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वैध और अवैध कॉलोनियों में भी नंबर वन है अपना इंदौर

 

प्रदेश की 30% वैध कॉलोनियां सिर्फ इंदौर में… वहीँ सैकड़ों अवैध कालोनियों का मकड़जाल भी यहाँ

डॉ. देवेंद्र मालवीय

Indore News in Hindi। 40 लाख से अधिक की आबादी वाला मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा शहर इंदौर जो स्वच्छता में अव्वल और न केवल अपने विकास के लिए प्रसिद्ध है बल्कि अब यह वैध और अवैध कॉलोनियों के मामले में भी चर्चा में है। जहां एक ओर इंदौर में रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स के मामले में तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है, वहीं दूसरी ओर अवैध कॉलोनियों का जाल भी तेजी से फैल रहा है, जो न केवल शहर के सौंदर्य को प्रभावित कर रहा है, बल्कि प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाता है।

रेरा (रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) प्राधिकरण की वेबसाइट के अनुसार, मध्य प्रदेश में लगभग 6800 पंजीकृत प्रोजेक्ट्स हैं, जिनमें से करीब 2000 प्रोजेक्ट्स इंदौर जिले में रजिस्टर्ड हैं। मतलब प्रदेश के कुल पंजीकृत प्रोजेक्ट का लगभग 30% वैध कॉलोनियों सिर्फ इंदौर में है, इस आंकड़े के अनुसार इंदौर प्रदेश में सबसे अधिक वैध कॉलोनियों वाला शहर है। ये कॉलोनियां आधुनिक बुनियादी सुविधाओं से लैस हैं और शहर की विकास यात्रा का अहम हिस्सा बनी हुई हैं। इंदौर में रियल एस्टेट क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विकास हो रहा है। शहर के वर्ल्ड क्लास एंबिएंट के साथ विकसित होने वाली कॉलोनियों में हाई-एंड सुविधाएं जैसे सीवेज सिस्टम, सड़कों पर लाइटिंग, पानी की आपूर्ति और ग्रीन बेल्ट जैसी परियोजनाएं शामिल हैं। इन परियोजनाओं ने इंदौर को एक मजबूत रियल एस्टेट हब बना दिया है।

अवैध कॉलोनियों के मकड़जाल से जूझता शहर – illegal colonies in Indore

इंदौर में वैध कॉलोनियों के अलावा अवैध कॉलोनियों का मकड़जाल भी तेजी से फैल रहा है। पुरानी बसाहट वाली अवैध कालोनियों की संख्या सैकड़ों मे पहले से थी, वर्तमान में भी यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। अवैध कॉलोनियों के कारण शहर में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो रही है। हालांकि जिला प्रशासन ने हाल ही में इन अवैध कॉलोनियों पर कार्रवाई करने के प्रयास शुरू किए हैं, लेकिन बावजूद इसके इनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।

प्रशासन की लापरवाही और अवैध कॉलोनाइजरों की मिलीभगत के कारण यह स्थिति और भी जटिल हो गई है। अवैध कॉलोनियों के निवासी जहां सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं इन कॉलोनियों में स्थाई रूप से रहने वाले लोग भी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या सीवेज और जल आपूर्ति की है, जहां न तो पर्याप्त जल आपूर्ति हो रही है और न ही ड्रेनेज सिस्टम का उचित प्रबंधन किया जा रहा है। कई कॉलोनियों में बिजली की स्थिति भी बेहद खराब है, और यातायात के लिए बुनियादी सड़कें तक नहीं हैं।

प्रशासन की कार्रवाई –

हाल ही में, इंदौर के जिला कलेक्टर ने इन अवैध कॉलोनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्णय लिया है। जिला प्रशासन ने पटवारियों के माध्यम से इन कॉलोनियों की जांच शुरू की है। तहसीलदार और एसडीएम द्वारा 100 से अधिक प्रकरणों की पहचान की गई है। इनमें से 10 से अधिक मामलों में पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करवाई जा चुकी है, और लगभग 90 प्रकरणों पर सुनवाई जारी है। ऐसे प्रकरणों में एफआईआर दर्ज होने की संभावना जताई जा रही है।

अवैध कॉलोनियां के गढ़ माने जाने वाले मुख्य क्षेत्र –

इंदौर जिले के कई प्रमुख गांवों और क्षेत्रों में अवैध कॉलोनियों का जाल फैला हुआ है। इनमें प्रमुख रूप से आशापुरा, उमरियाखुर्द, उमरीखेडा, क़स्बा इंदौर, काली बिल्लौद , कालीबिल्लोद, केलोद करताल, कोदरिया, कोर्डियाबर्डी, खरडाखेडा, गवली पलासिया, गोकन्या, छोटा बांगडदा, जामखुर्द, जामन्या, जामन्या खुर्द, टिगरयाबादशाह, डोंगरगाँव, दतोदा, नावदापंथ, निपान्या, नेऊगुराडिया, नेनोद, पिपल्या लोहार, पिपल्याराव, पीरकराडिया, बडगोंदा, बरदरी, बांक, बावल्याखुर्द , बिलावली, बिहाडिया, बुढानिया, बुढी बरलई, भाग्या, मांगल्या सड़क, मेठवाड़ा, मोरोद नेहरु, मोरोद नेहरु, राऊ, रावेर, सनावदिया, सावेर, सिमरोल, सुकल्या, हुकमाखेड़ी जैसे गांव शामिल हैं।

इन क्षेत्रों में अवैध कॉलोनियों के निर्माण से संबंधित सैकड़ों मामले सामने आ चुके हैं। इन कॉलोनियों का मकड़जाल इतनी बुरी तरह से फैला हुआ है कि प्रशासन को इन्हें हटाना एक बड़ी चुनौती बन चुका है। फर्जी कॉलोनाइजर ने अवैध कॉलोनियों में सरकारी भूमि, ग्रीन बेल्ट और कांकड़ (गांव का रास्ता) जैसे क्षेत्रों पर भी कब्जा किया गया है। वन भूमि और केचमेंट एरिया पर भी अवैध कॉलोनियां काटी जा रही हैं, जो न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही हैं, बल्कि नियमों और कानूनों का भी उल्लंघन है।

इन अवैध कॉलोनियों के लिए जिम्मेदार कॉलोनाइजर आमतौर पर रेरा और नगर निगम के नियामक प्राधिकरण से बचते हुए इन कॉलोनियों का निर्माण करते हैं। इस दौरान नगर निगम और रेरा द्वारा इन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती, जिससे ऐसे कॉलोनाइजरों का मनोबल बढ़ता है। इसके परिणामस्वरूप प्रशासन को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है।

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