भारतीय चेतना का मूल स्वर रही है धर्म-धम्म की अवधारणा: राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मु  

sadbhawnapaati
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MP News in Hindi। राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मु ने कहा है कि मानवता के दुख के कारण का बोध कराना और उस दुख को दूर करने का मार्ग दिखाना, पूर्व के मानववाद की विशेषता है, जो आज के युग में और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। धर्म-धम्म की अवधारणा भारतीय चेतना का मूल स्वर रही है। हमारी परंपरा में कहा गया है कि जो सबको धारण करता है, वह धर्म है। धर्म की आधार-शिला पर ही पूरी मानवता टिकी हुई है।
राग और द्वेष से मुक्त होकर मैत्री, करूणा और अहिंसा की भावना से व्यक्ति और समाज का विकास करना, पूर्व के मानववाद का प्रमुख संदेश रहा है। नैतिकता पर आधारित व्यक्तिगत आचरण और समाज व्यवस्था पूर्व के मानववाद का ही व्यावहारिक रूप है। नैतिकता पर आधारित इस व्यवस्था को बचाए रखना और मजबूत करना हर व्यक्ति का कर्त्तव्य माना गया है।
धर्म-धम्म की हमारी परंपरा में सर्वे भवंतु सुखिन: की प्रार्थना हमारे जीवन का हिस्सा रही है। यही पूर्व के मानववाद का सार-तत्व है और आज के युग की सबसे बड़ी जरूरत भी है। यह सम्मेलन मानवता की एक बड़ी जरूरत को पूरा करने की दिशा में सार्थक प्रयास है। यही कामना है कि समस्त विश्व समुदाय पूर्व के मानववाद से लाभान्वित हो। राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु कुशाभाऊ ठाकरे हाल भोपाल में 7वें अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन के उद्घाटन कर रही थी।
-धर्म-धम्म के भाव को स्पष्टत: प्रदर्शित करते हैं हमारे राष्ट्रीय प्रतीक
राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मु ने कहा कि हमारे देश की परंपरा में समाज व्यवस्था और राजनैतिक कार्य-कलापों में प्राचीन काल से ही धर्म को केन्द्रीय स्थान प्राप्त है। स्वाधीनता के बाद हमने जो लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई उस पर धर्म-धम्म का गहरा प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। हमारे राष्ट्रीय प्रतीकों से यह स्पष्टत: प्रदर्शित होता है। अंतर्ऱाष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन में विभिन्न देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं, जो धर्म-धम्म के विचार की वैश्विक अपील का प्रतीक है।
-धर्म-धम्म चिंतन से सद्भाव को बढ़ावा मिलेगा
राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने कहा है कि हमारे भारतीय दर्शन की मान्यता इस विश्वास में निहित है कि विश्व सबके लिए है। युद्ध की कोई आवश्यकता ही नहीं है। मानवता के कल्याण के लिए शांति, प्रेम और एक-दूसरे के प्रति विश्वास आवश्यक है। राज्यपाल ने कहा कि हमारे देश की सदियों पुरानी परंपरा विश्व शांति और मानव जाति के कल्याण में विश्वास रखती है और उसे बढ़ावा देती है।
नैतिक और व्यवहारिक क्षेत्र में बौद्ध दृष्टिकोण भी मानव जाति की भलाई के लिए महत्वपूर्ण है। समृद्ध समाज, राष्ट्र एवं विश्व निर्माण के लिए भारतीय सांस्कृतिक और सभ्यतागत अंतर्संबंधों की सदियों से चली आ रही चिंतन परम्परा पर बदलते समय और परिप्रेक्ष्य में नई दृष्टि से विचार समय की ज़रूरत है। वैश्विक परिदृश्य में अतिवाद, विस्तारवाद, जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मानवता को बचाने के मार्ग भारतीय ज्ञान एवं ऋषियों के चिन्तन में ही मिलेंगे। उन्होंने कहा कि धर्म-धम्म चिंतन से प्राचीन सभ्यताओं के बीच विचारों के परस्पर विनिमय से सद्भाव को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि हिंसा और युद्ध से कराहते विश्व के लिए बुद्ध एक समाधान हैं।
-साँची विश्वविद्यालय की स्थापना प्रदेश के लिए सौभाग्य का विषय – मुख्यमंत्री श्री चौहान
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि साँची विश्वविद्यालय की स्थापना प्रदेश के लिए सौभाग्य का विषय है। यहाँ भारतीय ज्ञान और बौद्ध दर्शन के अध्ययन के अवसर सृजित होंगे। पूर्व के मानववाद का मूल चिंतन है कि एक ही चेतना समस्त जड़ और चेतन में विद्वान हैं, सारी धरती एक ही परिवार है।
हमारे यहाँ जिओ और जीने दो और धर्म की जय हो-अर्धम का नाश हो-प्राणियों में सद्भाव हो और विश्व का कल्याण हो का विचार सर्वत्र व्याप्त है। भारतीय संस्कृति में पशु-पक्षियों, नदियों, वृक्षों और पहाड़ों को भी पूजा गया है। दशावतार की अवधारणा में यह स्पष्टत: परिलक्षित होता है। भारतीय परंपरा में सारी धरती को एक परिवार माना गया है।
सभी जीवों के साथ दया और सम्मान तथा आंतरिक शांति और निर्विकार भाव विकसित करना आवश्यक
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि धर्म और धम्म का पहला सिद्धांत है सभी जीवों के साथ दया और सम्मान का व्यवहार हो, दूसरे सिद्धांत में ज्ञान और बोध पर बल दिया गया है, तीसरे सिद्धांत में आंतरिक शांति और निर्विकार भाव विकसित करने की आवश्यकता निरूपित की गई है। यह विद्वानों की सभा है, सम्मेलन में अलग-अलग विषयों पर गंभीर चिंतन होगा। चिंतन से जो निष्कर्ष निकलेंगे वह विश्व को शाश्वत शांति के पथ पर अग्रसर करने में सहायक सिद्ध होंगे।
गौतम बुद्ध ने युद्ध नहीं शांति, घृणा नहीं प्रेम, संघर्ष नहीं समन्वय, शत्रुता नहीं मित्रता को जीवन में आवश्यक माना है। यही वह मार्ग है जो भौतिकता की अग्नि में दग्ध मानवता को शाश्वत शांति के पथ का दिग्दर्शन करायेगा। अत: निश्चित ही धम्म-धर्म सम्मेलन विश्व के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
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