कोरोना संकट काल में पहले से ही जनता परेशान है। इधर आरटीओ कार्यालय पहुंचने वाले लर्निंग और स्थाई लाइसेंस पाने वाले आवेदकों को वैसे ही इस कमरतोड़ महंगाई में शहर से 15 किलोमीटर दूर स्लॉट के दिए हुए समय पर जाना पड़ता है और वहां कर्मचारी या फिर कंप्यूटर ऑपरेटर समय पर नहीं मिले तो उस पर क्या बीतती होगी यह बात अभी अधिकारियों को मालूम नहीं है। कोरोना के पूर्व स्लॉट बुकिंग का कोई सिस्टम नहीं था, लेकिन अब यह सिस्टम कई लोगों की परेशानी का सबब बन गया है। क्योंकि दिए गए समय से आधा घंटा दूर आरटीओ कार्यालय पहुंचना पड़ता है और जब समय पर उसका काम नहीं हो तो उस पर क्या बीतेगी, यह उसका दिल हो जानता है। गलती स्मार्ट चिप कंपनी की है, क्योंकि कम्प्यूटर ऑपरेटर इसी कंपनी के कर्मचारी है और यह कंपनी विभाग के अफसरों को अपनी जेब में रखे घूमती है।
इधर स्थाई लाइसेंस पाने वाले में परमानेंट और लाइसेंस रिन्यू कराने वाले आवेदक रहते हैं। इन्हें स्लॉट बुकिंग के मुताबिक सुबह 10 बजे का समय दिया जाता है। उसके बाद समय बढ़ता जाता है, जिसको 10 बजे का समय मिलता है वह कार्यालय 9.30 बजे पहुंच जाता है, लेकिन जब स्थाई लाइसेंस सेक्शन पहुंचता है तो वहीं कभी तो एक ऑपरेटर भी नहीं मिलता और कभी एक ऑपरेटर रहता है, जिससे लंबी लाइन लग जाती है। किसी लंबी लाइन से सोशल डिस्टेंस की धज्जियां उड़ जाती हैं। पूर्व में किसी भी आवेदक को स्लॉट बुकिंग के सिस्टम से नहीं गुजरना पड़ता था, लेकिन कोरोना संकटकाल को देखते हुए अफसरों ने स्लॉट बुकिंग की बंदिश आवेदकों पर लगा दी, लेकिन इन अफसरों ने पीछे मुड़कर यह नहीं देखा कि इस स्लॉट बुकिंग में आवेदकों को किन-किन परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है। पहले परेशानी तो यह है कि स्लॉट बुकिंग की जो साइट है वह समय पर खुलती नहीं घंटों इंतजार के बाद अगर आपको समय मिल गया तो उस समय क्या आधे घंटे पूर्व आवेदकों कार्यालय पहुंचना पड़ता है।
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