सिंधारा दूज 30 जुलाई 2022 को, बहुओं को समर्पित होता है यह त्योहार 

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sadbhawnapaati
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Religious News. श्रावण मास में हरियाली अमावस्या से महिलाओं के व्रत प्रारंभ हो जाते हैं तो हरतालिका तीज तक चलते हैं। इस क्रम में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन सिंधारा दौज या सिंधारा दूज का पर्व मनाया जाता है और फिर भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज का पर्व आता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार 30 जुलाई 2022 शनिवार के दिन यह व्रत रखा जाएगा।

सिंधारा दूज को सौभाग्य दूज, गौरी द्वितिया या स्थान्य वृद्धि के रूप में भी जाना जाता है।  इस दिन चंचुला देवी ने मां पार्वती को सुन्दर वस्त्र आभूषण चुनरी चढ़ाई थी जिससे प्रसन्न होकर मां ने उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था।

मान्यता के अनुसार यह त्योहार सभी बहुओं को समर्पित होता है। इस दिन महिलाएं उपवास रखकर अपने परिवार और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। अपने जीवन में वैवाहिक सुख एवं मांगल्य की कामना करती हैं। इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की भी पूजा की जाती है।

शाम में, देवी को मिठाई और फूल अर्पण कर श्रद्धा के साथ गौरी पूजा की जाती है। यह पर्व खासकर उत्तर भारतीय महिलाओं में प्रचलित है परंतु तमिलनाडु और केरल में, महेश्वरी सप्तमत्रिका पूजा सिंधारा दूज के दिन की जाती है।

 कैसे होती है सिंधारा दूज की पूजा :

1. इस दिन मां ब्रह्मचारिणी को मिठाई और फूल अर्पण कर उनकी षोडशोपचार पूजा की जाती है।

2. महिलाएं देवी की मूर्ति की पूजा करती हैं और धूप, दीपक, चावल, फूल और मिठाई के रूप में कई प्रसाद चढ़ाती हैं।

3. पूजा के बाद, बहुओं को अपनी सास को ‘बया’ भेंट करती हैं।

4. शाम को, गौर माता की पूजा पूरी भक्ति के साथ की जाती है।

कैसे मनाते हैं सिंधारा दूज

मुख्य रूप से यह बहुओं का त्योहार है। इस दिन सास अपनी बहुओं को भव्य उपहार प्रस्तुत करती हैं, जो अपने माता-पिता के घर में इन उपहारों के साथ आते हैं। सिंधारा दूज के दिन, बहूएं अपने माता-पिता द्वारा दिए गए ‘बाया’ लेकर अपने ससुराल वापस आ जाती हैं। ‘बाया’ में फल, व्यंजन और मिठाई और धन शामिल होता है।

शाम को गौर माता या देवी पार्वती की पूजा करने के बाद, वह अपनी सास को यह ‘बाया’ भेंट करती हैं। सिंधारा दूज के दिन लड़कियां अपने मायके जाती हैं और इस दिन बेटियां मायके से ससुराल भी आती हैं। मायके से बाया लेकर बेटियां ससुराल आती हैं। तीज के दिन शाम को देवी पार्वती की पूजा करने के बाद बाया को सास को दे दिया जाता है। कुछ महिलाएं इस दिन उपवास करती है तो कुछ पूजा नियमों का पालन करती हैं।

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