नया विधानः सब क्यों परेशान….? 

By
sadbhawnapaati
"दैनिक सदभावना पाती" (Dainik Sadbhawna Paati) (भारत सरकार के समाचार पत्रों के पंजीयक – RNI में पंजीकृत, Reg. No. 2013/54381) "दैनिक सदभावना पाती" सिर्फ एक समाचार...
5 Min Read

(लेखक- ओमप्रकाश मेहता)
अब लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी पर्याप्त बहुमत हो जाने के बाद मोदी सरकार अपने चुनावी मंसूबों को मूर्तरूप देने की ओर अग्रसर हो गई है, जिनमें मौजूदा समय में प्रमुख समान नागरिक संहिता प्रमुख है।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जहां एक ओर यह कह रहे है कि देशभर से करीब पचहत्तर हजार सुझावों के आधार पर इस नए कानून का मसौदा तैयार किया गया है तथा इसे सरकार यथाशीघ्र कानूनी दर्जा देकर देश में लागू करना चाहती है, वहीं दूसरी ओर उन्हें इस बात का भी आभास है कि इस नए कानून का व्यापक विरोध भी होगा, इसलिए वे अभी से यह भी कहने लगे है कि कम से कम भाजपा शासित राज्यों में तो इसे लागू कर ही दिया जाएगा अरे, भाई जब इस नए कानून के नाम में ही ‘‘समान’’ शब्द का उपयोग हुआ है, तो फिर यह सिर्फ भाजपा शासित राज्यों में ही लागू कैसे हो सकता है? फिर क्या संसद इस नए कानून को राजनीतिक आधार पर लागू करने के लिए सहमत होगी और फिर क्या न्यायपालिका भी इस नए कानून को लेकर यह भेदभाव स्वीकार करेगी?
वैसे यदि इस पूरे प्रकरण पर गंभीर चिंतन किया जाए तो यह स्थिति स्पष्ट होती है कि फिलहाल देश में इस नए कानून को लागू करने का सही वक्त कतई नहीं है, वैसे ही देश में पिछले महीनें से साम्प्रदायिक माहौल बन गया है, धार्मिक जुलूस, कड़वे बोल और हिंसा का वातावरण बन चुका है, इसी माहौल के चलते अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड ने प्रधानमंत्री जी को एक लम्बी चैड़ी चिट्टी लिखकर यह कानून देश के मुसलमानों पर नहीं थोपने की मांग की है, ऐसी स्थिति में यदि सरकार इस कानून को अभी लागू करने की जिद करती है तो क्या यह कानून मौजूदा साम्प्रदायिक दावानल में पेट्रोल का काम नहीं करेगा?
इसलिए सरकार को पूरे देश में शांति स्थापित होने और सौहार्द्रपूर्ण माहौल के बनने तक इंतजार करना चाहिए, वैसे भी फिलहाल लोकसभा चुनाव में दो साल की अवधि शेष है ऐसे में सरकार को जल्दबाजी से बचना चाहिये। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इस नए कानून के तहत शादी, तलाक, सम्पत्ति बंटवारा और बच्चों-बुढ़ों के रखरखाव जैसे सामाजिक दायित्व एक ही कानून के दायरे में आने वाले है, ये सामाजिक रस्में फिर पूरे देश में एक जैसी होगी।
वैसे इस कानून के लागू होने के बाद देश का हर वयस्क को धर्म से ऊपर उठकर हर तरह का फैसला लेने की स्वतंत्रता होगी, फिलहाल यह कानून विधि आयोग के विचाराधीन है, उसकी स्वीकृति के बाद सरकार इसे संसद में प्रस्तुत कर सकती है और संसद से पारित होने व राष्ट्रपति जी के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन जाएगा।
यद्यपि पूरा देश यह महसूस कर रहा है कि इस कानून को लागू करने में सरकार ने बहुत देरी कर दी, यह काफी पहले लागू हो जाना था, किंतु अब मौजूदा माहौल सरकार को इस बारे में जल्दबाजी करने की इजाजत नहीं देता, क्योंकि देश में आज की स्थिति में कई तरह के सामाजिक रीति रिवाज लागू है, गोवा को आजाद हुए कई साल गुजर गए किंतु वहां अभी भी पूर्तगाली कानून लागू है, ऐसा ही आदिवासियों व अन्य समुदायों के बीच भी है, खासकर मुस्लिम समुदाय तो इस कानून को किसी भी स्थिति में लागू करने को राजी नहीं होगा, क्योंकि वहां सभी सामाजिक रीति-रिवाज अन्य धर्मों से बिल्कुल अलग है।
हाँ, सरकार यदि राम मंदिर, सीएए, ट्रिप तलाक और अनुच्छेद- 370 के मुद्दों के बीच ही इस नए कानून को प्राथमिकता देकर लागू करती तो ठीक था, किंतु मेरी नजर में तो मौजूदा माहौल इस कानून को लागू करने-करवाने की कतई मंजूरी नहीं देता। इस बारे में सरकार को प्राथमिकता से पुनर्विचार करना चाहिये।

Share This Article
Follow:
"दैनिक सदभावना पाती" (Dainik Sadbhawna Paati) (भारत सरकार के समाचार पत्रों के पंजीयक – RNI में पंजीकृत, Reg. No. 2013/54381) "दैनिक सदभावना पाती" सिर्फ एक समाचार पत्र नहीं, बल्कि समाज की आवाज है। वर्ष 2013 से हम सत्य, निष्पक्षता और निर्भीक पत्रकारिता के सिद्धांतों पर चलते हुए प्रदेश, देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर की महत्वपूर्ण खबरें आप तक पहुंचा रहे हैं। हम क्यों अलग हैं? बिना किसी दबाव या पूर्वाग्रह के, हम सत्य की खोज करके शासन-प्रशासन में व्याप्त गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार को उजागर करते है, हर वर्ग की समस्याओं को सरकार और प्रशासन तक पहुंचाना, समाज में जागरूकता और सदभावना को बढ़ावा देना हमारा ध्येय है। हम "प्राणियों में सदभावना हो" के सिद्धांत पर चलते हुए, समाज में सच्चाई और जागरूकता का प्रकाश फैलाने के लिए संकल्पित हैं।