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(त्वरित टिप्पणी) भाजपा में बदलावः चुनावी रणनीति या और कुछ…? 

लेखक-ओमप्रकाश मेहता

आज से साढ़े आठ साल पहले प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होते ही नरेन्द्र भाई मोदी ने अपने राजनीतिक गुरू लालकृष्ण आडवाणी और वरिष्ठतम नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी की भाजपा की सर्वोच्च निर्णायक समिति से छुट्टी कर दी थी, ऐसा लगता अब फिर उसी इतिहास को दोहराने की तैयारी है, जिसकी झलक भाजपा संसदीय बोर्ड और केन्द्रीय चुनाव समिति में फेरबदल से परिलक्षित हो रही है। पार्टी के परिष्ठ नेता पूर्व पार्टी अध्यक्ष और केन्द्रीय मंत्री नितीन गड़करी तथा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को पार्टी के सर्वोच्च संसदीय बोर्ड से बाहर कर दिया गया, खैर शिवराज जी को हटाने के पीछे यह बहाना था कि संसदीय बोर्ड में किसी भी मुख्यमंत्री को शामिल नहीं किया गया है, इसलिए शिवराज को भी बाहर किया किंतु गड़करी जी से वरिष्ठता व अनुभव के हिसाब से पार्टी के किसी भी वरिष्ठ नेता से कम नहीं थे, फिर उन्हें किस अपराध की यह सजा दी गई? और फिर शिवराज जी की जगह मध्यप्रदेश से पूर्व सांसद सत्यनारायण जटिया का पार्टी का सर्वोच्च शाखा की सदस्यता के लिए चयन भी आश्चर्य का विषय है?
यद्यपि भाजपा में हुए इस सर्वोच्च फेरबदल को कुछ लोगों द्वारा चुनावी दृष्टिकोण से और कुछ द्वारा मोदी की रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि भाजपा ने आगामी बीस माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव की अभी से तैयारी शुरू कर दी है और अभी से पूरे प्रयास किए जा रहे है कि मोदी जी को प्रधानमंत्रीत्व का तीसरा कार्यकाल उपलब्ध करा दिया जाए, इसी नजरिये से भाजपा अब हर कदम उठा रही है और क्षेत्रिय दिग्गजों को ईनाम या सजा दी जा रही है।
भाजपा के इस फेरबदल को जहां राजनीतिक विश्लेषक सियासत को साधने की कोशिश बता रहे है और विशेष कर दक्षिण भारत में अपनी पैठ जमाने के प्रयास बता रहे है, वहीं यह भी स्पष्ट हो रहा है कि भाजपा की उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों पर भी विशेष नजर है, जहां तक दक्षिण भारत का सवाल है येदियूरप्पा के अतिरिक्त ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष और सांसद के. लक्ष्मण को विशेष तवज्जों देकर पार्टी ने दक्षिण और खासकर चुनावी राज्य तेलंगाना को भी संदेश देने की कोशिश की है इस फेरबदल में महाराष्ट्र में शिवसेना सरकार को झटका देने और पार्टी के आदेश पर उप-मुख्यमंत्री का पद स्वीकार करने वाले देवेन्द्र फड़नवीस को केन्द्रीय चुनाव समिति के सदस्य पद का इनाम दिया है। इस समिति में राजस्थान से भूपेन्द्र यादव व ओम माथुर को शामिल कर राजस्थान का दबदबा बरकरार रखने की कोशिश की गई है। साथ ही पहली बार एक सिख नेता इकबाल सिंह लालपुरा की संसदीय बोर्ड का सदस्य मनोनीत कर यह स्पष्ट कर दिया कि भाजपा की नजर में अल्पसंख्यक मुस्लिम नहीं सिख है, उल्लेखनीय है कि भाजपा के संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति जैसी अहम् शाखाओं में एक भी मुस्लिम सदस्य नहीं है। जहां तक पार्टी के वरिष्ठ नेता शाहनवाज खान का सवाल है, उन्हें बिहार प्रकरण का दोषी मानकर दण्डित किया गया है।
साथ ही यह भी उल्लेखनीय है कि भाजपा ने अपने इस फेरबदल के जरिये एक दलित नेता सत्यनारायण जटिया को पार्टी की सर्वोच्च शाखा संसदीय बोर्ड में शामिल कर एक नया राजनीतिक संदेश देने का प्रयास किया है, वैसे भाजपा की पूरी कवायद के प्रधानमंत्री की भावी चुनावी रणनीति का हिस्सा और पार्टी के सभी वरिष्ठ व कनिष्ठ नेताओं को कड़ा अनुशासनात्मक संदेश देना बताया जा रहा है।
जहाँ तक मध्यप्रदेश का सवाल है, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले नौ साल (2013) से पार्टी की दोनों शीर्षस्थ संस्था के सदस्य थे, जिन्हें अब हटाकर जटिया जी को सदस्य बनाया गया है, इसे भी संयोग ही कहा जाएगा कि 2006 में जब शिवराज जी को पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था, तब जटिया जी को ही हटाकर बनाया गया था।
इस फेरबदल से यह भी स्पष्ट होता है कि पार्टी के निर्णयों का सम्मान करने वालों को पार्टी सम्मानित करती है और परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री या पार्टी पदाधिकारियों पर निशाना साधने वालों को दण्डित भी करती है, जिसका ताजा उदाहरण नितीन गड़करी है, जो प्रधानमंत्री पर निशाना साधकर स्वयं राजनीति से सन्यांस लेने की बात कर चुके है। शायद उन्हें इसी गुनाह की सजा मिली है।
इसके साथ ही इस फेरबदल के माध्यम से पार्टी के महत्वाकांक्षी और पदाभिलाषी नेताओं को भी परोक्ष रूप से ‘‘वेट एण्ड सी’’ (इंतजार करो और देखो) का संदेश दिया है, इन नेताओं में मुख्य रूप से धर्मेन्द्र प्रधान, पियूष गोयल, स्मृति ईरानी, निर्मला सीतारमण जैसे वरिष्ठ नेता शामिल है, जो पार्टी की शीर्षस्थ दोनों शाखाओं की सदस्यता की प्रतीक्षा कर रहे है?
इस प्रबार कुल मिलाकर यह फेरबदल कई संदेशों का वाहक बनने के साथ पार्टी के सदस्यों के लिए सीख का माध्यम बन गया है।
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