दम तोड़ती प्रकृति की धरोहरें – बाँझ होती धरती

sadbhawnapaati
2 Min Read

बचपन से सुनते आये थे कि नदियाँ और जल हमेशा से ही मानव समाज के लिए प्रकृति के द्वारा भेंट किये गए अद्भुत उपहारों मे से एक है। ऐसा ही उपहार प्रकृति ने मध्यप्रदेश के उमरिया जिले से बीस किलोमीटर दूर स्थित चंदिया कस्बे को भी दिया था।
छोटे से झील नुमा स्थान से उदगम होते हुवे यह एक विशालकाय नदिया बन गई जिसका नाम कथली नदी पड़ा। कई पीढ़ियां इसका पानी पीकर परवान चढ़ीं। किसानों ने खेतों की सिचाई करके अन्न उगाया और लाखों लोगों का पेट भरा। ऐसी मान्यता है कि कथली नदी किसी बुजुर्ग के आशीर्वाद की देन थी।
दूर दूर से सैलानी यहां स्नान करने आते थे और अपनी मुरादें यहां पाते थे। इसके तट पर दो धार्मिक समागम मजार- मंदिर नदी के पूजनीय और पवित्रता के इतिहास के गवाह हैं, जहाँ पर वार्षिक मेले पिछले कई वर्षों से सम्पन्न होते आ रहे हैं।
किन्तु स्थानीय प्रशासन की गैर जिम्मेदारी और रेत की तस्करी वाले मानव समाज के लालच ने इस ऐतिहासिक प्रकृति धरोहर को लगभग खो ही दिया है। समाज के विकास के नाम पर इसके किनारों को बर्बाद कर दिया गया। गैर तकनीक खुदाई ने इसके मूल रूप और सुंदरता को नष्ट कर दिया है।
कभी स्वच्छ जल से कल-कल करती इसकी धारा हजारों लोगों को सुबह से शाम तक अपने में समेटे रखती थी, किन्तु आज यह विशाल धरोहर नाले और पोखर के स्वरुप में बदल चूकि है जिसमे बमुश्किल ही किसी जानवर या पक्षी को पानी नसीब होता है  किन्तु न प्रशासन को इसकी फ़िक्र है और न समाज के बुद्धजीवियों को।
पाठक राकिब खान की कलम से🖋️
Share This Article