भी दूर हो जाना  चाहती थी, लेकिन जैसे ही वह ब्रह्मकुमारी संस्था में शामिल हुईं और राजयोग का कोर्स किया, वह ठीक होने लगीं व फिर से काम पर वापस आ गई।” द्रौपदी अपने साथ ब्रह्माकुमारीज की  किताबे रखती हैं। वह शुद्ध शाकाहारी हैं,  प्याज और लहसुन तक नहीं खाती हैं। ओडिशा की विशेष मिठाई “चेन्ना पोड़ा” उनका पसंदीदा व्यंजन है। 21 जून की शाम करीब 8 बजे उन्हें एक फोन आया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे बात करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री ने उन्हें बताया कि संसदीय बैठक के बाद उन्होंने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में उनका नाम रखने का फैसला किया है।शुरूआती कुछ सेकेंड के लिए वे काफी भावुक हो गई थीं। शायद उन्हें अपने पति और बेटों की याद आ रही थी।वह थोड़ा रोई, और फिर सामान्य हो गईं क्योंकि यह खबर आते ही उनके यहां भीड़ एकत्र हो गई थी।” द्रौपदी मुर्मू आज जिस मुकाम पर हैं, वहां पहुंचने के लिए उन्होंने एक लंबा सफर तय किया है। सन 2009-2015 के बीच केवल छह वर्षों में, मुर्मू ने अपने पति, दो बेटों, मां और भाई को खो दिया था, लेकिन अपने जीवन में इतनी त्रासदियों के आने के बाद भी वे मुसीबतों से टकराती रही और आज वे देश की शीर्ष पद तक जा पहुंची हैं।
ब्रह्माकुमारीज संस्थान के कार्यकारी सचिव बीके मृत्युंजय ने बताया कि 13 साल से मुर्मू नियमित तौर पर आबू रोड ब्रह्माकुमारीज मुख्यालय आती हैं व आबू रोड के साथ ही माउंट आबू में होने वाले संस्थान के कार्यक्रमों में शामिल होती हैं। मृत्युंजय ने बताया कि उनके पहले बेटे की सन 2009 में मृत्यु हुई और फिर दूसरे साल उनके दूसरे बेटे की मृत्यु ने उन्हें हिलाकर रख दिया था।
उन्होंने सन 2014 में पति को भी खो दिया था। इसके बाद वह अध्यात्म के ज्यादा करीब आ गईं। विधायक और झारखंड की राज्यपाल रहते हुए उन्होंने अध्यात्म के प्रचार-प्रसार में अहम योगदान दिया।31 जनवरी,सन 2016 और आठ फरवरी, सन 2020 को मूल्य शिक्षा महोत्सव कार्यक्रम में शामिल होने आईं मुर्मू ने ब्रह्माकुमारीज में रहने वाले लोगों से व्यक्तिगत तौर पर संवाद किया । उनके राष्ट्रपति पद पर चुने जाने पर ब्रह्माकुमारीज संस्थान के सदस्यों में खुशी की लहर है।द्रौपदी मुर्मू ने शीघ्र ही ब्रह्माकुमारीज संस्थान आबू रोड आने का वादा भी किया है।
द्रौपदी मुर्मू के पास वृहद प्रशासनिक अनुभव है। वह ओडिशा में परिवहन, वाणिज्य, मत्स्य व पशुपालन विभाग की मंत्री रही हैं। 64 वर्षीय मुर्मू ने राजनीतिक करियर का आरंभ पार्षद के रूप में किया और बाद में ओडिशा के रायरंगपुर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की वाइस चेयरमैन बनीं। संताल आदिवासी समुदाय से आने वाली मुर्मू ने झारखंड के राज्यपाल के तौर पर भी अपनी प्रशासनिक दक्षता की छाप छोड़ी है। भुवनेश्वर के रमा देवी कॉलेज से कला स्नातक मुर्मू ने राजनीति और समाज सेवा में लगभग दो दशक का समय व्यतीत किया।उन्होंने आध्यात्मिकता के तार को इतनी कसकर पकड़ लिया कि उन्हें विपरीत परिस्थितियों को सहन करने की ताकत मिली। उनका आध्यात्मिकता के साथ एक गहरा संबंध है।
माउंट आबू केंद्र में एक कार्यक्रम के दौरान, मुर्मू ने एक बार कहा था – मैं यहां आती हूं क्योंकि यहां के भाई -बहन बहुत प्रिय हैं और मैं उनकी सकारात्मकता लेती हूं। यहां का माहौल अलग है।(लेखक ब्रह्माकुमारीज के राजयोग प्रशिक्षु व मीडिया विंग का आजीवन सदस्य है)

 

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