डॉ देवेंद्र मालवीय
भोपाल / इंदौर। मध्य प्रदेश के रियल एस्टेट क्षेत्र में पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित करने के लिए स्थापित रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) की वेबसाइट पर जाएं तो वहां दर्ज 5000 प्रोजेक्ट में से एक बड़ा हिस्सा ऑनगोइंग या इनप्रोग्रेस कैटेगरी में दिख रहा है. लेकिन इन प्रोजेक्ट में से कई को जिला कलेक्टर द्वारा पूर्णता प्रमाण पत्र जारी किए जा चुके हैं. पहली नजर में देखने पर यह मामला साधारण सा लगता है लेकिन असल में देखा जाए तो ऐसा है नहीं कुछ मामले में ऐसा स्थानीय प्रशासन और रेरा के दस्तावेजों में प्रोजेक्ट की स्थिति कंप्लीट या ऑतयोइंग की हो सकती है. लेकिन जब वह प्रोजेक्ट जिनके लिए जिला प्रशासन सालों पहले कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी कर चुका हो, वह भी रेरा की वेबसाइट पर अधूरे दिखाए जाएं तो मामला संदेहास्पद हो जाता है, जब सदभावना पाती ने पड़ताल शुरू की तो कॉलोनाइजर की एक ऐसी साजिश निकलकर सामने आई, जिसके जरिए वह टैक्स चोरी कर शासन को करोड़ों के राजस्व की चपत लगा रहे हैं। अब यह जांच का विषय है कि करोड़ों की टैक्स चोरी के इस खेल में रेरा के अधिकारियों की भी मिलीभगत है या नहीं? वरना क्या कारण है कि स्थानीय प्रशासन द्वारा कंप्लीसन सर्टिफिकेट जारी करने के सालों बाद भी रेरा की वेबसाइट पर वह प्रोजेक्ट अधूरे हैं.. आइए समझते हैं क्या है टैक्स चोरी का गणित.. कैसे इंदौर भोपाल के रियल ईस्टेट कारोबारी शासन को चूना लगा रहे हैं।
ऐसे में सवाल उठता है..
> उपभोक्ता किसे सही माने रियल एस्टेट क्षेत्र में पारदर्शिता और नियमों का पालन सुनिश्चित के लिए बनाए गए रेरा को, या फिर स्थानीय प्रशासन द्वारा जारी सर्टिफिकेट को।
इंदौर जो राज्य की आर्थिक राजधानी के रूप में जाना जाता है और जहां देशभर के निवेशक जमीनों में रुचि दिखाते हैं, वहां इस तरह की विसंगतियां अधिक चचों में हैं, लेकिन समस्या पूरे प्रदेश स्तर की है, जहां रेरा पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 5000 के लगभग पंजीकृत प्रोजेक्ट्स में से एक बड़ा हिस्सा लंबे समय से अपडेट का इंतजार कर रहा है। ऐसे में, जनहित में रेरा प्रक्रियाओं की समीक्षा और डिजिटल एकीकरण की आवश्यकता महसूस की जा रही है ताकि होमबायर्स को समय पर जानकारी मिल सके और विकास प्रक्रिया सुचारू बनी रहे।
इंदौर और अन्य जिलों में कई प्रमुख डेवलपर्स के प्रोजेक्ट्स इस मुद्दे के उदाहरण के रूप में सामने आ रहे हैं। उदाहरणस्वरूप…
अश्विन मेहता (Ashwin Mehta Sarthak Singapore Group Indore)
अश्विन मेहता से जुड़े सार्थक सिंगापुर ग्रुप के तहत नौ से अधिक परियोजनाएं – जैसे सिंगापुर ग्रीन व्यू प्रीमियम, सिंगापुर लाइफ स्टाइल लेक व्यू, सिंगापुर पाम-2, सिंगापुर ग्रीन व्यू गैलेक्सी, सिंगापुर बिजनेस पार्क, सिंगापुर ग्रीन व्यू प्रीमियम एनएक्स-दो, सिंगापुर ब्रिटिश पार्क फेज दो, सिंगापुर ग्रीन व्यू प्रीमियम-एनएक्स और सिंगापुर ब्रिटिश पार्क रेरा पोर्टल पर अभी भी ऑनगोइंग दिखाई दे रही हैं, जबकि स्थानीय स्तर पर पूर्णता प्रमाण पत्र जारी होने की जानकारी उपलब्ध है।
संतोष कुमार सिंह (Santosh Kumar Singh DHL Infrabulls International Private Limited)
इसी प्रकार, संतोष सिंह से जुड़ी डीएचएल इफ्राबुल्स कंपनी के कई प्रोजेक्ट्स, जैसे डीएचएल एलीट लैंड मार्क और डीएचएल बिलियनेयर्स लैंड मार्क, रेरा पर ऑनगोइंग स्थिति में दर्ज हैं, हालांकि कंपनी की प्रोजेक्ट्स को जिला प्रशासन से पूर्णता संबंधी स्थापना कई वर्षों पूर्व हुई थी और इसके कई दस्तावेज मिल चुके हैं।
नवीन गोधा (Surendra Jain (Naveen Godha) Pragati Eravat Developers)
श्री बालाजी डेवलपर्स, एरावत डेवलपर्स के संचालक सुरेन्द्र जैन (नवीन गोधा) की पारस पार्क, पदम पार्क, पदमावती प्राइम जैसी कई कालोनिया स्थानीय निकायों से पूर्णता पा चुकी है पर रेरा पर स्टेटस ऑनगोइंग इनप्रोग्रेस दिखाता है।
ये उदाहरण पूरे प्रदेश में व्याप्त एक व्यापक पेटर्न को दशांते हैं. जहां प्रोजेक्ट्स की वास्तविक प्रगति और रेरा रिकॉर्ड में अंतर देखा जा रहा है। यह अंतर डेवलपर्स, स्थानीय प्रशासन और रेरा के बीच बेहतर समन्वय की जरूरत को रेखांकित करता है. ताकि जानकारी का समय पर अद्यतन सुनिश्चित हो सके और निवेशकों का विश्वास बना रहे।
क्लेरिकल त्रुटि या सुनियोजित स्कैंडल – ?
