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चीन के 24 प्रांतों में जनता का विद्रोह

आर्थिक मंदी,  महंगाई,  बैंकों के खिलाफ जनता सड़कों पर
लेखक- सनत कुमार जैन
चीन में सरकार के खिलाफ 24 प्रांतों में विद्रोह शुरू हो गया है। महंगाई, मंदी और बेरोजगारी के कारण कई प्रांतों में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। आम जनता की पुलिस से झड़पें होने लगी है। बैंकों के सामने जमा पैसा लेने के लिए लंबी लंबी लाइनें लग गई है। बैंकों के सामने सरकार को टैंकों को खडा करके विद्रोह को दबाने का काम करना पड़ रहा है। आर्थिक गड़बड़ियों के कारण 4000 बैंक दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गए हैं। बैंकों में जमा चार लाख से ज्यादा खाताधारकों के हजारों करोड़ रुपए वापस नहीं मिल रहे हैं। निम्न और मध्यम वर्ग के नागरिक आर्थिक संकट के चलते सड़कों पर सरकार का विरोध करने उतर गए हैं। कई स्थानों में हिंसक प्रदर्शन भी हुए।
कोविड-19 संकट के बाद चीन के लगभग 31 लाख उद्योग और कारोबार बंद हो चुके हैं। एक करोड़ से ज्यादा छात्र स्नातक की परीक्षा पास करके बेरोजगार घूम रहे हैं।  लाखों की संख्या में उद्योग और कारोबार बंद होने से करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं। महंगाई बेरोजगारी और आर्थिक संकट के कारण लोगों को अपनी नियमित जरूरतें पूरी कर पाना संभव नहीं हो पा रहा है। जिसके कारण विद्रोह अब सड़कों पर आकर हिंसक प्रदर्शन करने पर उतारू हो गया है।

बैंक ओर प्रॉपर्टी की लोन किस्तें जमा करना मुश्किल
भारत की तरह चीन में भी मध्यमवर्ग प्रॉपर्टी में निवेश करना सुरक्षित मानता था। प्रॉपर्टी के प्रोजेक्ट में करोड़ों लोगों ने निवेश किया था। प्रॉपर्टी के लिए लोन लिया था, समय पर कब्जा नहीं मिलने के कारण लोगों को ब्याज भी भरना पड़ रहा है, और किराया भी देना पड़ रहा है। बिल्डरों ने जमा पैसा निकालकर दूसरे प्रोजेक्टों में लगा दिया। इससे लोग आर्थिक संकट में फंस गए हैं। प्रॉपर्टी सेक्टर में मंदी आ जाने से अन्य सेक्टर भी प्रभावित हुए हैं।

लॉकडाउन से फैली आर्थिक मंदी
जीरो कोविड-19 की पॉलिसी और लंबे समय तक लॉकडाउन के कारण चीन की आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो गई है। चीन को आंतरिक और बाह्य मोर्चे पर जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उसके कारण आर्थिक स्थिति को संभाल पाना सरकार के लिए संभव नहीं हो पा रहा है। चीन के नागरिक भी श्रीलंका की तरह रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। जिसके कारण नाराज होकर लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। चीन के लिए अर्थ-व्यवस्था को बनाए रखना बड़ी चुनौती बन गया है।

जिनपिंग के लिए बड़ी चुनौती
नवंबर माह में कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में वर्तमान राष्ट्रपति जिनपिंग तीसरी बार अपनी दावेदारी पेश करेंगे। मिडिल और निम्न वर्ग का विद्रोह उनकी सत्ता के लिए सबसे बड़ा चुनौती बन गया है। उल्लेखनीय है, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के लगभग 10 करोड़ सदस्य प्रत्यक्ष रूप से मतदान करते हैं। आम जनता के बीच वर्तमान राष्ट्रपति और सरकार को लेकर  जो विद्रोह सड़कों पर जनमानस का आया है। बैंकों के लगभग दिवालिया हो जाने और सरकारी इमदाद नहीं मिलने से महंगाई और बेरोजगारी से परेशान युवा सड़कों पर उतरकर सरकार का विरोध कर रहे हैं। निश्चित रूप से इसका असर नवंबर माह में जिनपिंग की उम्मीदवारी पर पड़ने से कम्युनिस्ट पार्टी में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई है।

कर्ज के बोझ से जनता परेशान
पिछले वर्षों में चीन के नागरिकों पर कर्ज को बोझ बढ़ा है। इसी बीच लाखों की संख्या में उद्योग धंधे बंद होने के कारण बेरोजगारी बढ़ गई है। आम आदमी को अपना घर चलाना मुश्किल हो गया है। परिवार के सदस्यों की जरूरतें पूरी नहीं होने के कारण, अब लोग आर पार की लड़ाई लड़ने सड़कों पर उतर रहे हैं। चीन में पहली बार इस अनोखे विरोध और हिंसक प्रदर्शन ने सरकार की मुसीबतें बढ़ा दी है। चीन की यह हालत सारी दुनिया के देशों के लिए एक सबक भी है। आर्थिक मंदी, महंगाई और बेरोजगारी से जनता को राहत नहीं मिली, तो अधिकांश देशों में जनता बेहाल होकर सड़कों पर उतर रही है। चीन जैसे कम्युनिस्ट देश में ऐसी हालत, पूंजीवादी देशों के लिए सबसे बड़ी चिंता का कारण बन गई है।

भारत की स्थिति भी चिंताजनक
यूरोप के कई देशों में आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। 2008 में अमेरिका की आर्थिक मंदी से ज्यादा खराब हालात दुनिया के अधिकांश देशों में बन गए है। 2008 में लेहमेन ब्रदर्स की आर्थिक गड़बड़ियों से अमेरिका के सैकड़ों बैंक, कंपनियां, नगरीय संस्थान दिवालिया हो गए थे। 2008 की तुलना में 2022 में आर्थिक मंदी एवं कर्ज के बोझ से सारे दुनिया के देश प्रभावित हुए है। चीन, श्रीलंका, नेपाल, भारत सहित लगभग 50 देशों में आर्थिक संकट गहरा गया है। पूंजीवाद और साम्यवाद जैसे हालात 100 साल के बाद एक बार फिर देखने को मिलने लगे है।
भारत भी इससे अछूता नहीं है। विदेशी मुद्रा एवं स्वर्ण भंडार लगातार कम हो रहा है। 15 जुलाई को समाप्त हुए सप्ताह में 7.54 अरब डॉलर का मुद्रा भंडार कम होकर 511.6 अरब डॉलर हो गया है। इसी तरह स्वर्ण भंडार भी 83 करोड़ डॉलर की गिरावट के साथ 38.4 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। बैंकों से लोन ज्यादा दिया जा रहा है। बैंकों में पैसा कम जमा हो रहा है। बैंकों का एनपीए लगातार बढ़ रहा है। भारत के बैंकों की हालात भी अच्छी नहीं है। सरकार ने पिछले वर्षों में विलय और सरकारी मदद देकर बैंकों की बैलेंस शीट सुधारने का काम किया। किन्तु यह सारे प्रयास दलदल में पानी डालकर दलदल बढ़ाने जैसा साबित हो रहे हैं। भारत को भी चुनावी मोड से निकलकर अर्थ-व्यवस्था को पटरी में लाने, टैक्सों को हटाने, बेरोजगारी कम करने, युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने तथा आम आदमी को उनकी जरूरत की चीजें निरंतर मिलती रहे। इसका प्रयास करना होगा। अन्यथा भारत की स्थिति चीन और श्रीलंका जैसे देशों से ज्यादा खराब हो सकती है।

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