Indore News – जनजातीय उद्यमिता के लिये खुल रहे नये रास्ते : हेरीटेज मदिरा निर्माण से जुड़ेंगे जनजातीय वर्ग के युवा

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हेरिटेज मदिरा निर्माण के लिये पायलट फेस में अलीराजपुर, डिंडोरी का चयन

इन्दौर (ईएमएस)। प्रदेश में अब जनजातीय उद्यमिता के लिये नये रास्ते खुल रहे हैं। जनजातीय क्षेत्र के युवाओं को हेरीटेज मदिरा प्र-संस्करण से जोड़ा जा रहा है।

जनजातीय युवाओं को माइक्रो डिस्टलरी से महुआ की मदिरा बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उन्हें इसके लिए वित्तीय सहायता भी उपलब्ध कराई जायेगी। हेरिटेज मदिरा की गुणवत्ता के मापदंड भी निर्धारित किये जायेंगे।

हेरीटेज मदिरा के रूप में देश में इसका विक्रय किया जाएगा। इससे जनजातीय समूहों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी और महुआ से बनी हेरिटेज मदिरा मध्यप्रदेश की हेरिटेज मदिरा के रूप में देश-विदेश में जानी जाएगी।

माइक्रो डिस्टलरी से महुआ फूल से हेरिटेज मदिरा बनाने के लिए पायलट फेस में अलीराजपुर और डिंडोरी जिले का चयन किया गया है।

बाद में खंडवा जिले के खालवा विकासखंड को भी पायलट फेस के रूप में शामिल किया जायेगा।

वाणिज्यिक कर विभाग और जनजातीय कार्य विभाग के सहयोग से 13 जनजातीय युवाओं द्वारा वसंत दादा शुगर इंस्टिट्यूट पुणे में महुआ से हेरिटेज मदिरा बनाने का प्रशिक्षण दिलाया गया है। भविष्य में और जनजातीय युवाओं को इस तरह का प्रशिक्षण दिलवाया जायेगा।

इसके लिये वसंत दादा शुगर इंस्टीट्यूट पुणे की सेवाएँ ली जा रही हैं। यह इंस्टीटयूट हेरीटेज मदिरा निर्माण से जुड़े मुददों पर आवश्यक अध्ययन करेगा। साथ ही प्रशिक्षण माडयूल तथा प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी तैयार करेगा।

जनजातीय कार्य विभाग द्वारा पायलट फेस में स्थापित की जा रही माइक्रो डिस्टलरी के लिए वित्तीय सहायता दी जा रही है।

प्रदेश के जनजातीय समुदाय द्वारा पारंपरिक रूप से महुआ फूल से शराब बनाई जाती है, जिसका वे पारंपरिक उपयोग करते हैं। हेरीटेज मदिरा को देसी शराब से पृथक माना जाएगा।

यह इकलौती ऐसी शराब है जो किसी फूल से बनाई जाती है। इसमें किसी तरह की मिलावट की संभावना नहीं है।

मंत्रि-परिषद ने किया था अनुमोदन

उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद ने हेरिटेज मदिरा का निर्माण की सैद्धांतिक अनुमति देकर पॉलिसी निर्माण के निर्देश दिये थे।

हेरिटेज मदिरा की पॉलिसी मंत्रिमंडल की उप-समिति के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी। इसमें केवल जनजाति समूहों को ही माइक्रो डिस्टलरी से महुआ शराब बनाने की अनुमति होगी। प्रदेश में आदिवासी क्षेत्रों में लघु स्तर पर महुआ आधारित अर्थव्यवस्था काम करती है। महुआ संग्रहण से कई परिवारों का जीवन चलता है।

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