(प्रासंगिक टिप्पणी) क्या कश्मीरी पंडितों के पलायन में हिन्दू- मुस्लिम बहस जिम्मेदार नहीं हैं?  

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विद्यावाचस्पति डॉ. अरविन्द प्रेमचंद जैन

शासन तंत्र में यह एक पाठ सिखाया जाता हैं की कोई बड़ी समस्या हो तो उसी समय कोई दूसरी समस्या खड़ी कर दो जिससे जनता का मन मुख्य समस्या के प्रति गौण हो जाता हैं।
आजकल खुदाई का दौर चल रहा हैं ,चाहे ज्ञान वापी ,अजमेर की दरगाह ,मथुरा की खुदाई और भविष्य में कोई नया शिगूफा आ सकता हैं कोई नई बात नहीं।
कश्मीर की समस्या बहुत बड़ी समस्या नहीं हैं कारण वहाँ सरकार ने  चुनाव कराये। चुनाव में जीत हुई जिसका श्रेय पार्टी को हैं और उसके लिए क़ुरबानी दे रहे कार्यरत कर्मचारी। वहाँ पदस्थ कर्मचारी ,अधिकारी शेल्टर होम में कैदी जैसे रहते हैं और सेवा करने जाने पर कब कौन मौत के घाट उतार दिया जाय कोई नहीं जानता।
वहाँ पर शासन और प्रशासन  के अधिकारी सुरक्षा से सुरक्षित हैं। शासन ने यह कह दिया हैं की पदस्थ कर्मचारियों का स्थानांतरण अन्यत्र नहीं होगा। जहा उनकी पदस्थापना  हैं वहाँ कोई सुरक्षा नहीं हैं। हाँ उनका बीमा हैं जो मरणोपरांत उनके आश्रितों को मिल सकेगा। उनके जिन्दा रहने पर कोई लाभ नहीं।
वैसे वहाँ मुस्लिम बहुत क्षेत्र होने से  वहाँ के मुस्लिम पाकिस्तान के जेहादियों /आतंकवादियों से ऐसे घुले मिले रहते हैं जैसे दूध और पानी। कोई उनको पृथक नहीं कर सकता। कारण उनको स्थानीय नागरिकों से सुरक्षा और संरक्षण प्राप्त हैं।
उनको मूल उद्देश्य एक हैं काफिरों का सफाया कर एक समुदाय का शासन हो। हमारी खुपिया तंत्र जब  जागरूक होता हैं जब घटनाएं घटती हैं। उनको जानकारी मिलने के बाद भी वे बेफिक्र रहते हैं कारण घटना उनके साथ नहीं होना हैं। नागरिकों के साथ होना हैं ,नागरिक मरने के लिया बना हैं ,मर गए तो एक संख्या हो जाती हैं।
नौकर ,जनता उनकी ताजपोशी के लिए बने हैं। वर्तमान सरकार भूतकाल के रहस्यों को उजागर करने में व्यस्त हैं ,होना भी चाहिए कारण मेरे बाप ने घी खाया था और अब मेरे हाथ में खुशबु आ रही हैं।
इतिहास हमेशा विवाद का विषय रहा हैं और रहेगा। वर्तमान का फल बहुत बनता हैं और भविष्य की नीव खड़ी होती हैं। आज खुदाई से ताजमहल ,कुतुबमीनार और अन्य जगहों में विवादित स्थान मिलेंगे ही कारण तत्समय जिसकी सत्ता रही उसका बोलबाला रहा  होगा ही।
खुदाई से विवाद होगा या होता हैं जिससे सरकार देश में व्याप्त परेशानियों से मुक्त हो जाती हैं। जैसे आजकल मंहगाई कोई विषय नहीं हैं चर्चा का कारण वित्त मंत्री ने कहा था की मैं प्याज नहीं खाती हूँ। प्रधान नौकर कहते हैं में गुजराती भोजन करता हूँ जिसमे महगाई का असर नहीं दिखाई देती।
कारण और यह हैं की कभी झोला लेकर बाजार जाए और खुद से भुगतान करना पड़े। खुद ईमानदार होने से क्या फायदा ?अभी सत्ता में हैं तो सब अनियमितताएं छुपी हैं। और खुद अलीबाबा बनकर चालीस चोरों को लूट खसोट के लिए रखा हैं।
एक खुदाई से यदि कुछ मिलता हैं तो अन्य विकास के नाम पर वे ही चिन्ह मिटाये जाते हैं। क्या इससे महगाई ,बेरोजगारी दूर होगी हमें विकास के नाम पर हमारी जेब पर जो बोझ पड़ रहा हैं उसका क्या इलाज़ हैं ?क्या नई नौकरियां आयी ?जो थी वे भी गयी।
कुछ व्यापार चल रहे हैं तो कुछ मरणासन्न हो रहे हैं। क्या विकास जन सामान्य के पेट पर लात मारकर मिलेगा?
क्या सेंट्रल विस्टा के नाम पर कितनी पुरानी बिल्डिंग जमींदोज़ की गयी ?
प्रधान नौकर भारतीय इतिहास के ऐसे शिलालेख बनने के लिए कटिबद्ध हैं की न ऐसा हुए और न होंगे  पर भूतपूर्व लोगों को कौन ,कितना याद करता हैं ?
कश्मीर पंडितों के पलायन के लिए मीडिया और कुछ दोनों पक्षों के कट्टरपथिंयों के कारण उत्तेजक चर्चाएं और बयानबाज़ी के कारण हैं। सरकार अपनी पूरी ऊर्जा विपक्ष को नेस्तनाबूद करने लगी हैं और एकाधिकार पाना चाहती हैं।
पर इसमें सफलता जरूर मिल सकती हैं पर जन प्रिय नहीं माने जाएंगे। आतंकवादियों के ऊपर कार्यवाही होना चाहिए। आँकड़ें बाजी से  खोये हुए लोगों को वापिस उनके प्रियजनों को न दिला पाएंगे। उनके दुखों को समझे। पर सत्ता हृदयहीन होती हैं ,उनको जनता के मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता। सत्ता अपने निजियां को भी निपटाने में असहज नहीं होती। जातिवाद का जहर देश  के खून में कब तक और कितना घोला जायेगा।
पलायन  यह असाध्य रोग हैं जिसका कोई इलाज़ नहीं हैं। सिर्फ ध्यान भटकाने के लिए कोई न कोई शिगूफा छोड़ा जायेगा। निर्णय कुछ नहीं होगा। जब तक कारणों  को दूर नहीं किया जाएगा तब तक कोई नतीजा नहीं निकलेगा।
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