नवरात्रि : भीतर की शक्ति को जगाने का पर्व

Dr. Gopaldas Nayak
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Dr. Gopaldas Nayak
I am currently working in Government College Khandwa, I have been doing teaching work for the last several years and also writing work in various genres
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डॉ. गोपालदास नायक, खंडवा

नवरात्रि का उत्सव पूरे नौ दिनों तक शक्ति की उपासना का पर्व है, जो केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और दार्शनिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह उत्सव शक्ति के नौ स्वरूपों की साधना से जुड़ा है, जहाँ प्रत्येक दिन देवी का एक अलग रूप पूजित होता है। परंतु यदि गहराई से देखें तो यह पर्व केवल देवी-आराधना का क्रम नहीं है, बल्कि जीवन और समाज को संतुलित करने का दार्शनिक मार्गदर्शन भी है।

नवरात्रि का संदेश है कि मानव जीवन में शक्ति के विविध आयामों का संतुलन होना चाहिए। माँ शैलपुत्री से लेकर सिद्धिदात्री तक के नौ रूप हमें यह सिखाते हैं कि जीवन का वास्तविक पथ तप, संयम, करुणा, साहस, पवित्रता और ज्ञान से होकर जाता है। देवी का प्रत्येक रूप हमारी आंतरिक कमजोरियों और सामाजिक विकृतियों को दूर करने का प्रतीक है। इन नौ दिनों की साधना का अर्थ है—मनुष्य अपने भीतर की नकारात्मकताओं को समाप्त करे और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा को स्थापित करे।

सामाजिक दृष्टि से नवरात्रि का विशेष महत्व है

यह पर्व सामूहिक उत्सव का प्रतीक है जहाँ समाज एक साथ एकत्रित होकर उत्सव मनाता है। इस दौरान लोग व्रत, पूजन और गरबा-दांडिया जैसे सांस्कृतिक आयोजनों में भाग लेते हैं, जिससे सामाजिक एकता और सामूहिकता की भावना प्रबल होती है। यह उत्सव हमें यह स्मरण कराता है कि धर्म केवल व्यक्तिगत साधना तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज में प्रेम, सहयोग और समरसता फैलाना भी उतना ही आवश्यक है।

दार्शनिक दृष्टि से नवरात्रि का संदेश है कि अंधकार और असत्य चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, अंततः प्रकाश और सत्य की विजय निश्चित है। नौ दिन की साधना यह प्रतीक है कि आत्मबल और धैर्य से साधक हर कठिनाई पर विजय पा सकता है। आज के समय में, जब समाज भौतिकता, स्वार्थ और असमानता से ग्रसित है, नवरात्रि हमें यह प्रेरणा देती है कि हम अपने जीवन में सत्य, न्याय, करुणा और साहस को अपनाएँ।

नवरात्रि का उत्सव इसलिए केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन को संतुलित करने का अवसर है। यह हमें सिखाता है कि शक्ति केवल बाहरी नहीं, बल्कि भीतर की भी है, जिसे जागृत कर हम न केवल अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि समाज को भी अधिक मानवीय और प्रकाशमय बना सकते हैं। यही नवरात्रि का वास्तविक दर्शन है, जो हर युग और हर परिस्थिति में प्रासंगिक है।

 

 

 

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