(लेखक-सनत कुमार जैन)
2002 से 2007 तक गुजरात राज्य का मोदी राज उनका सबसे बेहतर कार्यकाल था। इस बीच गुजरात में शांति बनी रही। गोधरा कांड के बाद गुजरात के मुस्लिमों में भय व्याप्त था। 2002 के विधानसभा को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जीतकर भाजपा ने उनके सशक्त नेतृत्व एवं हिन्दू सम्राट के रूप में स्वीकार किया। दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नरेन्द्र मोदी ने हिन्दू मुस्लिमों के विवाद को गुजरात में जड़ से समाप्त कर दिया था। 2002 के मोदी राज में बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद तथा राष्ट्रीय स्वयं संघ की गतिविधियां सार्वजनिक रूप से गुजरात में बंद हो गई थी। गोधरा कांड के बाद कट्टर हिन्दूवादी नेता की छवि बनने के बाद मोदी ने संघ, बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद की गतिविधियों पर अप्रत्यक्ष रूप से रोक लगा दी। जिसका विरोध हिन्दू संगठन नहीं कर सके। मुस्लिमों में भी गोधरा कांड के बाद भय व्याप्त था। परिणाम स्वरूप 2002 से 2007 के बीच अन्य राज्यों की तुलना में कानून व्यवस्था की स्थिति सबसे बेहतर थी। परिणाम स्वरूप मुस्लिमों के वोट भी भाजपा की झोली में गिरने लगे। नरेंद्र मोदी के काल में मुस्लिम सुरक्षित हो गए थे।
2002 के पहले गुजरात में मंदिरों के सामने घंटा बजाकर हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ता अपनी भक्ति सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित कर मुस्लिमों को चुनौती देते थे। वहीं शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद मुस्लिम एकत्रित होकर ताकत का प्रदर्शन करते थे। परिणाम स्वरूप हर सप्ताह गुजरात के किसी न किसी भाग में धारा 144 कर्फ्यू, हिंसा एवं तोड़फोड़ की घटनाएं आम थी। नरेन्द्र मोदी ने 2002 के बाद से गुजरात राज्य के हिन्दू और मुस्लिम संगठनों के उग्रवादी एवं बड़बोले नेताओं पर पूरी तरह नियंत्रण पा लिया था। जिसके कारण अशांत गुजरात शांति का टापू बन गया। वहीं मुस्लिमों में भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सुरक्षित होने का भरोसा जागा। पहली बार बड़ी संख्या में गुजरात के मुस्लिमों ने 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट दिया।
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 2002 से 2007 का गुजरात मॉडल सारे देश में लागू होता, तो देश का विकास एवं गुजरात मॉडल बड़ी तेजी के साथ आगे बढ़ता। किन्तु 2014 का लोकसभा और उसके बाद विधानसभा चुनाव जीतने के लिए जिस तरह से देश में हिन्दू-मुस्लिमों के बीच धुव्रीकरण और नफरत की राजनीति को बढ़ाया गया। उसके कारण पिछले 8 वर्षों में हिन्दू संगठन के उग्रवादी कार्यकर्ता काफी ताकतवर होकर उभरे हैं। कहावत है लाठी को उतना ही झुकाव जिससे वह टूटे नहीं। किन्तु पिछले 1 वर्ष में जिस तरह 80-20, धारा 370 मस्जिदों एवं मंदिरों के विवाद में हिन्दू संगठनों ने जिस तरह से मुस्लिम पक्ष को भयाक्रांत है। पैगम्बर पर विवादित टिप्पणी के बाद सारे देश में कानून व्यवस्था की जिस तरह खराब हो रही है वह सरकार के साथ-साथ भाजपा के लिए चिंता का विषय बन गया है। अंतररार्ष्ट्रीय परिपेक्ष्य में भी हिन्दू संगठन के उग्र कार्यकर्ताओं को नियंत्रित कर पाना भाजपा संगठन और सरकार के लिए आसान नहीं होगा। सोशल मीडिया पर जिस तरह की प्रतिक्रिया हो रही है। वह वर्ग संघर्ष को बढ़ाने वाली है।
2002 के पहले गुजरात में मंदिरों के सामने घंटा बजाकर हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ता अपनी भक्ति सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित कर मुस्लिमों को चुनौती देते थे। वहीं शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद मुस्लिम एकत्रित होकर ताकत का प्रदर्शन करते थे। परिणाम स्वरूप हर सप्ताह गुजरात के किसी न किसी भाग में धारा 144 कर्फ्यू, हिंसा एवं तोड़फोड़ की घटनाएं आम थी। नरेन्द्र मोदी ने 2002 के बाद से गुजरात राज्य के हिन्दू और मुस्लिम संगठनों के उग्रवादी एवं बड़बोले नेताओं पर पूरी तरह नियंत्रण पा लिया था। जिसके कारण अशांत गुजरात शांति का टापू बन गया। वहीं मुस्लिमों में भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सुरक्षित होने का भरोसा जागा। पहली बार बड़ी संख्या में गुजरात के मुस्लिमों ने 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट दिया।
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 2002 से 2007 का गुजरात मॉडल सारे देश में लागू होता, तो देश का विकास एवं गुजरात मॉडल बड़ी तेजी के साथ आगे बढ़ता। किन्तु 2014 का लोकसभा और उसके बाद विधानसभा चुनाव जीतने के लिए जिस तरह से देश में हिन्दू-मुस्लिमों के बीच धुव्रीकरण और नफरत की राजनीति को बढ़ाया गया। उसके कारण पिछले 8 वर्षों में हिन्दू संगठन के उग्रवादी कार्यकर्ता काफी ताकतवर होकर उभरे हैं। कहावत है लाठी को उतना ही झुकाव जिससे वह टूटे नहीं। किन्तु पिछले 1 वर्ष में जिस तरह 80-20, धारा 370 मस्जिदों एवं मंदिरों के विवाद में हिन्दू संगठनों ने जिस तरह से मुस्लिम पक्ष को भयाक्रांत है। पैगम्बर पर विवादित टिप्पणी के बाद सारे देश में कानून व्यवस्था की जिस तरह खराब हो रही है वह सरकार के साथ-साथ भाजपा के लिए चिंता का विषय बन गया है। अंतररार्ष्ट्रीय परिपेक्ष्य में भी हिन्दू संगठन के उग्र कार्यकर्ताओं को नियंत्रित कर पाना भाजपा संगठन और सरकार के लिए आसान नहीं होगा। सोशल मीडिया पर जिस तरह की प्रतिक्रिया हो रही है। वह वर्ग संघर्ष को बढ़ाने वाली है।