गंगा नदी की तर्ज पर नर्मदा नदी के दोनों तटों से लगे गांवों मेें अब जैविक खेती की जाएगी। इसकी शुरुआत जबलपुर में शुरू होने जा रही है। जबलपुर जिले में 60 किमी से ज्यादा लम्बाई में नर्मदा नदी बहती है।
ऐसे में बड़ा रकबा जैविक खेती के लिए जिले को प्राप्त हो सकता है। कृषि विभाग रकबे का प्रारंभिक आकलन कर रहा है। अभी नर्मदा नदी के किनारे गेहूं, चना, मूंग, उड़द, सरसों, मटर सहित सब्जियों की खेती होती है।
केंद्र सरकार ने आम बजट में गंगा नदी के दोनों किनारों से करीब पांच किलोमीटर दूर तक जैविक खेती की योजना की घोषणा की है। उसी तर्ज पर प्रदेश शासन भी नर्मदा नदी के किनारों पर ऐसी ही खेती की योजना बना रहा है। माना जा रहा है कि आगामी बजट में इसका प्रावधान किया जा सकता है।
रकबे की जानकारी का किया जा रहा संकलन
नर्मदा नदी के किनारे के जिलों से प्रस्तावित रकबे की जानकारी का संकलन किया जा रहा है। जबलपुर में भी इसकी शुरुआत हो गई है। जल्द ही बैठक भी होगी।
इस साल भी कृषि विभाग ने जैविक खेती के लिए तहसीलवार योजना बनाई है। इसमें करीब 257 गांवों के 1400 से ज्यादा किसानों को शामिल किया जाएगा। इसका प्रस्तावित रकबा करीब 560 हेक्टेयर है।
वर्तमान में भी नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर अनाज, फल और सब्जियों की भरपूर पैदावार होती है।
किसानों के लिए नर्मदा किसी वरदान से कम नहीं है। अभी जो खेती हो रही है, उसमें 90 प्रतिशत किसान रसायनों का इस्तेमाल करते हैं। अब शासन की योजना है कि अधिकतर किसान जैविक खेती करें।
गोबर की खाद का होगा इस्तेमाल
प्राकृतिक खेती में प्रकृति में मौजूद तत्वों का ही कीटनाशक के रूप में उपयोग किया जाता है। कीटनाशकों के रूप में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फसलों के अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध खनिजों का उपयोग किया जाता है।
लेकिन, उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान रसायनों का व्यापक इस्तेमाल करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार ज्यादा रसायन के इस्तेमाल से कैंसर जैसी घातक बीमारियां बढ़ रही हैं।
पहले भी प्रयास, लेकिन फलीभूत नहीं
जबलपुर में पहले भी परम्परागत कृषि विकास योजना के तहत वर्ष 2016-17 में 250 किसानों के पांच क्लस्टर बनाए गए थे। इन किसानों ने 100 हेक्टेयर में जैविक खेती की।
वर्ष 2017-18 में 650 किसानों के 13 क्लस्टर बनाए गए थे। इसमें 260 हेक्टेयर में जैविक खेती हुई। इसी तरह वर्ष 2019-20 में एक हजार किसानों के 50 क्लस्टर बनाकर 600 हेक्टेयर में जैविक जैविक खेती की गई। लेकिन, बजट के अभाव में यह आगे नहीं बढ़ सकी।