क्या यह महज क्लेरिकल त्रुटि है ? या एक सुनियोजित स्कैंडल है, जिसमें डेवलपर्स और रेरा अधिकारी मिलकर काम कर रहे हैं।
>> रेरा अधिनियम 2016 की धारा 11(4) (बी) के अनुसार, प्रोजेक्ट पूरा होने के 30 दिनों के भीतर डेवलपर को पूर्णता प्रमाण पत्र की प्रमाणित प्रति रेरा को जमा करनी अनिवार्य है, अन्यथा धारा 59 के तहत प्रोजेक्ट लागत का 5 से 10 प्रतिशत जुर्माना और तीन वर्ष तक की कैद का प्रावधान है। मध्य प्रदेश रेरा नियम 2017 में भी दैनिक 10,000 रुपये का जुर्माना निर्धारित है, लेकिन प्रवर्तन की कमी से डेवलपर्स बेखौफ हैं।
जॉइंट डेवलपमेंट एग्रीमेंट (जेडीए) वाले प्रोजेक्ट्स में, पूर्णता प्रमाण पत्र मिलने पर आयकर अधिनियम की धारा 45 (5ए) के तहत लैंडओनर (ज्यादातर किसान) को कैपिटल गेन टैक्स – जो 22 जुलाई 2024 से पहले 20 प्रतिशत और बाद में 12.5 प्रतिशत है देय होता है। सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (सीबीडीटी) की 15 सितंबर 2025 की स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) ने रेरा पोर्टल से ऐसे प्रोजेक्ट्स की जांच को अनिवार्य बनाया है, जिससे यदि स्टेटस कंप्लीटेड होता, तो आयकर विभाग की नजर में आ जाते। इसी तरह, जीएसटी अधिनियम के तहत प्रोजेक्ट कंप्लीशन पर अंतिम टैक्स सेटलमेंट होता है, जो देरी से बचने से डेवलपर्स को फायदा पहुंचाता है। इंदौर में रेरा-पंजीकृत प्रोजेक्ट्स में से करीब 40 प्रतिशत अभी भी 2017-2020 से ऑनगोइंग हैं।
यहाँ स्पष्ट है की…
> रेरा वेबसाइट पर कंप्लीट प्रोजेक्ट्स को ही आयकर और जीएसटी विभाग टारगेट करता है उनकी नजर से बचने के लिए यह एक सुनियोजित कार्य है?
कानूनी दृष्टिकोण
क्या यह एक संगठित अपराध है? कानूनी दृष्टि से हां, क्योंकि यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120बी (आपराधिक साजिश), 420 (धोखाधड़ी) और 468 (दस्तावेजों में जालसाजी) के दायरे में आता है। यदि रेरा अधिकारियों की मिलीभगत साबित होती है, तो यह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 और 13 के तहत दंडनीय होगा, जिसमें सात वर्ष तक की कैद और संपत्ति जब्ती शामिल है। आयकर अधिनियम की धारा 276सी के तहत टैक्स चोरी पर सात वर्ष की कैद संभव है, जबकि प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) 2002 की धारा 3 के तहत यदि यह मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा साबित होता है, तो प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच अनिवार्य हो जाती है। इस मुद्दे का प्रभाव होमबायर्स और निवेशकों पर सबसे अधिक पड़ रहा है, जो वर्षों से प्रोजेक्ट्स के पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं। इंदौर में जहां देशभर से निवेश आता है, वहां देरी से आर्थिक नुकसान और कानूनी विवाद बढ़ रहे हैं, लेकिन भोपाल और अन्य जिलों में भी समान शिकायतें हैं।
जब सार्थक सिंगापुर ग्रुप से प्रोजेक्ट्स की पूर्णता स्थिति को लेकर सवाल किया गया, तो ग्रुप की ओर से अंशुल गुप्ता की ईमेल आईडी से जवाब प्राप्त हुआ। जवाब में उन्होंने कहा कि – “हमारे उक्त सभी प्रोजेक्ट्स के पूर्णता प्रमाण पत्र (Completion Certificates) प्राप्त कर लिए गए हैं।” हालांकि, जब उनसे इन प्रमाण पत्रों की प्रतियां मांगी गईं, तो उन्होंने यह कहते हुए टाल दिया कि “संबंधित दस्तावेज़ नगर निगम अथवा कलेक्टर कार्यालय से मांगे जा सकते हैं।”


