कोरोना काल में संक्रमित मरीजों के लिए ‘भगवान’ का रूप हैं नर्स

sadbhawnapaati
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डॉक्टरों को देवदूत कहा जाता है। चिकित्सकीय पेशे की सेवा भावना को देखकर इस पेशे को इसीलिए पवित्र पेशा भी कहा जाता है। चिकित्सीय पेश में डॉक्टरों के साथ नर्सों की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि दिन-रात मरीजों की परिचर्या में नर्सें ही लगी रहती हैं। कोविड-19 की महामारी ने दिखाया कि नर्सें साथ न होतीं, तो हजारों मामलों में डॉक्टर बेबस हो जाते। सच को यह है कि मरीजों की देखभाल काफी हद तक नर्सों पर ही निर्भर होती है। अस्पतालों में भर्ती मरीजों को तो डॉक्टर थोड़ा वक्त ही दे पाते हैं, बाकी समय तो नर्स या परिचारिका ही उनका सहारा और संबल होती हैं। नर्सों के बिना चिकित्सा की कल्पना ही नहीं की जा सकती।

इसीलिए सारी दुनिया में नर्सिंग के पेशे को सम्मान के साथ देखा जाता है। आधुनिक नर्सिंग की जननी फ्लोरेंस नाइटेंगल ने नर्सिंग के पेशे को जो ऊंचाई दी, उसे भूला नहीं जा सकता। 12 मई, 1820 को इटली के फ्लोरेंस शहर में पैदा हुईं फ्लोरेंस नाइटेंगल सीमा पर बने बैरकों में घायल सैनिकों की देखभाल करती थीं। क्रीमिया के युद्ध में उन्होंने अपने दल के साथ सैनिकों का जिस तरह से उपचार किया था, वैसे उदाहरण विरल हैं। चिकित्सकों के जाने के बाद वह रात के गहन अंधेरे में लालेटन लेकर घायलों की सेवा के लिए उपस्थित रहती थीं। इसी वजह से उन्हें ‘लेडी विद द लैंप’ कहा जाने लगा। उन्हें महारानी विक्टोरिया ने रॉयल रेड क्रास सम्मान से भी सम्मानित किया। 90 वर्ष की उम्र में 13 अगस्त, 1910 को इस महान नर्स का निधन हो गया।

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महामारी के समय में अन्य पैरामेडिकल स्टाफ के साथ नर्सों को अग्रिम मोर्चे का योद्धा कहा जा रहा है, तो इसे समझा जा सकता है। कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से अनेक डॉक्टरों के साथ कई नर्सों तक की शहादत की कथाएं मीडिया में आम हो चुकी हैं। कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में उन्हें न खाने की चिंता है, न पीने की। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब नर्सें 18-18 घंटे तक लगातार ड्यूटी कर रही हैं। वे कई बार कई-कई दिनों बाद अपने घर जा पाती हैं। पिछले वर्ष जब महामारी ने सारी दुनिया में पैर पसारे थे, तब स्पेन के एक शहर में नर्सों के सम्मान में लोगों ने अपने घरों की बॉलकनी में खड़े होकर घर लौटतीं नर्सों को सलामी दी थी। अपने देश में भी कोरोना काल में अथक परिश्रम करते अग्रिम मोर्चे के योद्धाओं के लिए फूल बरसाए गए थे।

यों तो हमारे पूरे देश में नर्सें पूरे समर्पण के साथ काम कर रही हैं, लेकिन हम सब जानते हैं कि नर्सिंग के क्षेत्र में केरल ने खास जगह बनाई है। इस क्रम में कर्नाटक का भी नाम लिया जा सकता है। केरल में नर्सों ने कोरोना की दूसरी लहर से जारी संघर्ष के बीच एक अनूठा काम किया। वहां की नर्सों ने वैक्सीन की खाली शीशियों को फेंका नहीं, बल्कि उनमें आखिर में जो थोड़ी बहुत दवा बची होती है, उससे 80 हजार खुराक बना दी। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस अभिनव प्रयोग ने वहां कितने मरीजों को कोरोना से सुरक्षित किया होगा! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने उनके इस प्रयोग की सराहना की। वास्तव में केरल और कर्नाटक ने नर्सिंग के क्षेत्र में काफी काम किया है।

मध्यप्रदेश में भी इतने विकट संकट में नर्सिंग स्टाफ ही भगवान् के रूप में काम कर रहा है, प्रदेश के बड़े शहरों के सभी अस्पतालों में नर्स फुल टाइम नोकरी करके हजारों लोगों की जान बचा रही है | सदभावना पाती न्यूज़ सभी नर्सिंग स्टाफ को सादर प्रणाम करता है और इंटरनेशनल नर्सिंग डे की शुभकामनाये देता है |

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