दोनों और चुप्पी : बड़े नेताओं की खामोशी राजनीतिक पंडितों के समीकरण बिगाड़ रही
इंदौर नगर निगम माना जाए तो राज्य के एक छोटे विभाग के बराबर. जिसका बजट 7000 करोड़ के लगभग ।
यहां का महापौर 85 वार्डों, 5 शहरी विधानसभाओं, एक संसदीय क्षेत्र का नेता होकर किसी मंत्री के बराबर वजूद रखता है । प्रदेश में किसी भी पार्टी के लिए आर्थिक पूर्ति का बड़ा जरिया होता है इंदौर नगर निगम जहां अपने लोगों को काम देकर एडजस्ट किया जाता है ।
कांग्रेस के लिए संजय शुक्ला एक साफ छवि के, आर्थिक रूप से सक्षम, वर्तमान विधायक, होकर एक अच्छे कैंडिडेट हैं। वही पुष्यमित्र भार्गव पब्लिक फेस ना होकर पढ़े लिखे प्रत्याशी के रूप में प्रचलित हो रहे हैं ।
विधानसभा चुनावों के पहले से ही संजय शुक्ला कहीं शिवलिंग वितरण, कहीं धार्मिक यात्राओं का आयोजन, तो कोविड़ के समय मदद, कहीं ना कहीं जनता से जुड़े रहने का कार्य करते दिख रहे हैं ।
वही बीजेपी और आर एस एस के लिए मजबूत वकालत करने वाले पुष्यमित्र चुनावी दौड़ में पहली बार दौड़ते नजर आ रहे हैं ।
विगत वर्षों का इतिहास देखा जाए तो इंदौर भाजपा का गढ़ दिखता है पर बड़े-बड़े राजनीतिक गढ़ों में भी सेंध लगने का इतिहास हमे भूलाना नहीं चाहिए ।
यह पहला चुनाव है जहां दोनों ही दलों के बड़े नेता हाथ पर रात हाथ रखकर बैठे दिखाई दे रहे है, चेहरे के सामने आने पर बहुत एक्टिव और दूर हटते ही डीएक्टिव हो रहे हैं । दोनों दलों के बड़े नेताओं की इस चुप्पी पर राजनैतिक पंडितों के समीकरण सही बैठते दिख नहीं रहे है, अपने-अपने समीकरणों को पुख्ता मानने वाले ज्ञानी भी इस बार पत्ते खोलने में चमक रहे हैं ।
सदभावना पाती अखबार टीम की नजर शहर के कोने कोने पर है, जहां से आज के हालात में चुनाव किसी एक पक्ष में होते नहीं दिख रहा ।
जनता से बातचीत अनुसार किसी पक्ष को अधिकारियों का साथ तो किसी पक्ष को बड़े नेताओं का निर्देश इस चुनाव में दिखाई दे रहा है।