-आयुर्वेदिक जूनियर डॉक्टरों का आरोप, हमारे पास गंभीर मरीज को बचाने इमरजेंसी मेडिसिन के अधिकार तक नहीं
MP News.कोरोना के संकटकाल में सेवाएं देने वाले आयुर्वेद चिकित्सा छात्रों का दर्द अब सामने आ रहा है। राजधानी के होटल में आयोजित पत्रकार वार्ता में भोपाल, इंदौर, जबलपुर सहित प्रदेश के दूसरे आयुर्वेदिक कॉलेजों के स्टूडेंट्स ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आयुष विभाग के अफसरों, मप्र मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी जबलपुर प्रबंधन और सरकार पर भेदभाव के आरोप लगाए।
आयुष मंत्री रामकिशोर कांवरे से लेकर विभागीय अफसरों से गुहार लगाने के बाद निराश जूडा अब 24 फरवरी से काम बंद हड़ताल करेंगे। उसके पहले अपने कॉलेजों में दो दिन सफाई और गांधीगिरी करेंगे।
सरकारी आयुर्वेदिक कॉलेजों के आयुर्वेद छात्रों का आरोप है कि डॉक्टर होने के बावजूद उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है।
आयुर्वेदिक जूनियर डॉक्टरों का कहना है कि उनके पास गंभीर अवस्था में आने वाले मरीजों को प्राथमिक उपचार देने का अधिकार नहीं हैं। ऐसे में उस गंभीर मरीज की जान बचाने के लिए इमरजेंसी मेडिकल राइट्स दिए जाएं। हमारे साथ भेदभाव किया जा रहा है।
आयुर्वेदिक छात्रों को एलोपैथी स्टूडेंट्स की तरह स्टाइपेंड दिया जाए। साथ ही सीपीआई से आयुर्वेद छात्रों को लिंक करके एलोपैथी स्टूडेंट्स के साथ ही आयुर्वेद छात्रों के स्टायपेंड में बढ़ोत्तरी की जाए।
आयुष डॉक्टरों को नौकरियों का संकट
आयुर्वेद छात्र डॉ.शुभम शुक्ला ने कहा कि आयुष डॉक्टरों का भविष्य खतरे में जा रहा है। दूसरे राज्यों में हर दो-तीन साल में पीएससी के जरिए भर्तियां की जाती हैं लेकिन मप्र में आयुर्वेद के डॉक्टरों की पीएससी से भर्तियां आठ से दस साल बाद निकलतीं हैं। सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है।
आयुर्वेद छात्र डॉ.शुभम शुक्ला ने कहा कि आयुष डॉक्टरों का भविष्य खतरे में जा रहा है। दूसरे राज्यों में हर दो-तीन साल में पीएससी के जरिए भर्तियां की जाती हैं लेकिन मप्र में आयुर्वेद के डॉक्टरों की पीएससी से भर्तियां आठ से दस साल बाद निकलतीं हैं। सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है।
आयुष विश्वविद्यालय की स्थापना करे सरकार
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान छात्रों ने आरोप लगाया कि मप्र आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर में हैं।
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान छात्रों ने आरोप लगाया कि मप्र आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर में हैं।
जबकि सभी प्रशासनिक मुख्यालय भोपाल में हैं। साढ़े पांच साल में पूरी होने वाली आयुर्वेद की डिग्री को पूरा होने में आठ साल का समय लग रहा है। मेडिकल यूनिवर्सिटी ने कई बार हमारा शेड्यूल बदल दिया।
हमारी मांग है कि जबलपुर की मेडिकल यूनिवर्सिटी से पृथक कर आयुष विश्वविद्यालय का गठन किया जाए। 2013 में जनसंकल्प योजना के अंतर्गत एक हजार आयुष औषधालय खोलने की घोषणा की थी। अब तक डेढ़ से दो सौ औषधालय ही खुले हैं। यह जल्द खोले जाएं।